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चर्म रोगियों के लिए औषधि है यह प्रसाद, रविवार से मिलेगा

श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करने वाली श्रद्धा की प्रतीक, विश्व-विख्यात बज्रेश्वरी देवी मंदिर कांगड़ा में घृतमंडल पर्व का रविवार को समापन होगा।

By Rajesh SharmaEdited By: Published: Sat, 19 Jan 2019 02:42 PM (IST)Updated: Sat, 19 Jan 2019 02:42 PM (IST)
चर्म रोगियों के लिए औषधि है यह प्रसाद, रविवार से मिलेगा
चर्म रोगियों के लिए औषधि है यह प्रसाद, रविवार से मिलेगा

जेएनएन, कांगड़ा। श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करने वाली श्रद्धा की प्रतीक, विश्व-विख्यात बज्रेश्वरी देवी मंदिर कांगड़ा में घृतमंडल पर्व का रविवार को समापन होगा। यह घृत रूपी प्रसाद चर्म रोग से पीडि़त लोगों के लिए औषधि से कम नहीं है। इसे लगाने से ठंडक मिलती है व चर्म रोग ठीक हो जाता है।

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वही घृत पर्व मक्खन रूपी प्रसाद भी रविवार से श्रद्धालुओं को वितरित किया जाएगा। मक्खन रूपी प्रसाद को लेने के लिए मंदिर प्रशासन द्वारा परिसर में ही एक अलग से काउंटर की व्यवस्था कर दी है। इस बार शक्तिपीठ माता श्रीबज्रेश्वरी देवी मंदिर में घृत पर्व पर करीब 30 क्विंटल मक्खन तैयार किया गया है, जो रिकॉर्ड है और इस बार मक्खन रूपी प्रसाद के लिए भी कमी नहीं होगी।

कांगड़ा का बज्रेश्वरी देवी मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। यहां सती का दाहिना वक्ष गिरा था। कई शताब्दियों से चली आ रही ऐतिहासिक परंपरा घृत पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। शक्तिपीठ माता बज्रेश्वरी देवी मंदिर के सबसे बड़े पर्व को लेकर माता का दरबार श्रद्धालुओं की भीड़ से जहां भर गया है। वहीं माता की पिंडी पर होने वाले मक्खन के श्रृंगार को देखने के लिए भी इस बार देश के कोने-कोने से हजारों श्रद्धालु पहुंचे हैं।

ऐतिहासिक धार्मिक उत्सव को लेकर श्री बज्रेश्वरी माता का मंदिर दुल्हन की तरह सजाया गया था और इन सात दिनों में लाखों श्रद्धालुओं ने मक्खन रूपी पिंडी के दर्शन किए। ऐतिहासिक धार्मिक घृत पर्व की मान्यता है कि मकर संक्रांति से लेकर एक सप्ताह तक इन मंदिरों में मौजूद पिंडी के ऊपर कई क्विंटल मक्खन का लेप चढ़ाया जाता है।

माघ मास की मकर संक्रांति के दिन से आरंभ होने वाले इस विशेष आयोजन पर मां बज्रेश्वरी मंदिर व बर्फ से ढकी धौलाधार की चोटियों की मनोहारी छटा माहौल को दार्शनिक बना देती है।

दैत्य से युद्ध में आई चोट को भरने के लिए किया था घृत का लेप

घृत मंडल के आयोजन के उद्देश्य के संबंध में कहा जाता है कि जालंधर दैत्य को मारते समय माता के शरीर पर अनेक चोटें आई थीं तथा देवताओं ने माता के शरीर पर घृत का लेप किया था। उसी परंपरा के अनुसार देसी घी को 100 बार शीतल जल से धोकर उसका मक्खन बनाकर माता जी की पिंडी पर चढ़ाया जाता है। इस घी के ऊपर नाना प्रकार के मेवे और फल मेवों की मालाएं सुसज्जित की जाती हैं। जिससे मक्खन रूपी तैयार की गई पिंडी देखते ही बनती है। मक्खन से तैयार की पिंडी को अलंकृत करने के लिए कई घंटों समय लगता है।


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