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    रेबीज के सस्ते इलाज की खोज करने वाले डॉक्टर ओमेश कुमार भारती को मिला पद्मश्री

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Sat, 26 Jan 2019 08:22 AM (IST)

    अपने शोध को मान्यता दिलवाने के लिए डॉ. भारती को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी और लंबे शोध के बाद मरीजों पर प्रयोग के बाद वो इसे मान्यता दिलवाने में सफल हुए। ...और पढ़ें

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    रेबीज के सस्ते इलाज की खोज करने वाले डॉक्टर ओमेश कुमार भारती को मिला पद्मश्री

    शिमला, जेएनएन। डॉ. भारती करीब 17 सालों से एंटी रेबीज वैक्सीन पर काम कर रहे थे शोध में उन्होंने एक ऐसे सीरम को इजात किया जो पागल कुत्ते के काटने से होने वाले घाव पर लगाने से इसका असर जल्द होगाइससे पहले जहां पागल कुत्ते या बंदर के काटने पर सिरम को घाव और मांंसपेशियों में लगाया जाता था, लेकिन डॉ. भारती ने अपने शोध से ये साबित किया कि रेबीज इम्यूनोग्लोबुलिन सिरम को घाव पर लगाने से असर जल्दी होगा

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    सालों बाद इस काम को करने वाले डॉ. ओमेश भारती के इस शोध को अब वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की ओर से मान्यता दी गई है जिसके बाद अब विश्व स्तर पर इस नई तकनीक से पागल कुत्ते के काटने का इलाज हो पाएगा

    हिमाचल में बीते दो सालों से इसी तकनीक से इलाज किया जा रहा है प्रदेश सरकार एंटी रेबीज की इस तकनीक को पूर्ण रूप से फ्री उपलब्ध करवा रही है 

    नीक का प्रयोग किया, लेकिन साल 2013 के बाद डॉ. ओमेश भारती ने 269 मरीजों पर इस सीरम का उपयोग किया, जिसका सकारात्मक परिणाम देखने को मिला उन्होंने कहा कि इलाज के बाद प्रदेश में एक भी मामला रेबीज का नहीं आया है और न ही बीमारी से किसी की मौत हुई है

    अपने शोध को मान्यता दिलवाने के लिए डॉ. भारती को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी और लंबे शोध के बाद मरीजों पर प्रयोग के बाद वो इसे मान्यता दिलवाने में सफल हुए लोगों को नई तकनीक पर विश्वास दिलवाना मुश्किल था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार शोध को सही साबित करने के लिए प्रयोग करते गए उन्हें सफलता तब मिली जब इस शोध को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने मान्यता दी और इस तकनीक को विश्व भर के लिए बेहतर बताया

    इस तरह के शोध से तैयार की गई है एंटी रेबीज वैक्सीन

    डॉ. ओमेश भारती ने शोध कर जिस सीरम को तैयार किया है वो घोड़े और आदमी के खून से बनता है, जिसकी उपलब्धता बहुत कम है आदमी के खून से सीरम बनाने की कीमत पांच से छह हजार और घोड़े के खून से बनने वाले सीरम का खर्च करीब पांच सौ से छह सौ रुपये तक आता है इससे पहले इस सीरम को जब मांंसपेशियों में लगाया जाता था तो इसकी मात्रा करीबन दस मिली लीटर के आसपास रहती थी, लेकिन अब घाव में लगाने से इसकी मात्रा एक मिली लीटर रह गई है, जिससे इसकी उपलब्धता और इस पर होने वाले खर्च में विश्व स्तर में भारी कमी आई है