Back Image

Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    Pandit Sukhram: नहीं रहे राजनीति के चाणक्‍य और संचार क्रांति के मसीहा पंडित सुखराम

    By Rajesh Kumar SharmaEdited By:
    Updated: Wed, 11 May 2022 09:46 AM (IST)

    Pandit Sukhram Passed Away पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम को देर रात को दिल्‍ली स्थित एम्‍स में निधन हो गया। पंडित सुखराम को राजनीति के चाणक्‍य और संचार क्रांति के मसीहा के रूप में जाना जाता था। पंडित सुखराम काफी समय से बीमार थे

    Hero Image
    पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम को देर रात को दिल्‍ली स्थित एम्‍स में निधन हो गया।

    मंडी, जागरण संवाददाता। Pandit Sukhram Passed Away, पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम को देर रात को दिल्‍ली स्थित एम्‍स में निधन हो गया। ब्रेन स्‍ट्राक के बाद उन्‍हें दिल्‍ली एम्‍स में भर्ती करवाया गया था। 94 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। पंडित सुखराम को राजनीति के चाणक्‍य और संचार क्रांति के मसीहा के रूप में जाना जाता था। पंडित सुखराम काफी समय से बीमार थे व कुछ दिन पहले ही उन्‍हें मंडी से दिल्‍ली एम्‍स में ले जाया गया था। मुख्‍यमंत्री जयराम ठाकुर ने सरकारी हेली‍काप्‍टर से उन्‍हें दिल्‍ली पहुंचाया था। आज देर रात उनकी पार्थिव देह मंडी पहुंचेंगी। कल वीरवार को उनका अंतिम संस्‍कार किया जाएगा। इससे पहले सेरी मंच पर अंतिम दर्शन के लिए उनकी पार्थिव देह रखी जाएगी।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    राजनीति के चाणक्य व संचार क्रांति के मसीहा थे पंडित सुखराम

    पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम राजनीति के चाणक्य थे। गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे। अपनी प्रतिभा के दम पर उन्होंने प्रदेश व देश की राजनीति में अपना लोहा मनवाया था। राजनीति के चाणक्य के साथ साथ वह संचार क्रांति के मसीहा के रूप में जाने जाते थे। 1962 में अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले पंडित सुखराम एक कुशल राजनेता व प्रशासक माने जाते थे। 1962 से 1984 तक लगातार सदर हलके का प्रतिनिधित्व किया। इस दौरान वह लोक निर्माण, कृषि व पशुपालन मंत्री रहे। प्रदेश की राजनीति में अपनी दमदार उपस्थिति करवा वह मुख्यमंत्री पद की दावेदारी जताते रहे। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डा. यशवंत सिंह परमार के करीबी रहे। मंडी जिले से पहले मुख्यमंत्री पद के दावेदार ठाकुर कर्म सिंह के विरोध में खड़े हो गए। कई बार मुख्यमंत्री की कुर्सी के नजदीक पहुंच कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं चौधरी पीरू राम, पंडित गौरी प्रसाद, रंगीला राम राव व कौल सिंह के विरोध के चलते दौड़ से बाहर हुए। 1993 में तो उन्हें 22 विधायकों का समर्थन प्राप्त था। अपने ही जिले के नेताओं का विश्वास नहीं जीत पाए और मुख्यमंत्री की कुर्सी हाथ से फिसल गई। सुखराम ने 1993 से 1996 तक संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री के रूप में हिमाचल प्रदेश ही नहीं देश में संचार क्रांति का सूत्रपात कर अपनी पहचान बनाई। वह तीन बार लोकसभा सदस्य रहे।

    विकासात्मक रही साेच, बेदाग साबित होने की हसरत अधूरी रही

    पड़ित सुखराम की सोच विकासात्मक रही है। विधानसभा और लोकसभा में जिस भी मंत्रालय में रहे। उनके विभागों के कार्यालय मंडी लाने व रोजगार सृजन करने पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित रखा। प्रदेश में जब वह पशुपालन मंत्री थे तो गांव-गांव में मिल्क चिलिंग सेंटर खोले। इसके अलावा बतौर केंद्रीय खाद्य आपूर्ति राज्य मंत्री रहते हुए मंडी में भारतीय खाद्य निगम भंडार स्थापित किए। रक्षा राज्य मंत्री रहते हुए मंडी और हमीरपुर में सेना भर्ती कार्यालय खुलवाए। बतौर संचार मंत्री देश के साथ-साथ हिमाचल में भी टेलीफोन एक्सचेंज और दूरसंचार का नेटवर्क खड़ा किया। भाजपा हिविकां गठबंधन सरकार के दौरान जब मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो रोजगार संसाधन सृजन के अध्यक्ष के रूप में युवाओं के लिए स्वरोजगार की योजना का खाका तैयार किया। सुखराम का राजनीतिक जीवन जुझारू एवं संघर्षपूर्ण रहा है। उन्होंने राजनीति की ऊंचाइयों को छुआ वहीं पर राजनीतिक षड़यंत्रों के तहत भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे रहे। 1998 के विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला। वीरभद्र सिंह विरोध के चलते पंडित सुखराम ने भाजपा के साथ हाथ मिला प्रो. प्रेम कुमार धूमल का मुख्यमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त किया था। हिविकां को चुनाव में चार सीटें मिली थी। अपने स्वास्थ्य को देखते हुए पंडित सुखराम ने दिल्ली की अदालत से उनके विरुद्ध चल रहे भ्रष्टाचार के मामलों की जल्द से जल्द सुनवाई करने की कई बार गुहार लगाई थी। उनकी दिली इच्छा थी कि वह बेदाग होकर अपनी अंतिम यात्रा पर निकलें। मुख्यमंत्री बनने व बेदाग साबित होने की उनकी हसरत अधूरी ही रह गई।