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आगरा के वकील कुरैशी तैयार कर रहे हिमाचल में दशहरा के लिए पुतले, बोले- जितनी अल्लाह की रहमत, उतनी भगवान की कृपा

Dussehra Festival 2022 दशहरा उत्सव में बात पुतलों की न हो ऐसा हो नहीं सकता। क्या आपने कभी सोचा है कि इन पुतलों को बनाता कौन है? दशहरा भले ही हिंदुओं का प्रमुख त्योहार हो लेकिन इसमें सभी धर्म के लोग बराबर शामिल होते हैं।

By rajeshwar thakurEdited By: Rajesh Kumar SharmaPublished: Mon, 03 Oct 2022 01:35 PM (IST)Updated: Mon, 03 Oct 2022 01:35 PM (IST)
आगरा के वकील कुरैशी तैयार कर रहे हिमाचल में दशहरा के लिए पुतले, बोले- जितनी अल्लाह की रहमत, उतनी भगवान की कृपा
हिमाचल प्रदेश के ऊना में दशहरा उत्सव के लिए पुतले बनाते आगरा से आए मुस्लिम कारीगर।

ऊना, राजेश डढवाल। Dussehra Festival 2022, दशहरा उत्सव में बात पुतलों की न हो, ऐसा हो नहीं सकता। बच्चों से लेकर बुजुर्ग, सब पुतलों को जलते देखना चाहते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि इन पुतलों को बनाता कौन है? दशहरा भले ही हिंदुओं का प्रमुख त्योहार हो, लेकिन इसमें सभी धर्म के लोग बराबर शामिल होते हैं। यही कारण है कि धार्मिक बंदिशें तोड़कर मुस्लिम समुदाय भी पुतले बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। जिला मुख्यालय ऊना में इन दिनों रामलीला जारी है। पांच अक्टूबर को दशहरा उत्सव है। उत्तर प्रदेश के आगरा निवासी 45 वर्षीय वकील कुरैशी और उनके 22 सहयोगी रावण, कुंभकर्ण व मेघनाद के पुतले बना रहे हैं।

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वकील कुरैशी ने बताया कि उनकी चार पीढ़ियों ने दशहरा पर पुतले बनाने का क्रम जारी रखा है। करीब 150 साल से पुतले बना रहे हैं। दशहरा में सभी धर्म के लोगों को जिम्मेदारी निभानी चाहिए। पुतले बनाने का उद्देश्य पैसा कमाना ही नहीं बल्कि मन की शांति भी जरूरी है। पीढ़ी दर पीढ़ी लोग हमें स्नेह देते आए हैं जो हमें इस काम से जोड़े हुए है। सभी देवी-देवता समान हैं। जितनी अल्लाह की रहमत, उतनी ही भगवान की कृपा होती है।

800 किलो का पुतला, 400 किलो का सिर

वकील कुरैशी व अब्बू बताते हैं कि उनके परदादा ने पहला पुतला रावण का बनाया था जिसकी लंबाई 35 फीट थी। उसके सारे अंग अलग-अलग बनाए थे। सिर का वजन करीब 400 किलोग्राम हो गया। पुतले के सभी अंग जोड़ने के बाद वजन लगभग 800 किलो हो गया। समस्या यह थी कि उसे खड़ा कैसे किया जाए। उस दौर में क्रेन की व्यवस्था नहीं थी। सुझाव मिला कि पुतले को लेटाकर ही दहन किया जाए। कई लोग इस पक्ष में नहीं थे। तब लोगों के सहयोग से लकड़ी की सीढ़ियां व मचान बनाया गया। मोटे रस्से से पुतले को बांधा। 100 लोगों की सहायता से पुतले को खड़ा किया। इसके बाद रावण दहन हुआ। आज के दौर में तकनीक विकसित होने से काम काफी आसान हुआ है।

संतुलन के लिए पुतले के दोनों ओर का वजन बराबर

पुतला तैयार करने के लिए बांस, कागज, लकड़ी, सूत, रस्सी, गोंद, रंग, मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। 10 से 50 फीट के पुतलों के सभी अंग अलग-अलग बनाए जाते हैं। नापतोल का ख्याल रखा जाता है। सभी अंगों को सतर्कता से जोड़ा जाता है। पुतले के दोनों ओर का वजन बराबर रखना होता है ताकि इसे खड़ा करते समय संतुलन बना रहे। एक पुतला बनाने में तीन से पांच दिन लगते हैं।

10 फीट ऊंचा रावण बनाने पर 30 हजार रुपये खर्च

पुतले की कीमत ऊंचाई के हिसाब से तय की जाती है। आजकल तीन हजार रुपये प्रति फीट ऊंचाई के हिसाब से पुतले तैयार किए जाते हैं। 10 फीट ऊंचा रावण बनाने पर 30 हजार रुपये खर्च आता है। हालांकि यह कीमत स्थान व दूरी के अनुसार कम या ज्यादा हो सकती है। पुतले बनवाने के लिए दशहरा से तीन से चार महीने पहले बुकिंग हो जाती है। कुशल कारीगर कम हैं, इसलिए वो आसानी नहीं मिलते।

कोरोना के पुतले का भी होगा दहन

दशहरा उत्सव पर इस बार ऊना में रावण के 55 फीट और मेघनाद व कुंभकर्ण के 50-50 फीट ऊंचे पुतलों का दहन होगा। कोरोना महामारी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। इसलिए कोरोना के 20 फीट ऊंचे पुतले का भी दहन किया जाएगा।

कुशल कारीगर बेशक कम हुए पर भाईचारे में कोई कमी नहीं 

आगरा निवासी वकील कुरैशी का कहना है पुतला बनाने में प्रयोग होने वाली सामग्री के दाम पहले की अपेक्षा काफी बढ़ गए हैं। इसलिए पुतला बनाना महंगा हो गया है। नई पीढ़ी इस काम के लिए उदासीन है। कुशल कारीगर भले ही कम हो गए हैं मगर भाईचारे में कोई कमी नहीं है।


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