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    HP High Court: Manav Bharti University की फर्जी डिग्री मामले में जांच कमेटी को हाईकोर्ट ने लगाई फटकार

    By Virender KumarEdited By:
    Updated: Sun, 18 Sep 2022 10:25 PM (IST)

    HP High Court हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने फर्जी डिग्री मामले में मानव भारती विश्वविद्यालय की ओर से विद्यार्थियों को दिए डिटेल माक्र्स सर्टिफिकेट का सत्यापन करने वाली जांच कमेटी को फटकार लगाई है। उम्मीद जताई कि अगली सुनवाई तक कुछ विद्यार्थियों को कुछ दस्तावेजों की प्रतिलिपियां दे दी जाएंगी।

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    HP High Court: Manav Bharti University की फर्जी डिग्री मामले में जांच कमेटी को हाईकोर्ट ने फटकार लगाई ।

    शिमला, विधि संवाददाता। HP High Court, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने फर्जी डिग्री मामले में मानव भारती विश्वविद्यालय की ओर से विद्यार्थियों को दिए डिटेल माक्र्स सर्टिफिकेट का सत्यापन करने वाली जांच कमेटी को फटकार लगाई है। कोर्ट ने जांच कमेटी की मीटिंग का विवरण देखने पर कहा कि इसमें कोई स्पष्ट निर्देश नहीं हैं कि किस तरह दस्तावेजों की प्रतिलिपियां विद्यार्थियों को दी जानी हैं।

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    मुख्य न्यायाधीश एए सईद और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने जांच कमेटी को जल्द मीटिंग करने का आदेश दिया। कोर्ट ने जांच कमेटी को साफ तौर पर ऐसे मानदंड और मापदंड तय करने का आदेश दिया, जिनके आधार पर विद्यार्थियों को दस्तावेजों की प्रतिलिपियां दी जा सकें। कोर्ट ने उम्मीद जताई कि मामले पर अगली सुनवाई तक कुछ विद्यार्थियों को कुछ दस्तावेजों की प्रतिलिपियां दे दी जाएंगी। जांच कमेटी को स्टेटस रिपोर्ट सहित मीटिंग का विवरण कोर्ट के समक्ष रखने का आदेश भी दिया है।

    हाईकोर्ट के निर्देशानुसार निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग ने मानव भारती विश्वविद्यालय के फर्जी डिग्रियों से संबंधित दस्तावेजों की जांच और उनका सत्यापन करने के लिए कमेटी गठित करने का आदेश दिया था। विद्यार्थियों का कहना था कि डिटेल माक्र्स सर्टिफिकेट का सत्यापन न होने से उनका भविष्य अधर में लटका हुआ है। विश्वविद्यालय पर फर्जी डिग्रियां बांटने का आरोप है। विशेष जांच टीम मामले की पहले से ही पड़ताल कर रही है, इसलिए विश्वविद्यालय से पढ़े विद्यार्थियों को डिग्रियां और डिटेल माक्र्स सर्टिफिकेट नहीं मिल पा रहे हैं। जांच कमेटी गठित होने के बाद से सैकड़ों विद्यार्थियों ने अपने प्रमाणपत्रों को जांचने के लिए आवेदन किया है।

    बेतरतीब निर्माण पर मुख्य सचिव से मांगा जवाब

    हाईकोर्ट ने पहाड़ों पर अंधाधुंध और बेतरतीब निर्माण पर मुख्य सचिव से जवाब शपथ पत्र दाखिल करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने सभी पक्षकारों को सुनने के बाद और जनहित याचिका में उठाए मुद्दों की गंभीरता को देखते हुए यह आदेश जारी किए। मुख्य न्यायाधीश एए सईद और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने मुद्दे को अतिमहत्वपूर्ण और गंभीर बताया।

    कोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश दिया कि शपथपत्र में यह भी स्पष्ट करें कि प्रदेश की कौन सी अथारिटी ने सोलन जिला के गांव खील झालसी से कोरों व कैंथरी तक छह किलोमीटर की सड़क के दोनों तरफ बहुमंजिला इमारतें बनाने की अनुमति प्रदान की है। कोर्ट ने प्रथम दृष्टया पाया कि ऐसे बेतरतीब और अंधाधुंध निर्माण को रोकने के लिए कोई निर्धारित नियम नहीं हैं। पर्यावरण के लिए संवेदनशील इलाके में यह इमारतें पहाड़ों को काटकर बनाई गई प्रतीत होती हैं। प्रार्थी कुसुम बाली ने याचिका में यह भी बताया है कि यह निर्माण गैरकानूनी है। इनसे पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकते हैं। कोर्ट ने अन्य हिस्सों में भी बेतरतीब निर्माण रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदमों से अवगत करवाने का आदेश मुख्य सचिव को दिया।

    मेडिकल आधार पर कांस्टेबल भर्ती से बाहर अभ्यर्थियों को अंतरिम राहत

    हाईकोर्ट ने मेडिकल आधार पर पुलिस कांस्टेबल भर्ती से बाहर किए अभ्यर्थियों को अंतरिम राहत प्रदान की है। कोर्ट ने आइजीएमसी शिमला के एमएस को आदेश दिया कि वह संबंधित विशेषज्ञों का मेडिकल बोर्ड गठित करें। इस बोर्ड में उन विषयों के विशेषज्ञ रखने का आदेश दिया जिनके आधार पर प्रार्थियों को भर्ती से बाहर कर दिया है।

    न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश वीरेंदर सिंह की खंडपीठ ने मेडिकल रिपोर्ट सील्ड कवर में जल्द कोर्ट के समक्ष पेश करने का आदेश दिया। कांगड़ा जिला में पुलिस भर्ती के दौरान मेडिकल आधार पर कुछ अभ्यर्थियों को बाहर करने पर हाईकोर्ट में चुनौती दी है। प्रार्थियों को अंतरिम राहत देते हुए कोर्ट ने कहा कि कुछ मामलों में अभ्यर्थियों को नेत्र विभाग के डाक्टरों की राय पर बाहर कर दिया, जबकि जिस मेडिकल बोर्ड का गठन किया था उसमें हड्डी या सामान्य शल्य चिकित्सा के विशेषज्ञ डाक्टर थे। इस मेडिकल बोर्ड में संबंधित विषय के विशेषज्ञ डाक्टर न होने के कारण इसे विशेषज्ञों का मेडिकल बोर्ड नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं का दोबारा मेडिकल करने का आदेश दिया।

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