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    बिलासपुर शहर का नाम व्यासपुर रखने की पैरवी, ऋषि व्यास से जुड़ा है इतिहास, जानिए

    By Rajesh Kumar SharmaEdited By:
    Updated: Thu, 14 Apr 2022 01:54 PM (IST)

    Bilaspur City ऋषि व्यास की तपोस्थली व्यासपुर नगरी आज बिलासपुर शहर के नाम से जानी जाती है। इसके नाम को बदलने की मांग अब तेज हो गई है। बुधवार को बिलासपुर में युद्ध सम्मारक का लोकार्पण करने पहुंचे राज्यपाल को नगर परिषद ने एक ज्ञापन इससे संबंधित सौंपा है।

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    ऋषि व्यास की तपोस्थली व्यासपुर नगरी आज बिलासपुर शहर के नाम से जानी जाती है।

    बिलासपुर, जागरण संवाददाता। Bilaspur City, ऋषि व्यास की तपोस्थली व्यासपुर नगरी आज बिलासपुर शहर के नाम से जानी जाती है। इसके नाम को बदलने की मांग अब तेज हो गई है। बुधवार को बिलासपुर में युद्ध सम्मारक का लोकार्पण करने पहुंचे राज्यपाल को नगर परिषद ने एक ज्ञापन इससे संबंधित सौंपा है। ज्ञापन में राज्यपाल से निवेदन किया है कि वह इस शहर के नाम को व्यासपुर करवाएं ताकि ऋषि व्यास की जन्म भूमि को याद रखा जा सके। इसके साथ ही शहर के साथ सटी व्यास गुफा के रखरखाव और एक धार्मिक स्थल के रूप में विकसित करने की मांग भी की है। इसकी कापी उपायुक्त बिलासपुर को भी दी गई है ताकि यह मामला सरकार के समक्ष उठाया जा सके।

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    मार्च महीने में पास हुआ प्रस्ताव

    बिलासपुर शहर की सामाजिक संस्थाएं व्यास नगर समिति, श्रीराम नाटक समिति, व्यास रक्तदाता समिति, व्यासपुर उत्थान समिति बिलासपुर के प्रार्थना पत्र पर नगर परिषद बिलासपुर ने यह निर्णय हाउस में लिया था। यह प्रस्ताव तीन मार्च को पास हो चुका है और अब सरकार और राज्यपाल को इसकी अग्रिम कार्रवाई के लिए भेजा है ताकि जल्द ही शहर नाम व्यासपुर हो और क्षेत्र को धार्मिक स्थान के रूप में विकसित किया जा सके।

    ऐतिहासिक धरोहर में करें शामिल

    नगर परिषद बिलासपुर के अध्यक्ष कमलेंद्र कश्यप व उपाध्यक्ष कमल गौत्तम ने कहा कि महर्षि वेद व्यास की जन्म भूमि व्यास गुफा को ऐतिहासिक धरोहर बनाना जरूरी है। शहर के लोगों व नगर परिषद का कहना है कि यह स्थान 4 वेद, 18 पुराण, 36 उपनिषद के रचयिता महर्षि वेद व्यास की जन्म भूमि है व सरकारी ट्रस्ट बनाए जाने के बावजूद भी इसका शहर से सटा हिस्सा उपेक्षा का शिकार है। कुछ वर्ष पहले जब एशियन डेवलपमेंट बैंक के माध्यम से मार्कंडेय तीर्थ को विकसित करने की प्रकिया चल रही थी, उसी समय इस तीर्थ स्थल को भी विकसित करने की मांग की गई थी, जिसे तत्कालीन मुख्यमंत्री ने स्वीकृति दी थी, लेकिन आज तक कोई कार्य सरकारी स्तर पर यहां नहीं हो पाया है। मान्यता है कि पौराणिक समय में महर्षि वेद व्यास इसी गुफा से मार्कंडेय तीर्थ महर्षि मार्कंडेय से धार्मिक चर्चा के लिए जाया करते थे।