हिमाचल व उत्तराखंड की सीमा पर प्रकृति पाल रही बरगद की पौध
ऐसे समय में जब कोरोना महामारी का दौर चल रहा है इससे वातावरण की शुद्धता का महत्व सबको समझ आ रहा है। हिमाचल-उत्तराखंड की सीमा पर एक जगह ऐसी भी है जहां बरगद प्रकृति की गोद में फल फूल रहे हैं। स्थानीय बोली में इन्हें बड़ कहा जाता है।
रमेश सिंगटा, शिमला। ऐसे समय में जब कोरोना महामारी का दौर चल रहा है, इससे वातावरण की शुद्धता का महत्व सबको समझ आ रहा है। आक्सीजन की कमी से हुई मौतों व गंभीर स्थिति ने लोगों को प्राणवायु देने वाले पेड़ों का महत्व समझाया है। हिमाचल-उत्तराखंड की सीमा पर एक जगह ऐसी भी है ,जहां बरगद प्रकृति की गोद में फल फूल रहे हैं। स्थानीय बोली में इन्हें बड़ कहा जाता है। इन्हें मानवीय संरक्षण की जरूरत है। पुरातन परंपरा को आगे ले जाने की जरूरत है। नई पीढ़ी को इन बरगद से परिचय करवाना होगा। नए पौधे और नई पीढिय़ों को एक दूसरे को पहचाना होगा।
कभी कस्बों और शहरों में भी बरगद हुआ करते थे ,लेकिन अब वे या तो पूरी तरह से गायब हो गए हैं या उनका संरक्षण नहीं हो पा रहा है। सुपरिचित कवि लेखक स्वर्गीय मधुकर भारती कहा करते थे पौधों, झाडिय़ों, पत्तों ,टहनियों को वनस्पति की ताकत के रूप में देखा और पूजा जाना चाहिए।
बरगद की पर्याप्त संख्या
हिमाचल व उत्तराखंड की सीमा पर बहने वाली टोंस नदी के किनारे बड़ी संख्या में बरगद के वृक्ष मौजूद हैं। यह इलाका सिरमौर और शिमला जिला में आता है। सिरमौर के रोनहाट तहसील और शिमला के कुपवी क्षेत्र के गम्मा रोहाना फेडज के आसपास काफी पेड़ हैं। 30-40 किलोमीटर के दायरे में अगर इनका संरक्षण किया जाए तो यह पूरे प्रदेश के लिए मिसाल बन सकते हैं। इन पौधों को दूसरी जगह भी रोपा जाना चाहिए। टोंस नदी के पार उत्तराखंड का जौनसार बाबर का इलाका आता है, वहां भी इनकी संख्या हिमाचल जैसी ही है।
आग से बचाने की जरूरत
जिस क्षेत्र में यह बरगद है, वहां आग लगने के खतरे बने रहते हैं। कुछ लोग जानबूझकर आग लगाते हैं। इससे इन पेड़ों को बड़ा नुकसान पहुंचता है। पर्यावरण प्रेमियों का मानना है कि ऐसे क्षेत्रों को चिन्हित कर सुरक्षित किया जाना चाहिए।
संरक्षण का प्रयास करेंगे
परिवर्तन संस्था के अध्यक्ष हेतराम ठाकुर का कहना है कि वह क्षेत्र का दौरा करेंगे। इसके बाद रिपोर्ट वन विभाग और सरकार को देंगे। संस्था भी अपने स्तर पर इनके संरक्षण के लिए प्रयास करेगी।