राजनीति के अखाड़े में ग्रेट खली, जब परिवार से नाराज होकर चले गए थे जंगल में, जानिए रोचक किस्से
Great Khali Joined BJP देश-दुनिया में बड़े-बड़े पहलवानों को रेसलिंग में चित्त कर चुके ग्रेट खली उर्फ दलीप सिंह राणा अब राजनीति के अखाड़े में उतर आए हैं। उन्होंने वीरवार को दिल्ली में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है।

नाहन, जागरण संवाददाता। Great Khali Joined BJP, देश-दुनिया में बड़े-बड़े पहलवानों को रेसलिंग में चित्त कर चुके ग्रेट खली उर्फ दलीप सिंह राणा अब राजनीति के अखाड़े में उतर आए हैं। उन्होंने वीरवार को दिल्ली में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। खली का जन्म 27 अगस्त 1972 को हुआ था। ग्रेट खली का भार 157 किलोग्राम है, जबकि लंबाई सात फीट एक इंच है। खली का असल नाम दलीप सिंह राणा है। उन्होंने 2002 में हरमिंदर कौर से विवाह किया। 2006 में में WWE में खली ने एंट्री की थी। खली का बचपन बेहद गरीबी में गुजरा। उन्हें ढाई रुपये फीस न चुकाने के कारण स्कूल से निकाल दिया गया था।
परिवार से नाराज होकर जंगल में बिताया था एक महीना
1990 की बात है खली युवावस्था में परिवार से कहासुनी के बाद घर छोड़कर जंगल में चले गए थे। एक महीने तक वह अपने पालतु कुत्ते के साथ जंगल में ही रहे थे। खली एक तेजधार बरछे के सहारे लकड़ी के टूटे से शेड में रहे थे। स्कूल के अध्यापक द्वारा दिए गए चावलों के कट्टे के साथ उन्होंने एक महीना गुजारा था। एक महीने बाद उनके पिता खली को ढूंढते हुए जंगल में पहुंचे। पिता ने जब बेटे को जंगल में इस हालत में देखा तो वह उन पर गुस्साए और पूछा कि क्या तुम्हें जानवरों का भी डर नहीं है। खली का तब भी यही जवाब था वह किसी से नहीं डरता।
बचपन में ही पढ़ाई छोड़ करनी पड़ी थी मजदूरी
खली मौजूदा समय में पंजाब के जालंधर में रेसलिंग अकादमी चलाते हैं। खली मूलत हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला की दुर्गम पंचायत नैनीधार के निवासी हैं। जिला सिरमौर के शिलाई उपमंडल की नैनीधार पंचायत के धिराइना में किसान परिवार में जन्में द ग्रेट खली उर्फ दलीप सिंह राणा एक अलग शख्सियत हैं। सात भाई बहनों में से एक दलीप राणा परिवार में सबसे अलग थे। भीमकाय शरीर वाले दलीप सिंह राणा के परिवार की आर्थिक हालात सही न होने से वह बचपन में पढ़ाई नहीं कर पाए। इन्हें दूसरे भाइयों की तरह मेहनत मजदूरी करनी पड़ी। पहले गांव फिर शिमला आकर भी मजदूरी करनी पड़ी। भारी वजन उठाना खली के बाएं हाथ का खेल था।
बाजार में नहीं मिलते थे खली के साइज के जूते
गांव के लोगों के अनुसार खली का शरीर इतना बढ़ गया था कि इसके लिए बाजार से जूते भी नहीं मिल पाते थे। इसके लिए खली गांव से दूर शिलाई में जाकर एक मोची से चप्पलें और जूते बनवाते थे। जब ये यहां जाते तो इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ लग जाती थी। मजदूरी के लिए खली गांव से दूर जाने लगे। लेकिन ये काफी नहीं था। जितना पैसा मजदूरी के बाद मिलता था, उससे खली की डाइट भी पूरी नहीं हो पाती थी। ऐसे में घर के लिए पैसे बचाना दूर की कौड़ी थी।
पंजाब पुलिस के अधिकारी ने दी थी नौकरी
शिमला बस स्टैंड पर एक हाथ से बस की छत पर 50 किलो की बोरी रखते हुए उन्हें पंजाब पुलिस के एक अधिकारी ने देखा, तो अपने जवान को भेजकर उसे पंजाब सर्किट हाउस बुलाया तथा वह उसके बारे में जानकारी जुटाई। फिर उसे पंजाब पुलिस में भर्ती करवाया। खली भी अपने छोटे भाई के साथ पंजाब पुलिस में शामिल हो गया।
...और शुरू हो गया तरक्की का सफर
इसके बाद खली की यही कद काठी उसकी सबसे बड़ी ताकत बन गई। रेसलिंग उन दिनों पसंदीदा खेल बनती जा रही थी। खली को भी इसके लिए तैयार किया गया। आखिरकार खली अमेरिका पहुंच गए। डब्ल्यूडब्ल्यूई में सफर शुरू करना इतना आसान नहीं था। यहां पैसा तो जमकर मिलता था लेकिन उसके लिए खूब पसीना भी बहाना पड़ता था। पहले दिन जैसे ही खली ने रिंग में कदम रखा कि बड़े-बड़े रेस्लर भी कांपने लगे। इसके बाद खली का मिशन शुरू हुआ। उन्होंने अंडरटेकर जैसे रेस्लर को भी 10 मिनट में हराकर सबका ध्यान खींच लिया। इसके बाद बिग शो, मार्क हेनरी और बतिस्ता जैसे पहलवानों को हराकर डब्ल्यूडब्ल्यूई का खिताब जीत लिया। भारत के लोगों को भरोसा ही नहीं हो रहा था कि कोई भारतीय भी ऐसा काम कर सकता है। इसके बाद कई सालों तक खली का दबदबा कायम रहा। देश-विदेश में ख्याति के साथ साथ कई सम्मान और पुरस्कार भी उन्हें मिले।
गांव के बच्चों को मुफ्त रेसलिंग सीखा रहे खली
कभी एक एक रुपये के लिए तरसने वाले खली के पास इतना पैसा आ गया कि उन्होंने गांव के विकास पर भी इसे खर्चना शुरू कर दिया। आज भी गांव के लोग बताते हैं कि उन्हें कभी उम्मीद ही नहीं थी कि खली आगे चलकर इतना बड़ा पहलवान बन जाएगा। जालंधर स्थित अपनी रेसलिंग एकेडमी में द ग्रेट खली जिला सिरमौर के बच्चों को निशुल्क रेसलिंग सिखाते हैं।
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