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भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील हैं बोह घाटी, सोहलदा

मुनीष गारिया धर्मशाला जिला कांगड़ा में 12 जुलाई की सुबह हुई भारी बारिश से उपमंडल श

By JagranEdited By: Published: Fri, 16 Jul 2021 08:30 PM (IST)Updated: Fri, 16 Jul 2021 08:30 PM (IST)
भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील हैं बोह घाटी, सोहलदा
भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील हैं बोह घाटी, सोहलदा

मुनीष गारिया, धर्मशाला

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जिला कांगड़ा में 12 जुलाई की सुबह हुई भारी बारिश से उपमंडल शाहपुर के रुलेहड़ में हुए भूस्खलन ने कई घरों से चूल्हे बुझा दिए हैं। भूस्खलन की चपेट में आए अधिकांश लोगों के शव निकाल लिए गए हैं, जबकि एक युवक की अभी तलाश की जा रही है। लोगों को तबाही को यह मंजर जीवनभर याद रहेगा, लेकिन यह बात भी याद रखनी होगी कि यह घाटी अंधाधुंध निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं है।

विज्ञानियों का दावा है कि उपमंडल शाहपुर की बोह घाटी भूस्खलन की दृष्टि से अति संवदेनशील है। मसलन घाटी में दो मंजिल से अधिक घरों का निर्माण सामान्य तौर पर नहीं किया जाना चाहिए। अगर बहुत जरूरत है तो विज्ञानी तरीके से निर्माण होना चाहिए। घाटी के संदेनशील होने का प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि कई जगह भूस्खलन हुआ है।

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रिड़कमार से रुलेहड़ तक होता है भूस्खलन

त्रासदी से ग्रसित रुलेहड़ गांव के लिए रिड़कमार होकर रास्ता जाता है। रिड़कमार से यह क्षेत्र तीन किलोमीटर दूर है। इस क्षेत्र में ही सोमवार को ही रुलेहड़ को छोड़कर 15 से 20 छोटे-बड़े भूस्खलन हुए हैं। क्षेत्र में जगह-जगह पानी के छोटे-छोटे स्त्रोत भी हैं।

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दलदली और रेतीली है घाटी की मिट्टी

विज्ञानियों के शोध में यह बात सामने आई है कि बोह घाटी की मिट्टी अधिकतर स्थानों पर दलदली है और शेष जगह रेतीली है। इन दोनों की तरह की मिट्टी वाली जगहों पर अक्सर भूस्खलन होते हैं। रुलेहड़ में हुए भूस्खलन में हरियाली वाले उस स्थान पर बड़ी-बड़ी चट्टानें और पत्थरों के साथ बजरी भी निकली है। यह क्षेत्र गज खड्ड के किनारा का है, इसलिए यहां की मिट्टी रेत से भरी हुई है। -------

हिमालयन रेंज का अध्ययन कर चुके हैं डा. अंबरीश महाजन

भूगर्भ विज्ञानी एवं हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के पर्यावरण विज्ञान स्कूल के डीन डा. अबरीश महाजन हिमालयन रेंज का भू-परीक्षण कर चुके हैं। करीब चार साल पहले उन्होंने कांगड़ा व चंबा जिलों के भूगर्भ का अध्ययन किया था। वह पूरी हिमालयन रेंज का भी अध्ययन कर चुके हैं। वहीं 2019 में उन्होंने सोहलदा में भी अध्ययन किया था, जहां 2013 में भूस्खलन हुआ था। इस अध्ययन की रिपोर्ट एवं सुझाव उन्होंने जिला प्रशासन को भेज दिए हैं। -------------

यह रहे शोध के मुख्य बिदु एवं सुझाव

-जिला कांगड़ा में भूस्खलन की दृष्टि से बोह घाटी, सोहलदा, कोटला, त्रिलोकपुर व भाली क्षेत्र काफी संवेदनशील हैं।

-इन क्षेत्रों लगाए गए पेड़-पौधे छोटी जड़ों वाले हैं। यहां गहरी जड़ों वाले पौधे लगाने पड़ेंगे।

-इन सभी क्षेत्रों के निर्माण कार्य विज्ञानी तरीके से ही होना चाहिए।

-कोतवाली बाजार धर्मशाला भी संवेदनशील क्षेत्र में आता है। यहां की मिट्टी के हिसाब से दो जमा एक भवन बनाना भी उचित नहीं हैं।

-मैक्लोडगंज में नड्डी व सतोवरी में दो जमा एक मंजिला भवन बनाए जा सकते हैं। ----------

भूकंप की दृष्टि से संवदेनशील क्षेत्र

जम्मू-कश्मीर का सांबा, हिमाचल का कांगड़ा, मंडी, कुल्लू, चंबा, सोलन, उत्तराखंड व नेपाल भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र हैं। ----------------------

बोह घाटी का पहले भी अध्ययन किया गया है। अभी तक की जानकारी के मुताबिक रुलेहड़ त्रासदी बादल फटने से होने की सूचना मिल रही है। शाहपुर की बोह घाटी व जवाली के सोलहदा क्षेत्र भूस्खलन के लिहाज से काफी संवेदनशील है। यहां की मिट्टी दबदली और रेतीली है। इसी कारण यहां छोटे छोटे भूस्खलन होते रहते हैं। रुलेहड़ क्षेत्र के दोबारा अध्ययन किया जाएगा और मिट्टी का परीक्षण किया जाएगा।

-डा. अंबरीश महाजन, भू-गर्भ विज्ञानिक।


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