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    Vikram Batra Death Anniversary: बलिदानी के पिता बोले: वीर जवानों की जीवनी को पाठ्य पुस्तकों में नहीं मिला सम्मान

    देश में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा जो कारगिल युद्ध के हीरो कै. विक्रम बतरा की बहादुरी से अनभिज्ञ हो। कारगिल युद्ध के बाद कै. विक्रम बतरा की बहादुरी को नमन करते हुए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया था।

    By Vijay BhushanEdited By: Updated: Wed, 07 Jul 2021 10:44 AM (IST)
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    शहीद कैप्टन बिक्रम के पिता व माता। जागरण

    पालमपुर, कुलदीप राणा। Vikram Batra Death Anniversary, देश में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा जो कारगिल युद्ध के हीरो कै. विक्रम बतरा की बहादुरी से अनभिज्ञ हो। कारगिल युद्ध के बाद कै. विक्रम बतरा की बहादुरी को नमन करते हुए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया था। पिता गिरधारी लाल बतरा का कहना है कि कै. विक्रम की बहादुरी के किस्से भारत में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान में भी सुनाए जाते हैं। पाक सेना उन्हें शेरशाह कहा करती थी। बकौल गिरधारी लाल, आग्रह के बावजूद वीर जवानों की जीवनी को पाठ्य पुस्तकों में अब तक जगह नहीं मिल पाई है।

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    गिरधारी लाल बताते हैं कि एक सज्जन ने बलिदानी की जीवनी पर पुस्तक लिखकर प्रकाशित की है और यह बच्चों के लिए ज्ञानवर्धक साबित हो रही है। बलिदानी के स्वजन का अंतिम विचार यही था कि जो युद्ध से लौटकर नहीं आए हैं, के सम्मान का ध्यान समाज और सरकारें रखें। उन्होंने बतरा मैदान के समीप स्थापित बलिदानी प्रतिमा को लेकर 20 वर्ष पहले उठाए सवालों का अभी तक हल न होने पर भी चिंता व्यक्त की है। स्वजन का कहना था कि प्रतिमा उनके बेटे की शक्ल से मेल नहीं खाती है।

    कौन थे कैप्टन बिक्रम बतरा

    कैप्टन विक्रम बतरा का जन्म 9 सितंबर, 1974 को पालमपुर में हुआ था। 7 जुलाई, 1999 को जख्मी साथी को बचाते हुए विक्रम बतरा ने 4875 प्वाइंट पर शहादत का जाम पिया था। सहयोगी अधिकारी को बचाते हुए विक्रम बतरा के अंतिम थे शब्द -नवीन तू मत जा, तुम्हारे बीवी बच्चे हैं, लेकिन तभी एक बम उनके पैर में आकर फटा और बुरी तरह से घायल हो गए। विक्रम बतरा ने नवीन को वहां से हटाया और उनकी जान बच गई। इसमें बहादुर कैप्टन देश की रक्षा के लिए हमेशा के लिए शांत हो गया। बतरा की 13 जैक राइफल में 6 दिसंबर, 1997 को लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति हुई थी और मात्र दो वर्ष के भीतर ही उन्होंने बहादुरी के लिए कैप्टन का पद हासिल कर लिया था। इस दौरान कारगिल में भारत-पाक के बीच अघोषित युद्ध छिड़ गया। उन्होंने शहादत से पहले 17000 फीट की ऊंचाई पर स्थित प्वाइंट 4875 और 4750 पर भारतीय सैनिकों का कब्जा करवाने में अहम रोल अदा किया था। युद्ध जीतने के बाद भारत सरकार ने इस चोटी का नाम बतरा टाप रखा था।