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    हिमाचल: पझौता में मुट्ठी भर लोगों ने हिला दी थी अंग्रेज सरकार, आंदोलन दबाने को निहत्‍थे लोगों पर बरसा दी थी गोलियां

    By Rajesh Kumar SharmaEdited By:
    Updated: Tue, 09 Aug 2022 10:32 AM (IST)

    Azadi ka Amrit Mahotsav जब भी भारत छोड़ो आंदोलन की बात होती है हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला में हुए पझौता आंदोलन की याद ताजा हो जाती है। यहां मुट्ठी भर लोग अंग्रेज सरकार व उसकी मददगार स्थानीय रियासत के आगे खड़े हो गए थे।

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    हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला में हुए पझौता आंदोलन में शामिल लोगों की पुरानी तस्‍वीर।

    नाहन, राजन पुंडीर। Azadi ka Amrit Mahotsav, जब भी भारत छोड़ो आंदोलन की बात होती है, हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला में हुए पझौता आंदोलन की याद ताजा हो जाती है। यहां मुट्ठी भर लोग अंग्रेज सरकार व उसकी मददगार स्थानीय रियासत के आगे खड़े हो गए थे। चंद लोगों से शुरू हुआ पझौता आंदोलन कुछ ही समय में गांव-गांव तक पहुंच गया था। 1942 में जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया तो लोगों का उत्साह बढ़ गया। आंदोलन का नेतृत्व स्वर्गीय वैद्य सूरत सिंह के साथ चेत सिंह, बस्तीराम पहाडिय़ा, गुलाब सिंह व मान सिंह ने आंदोलन किया। यह आंदोलन पझौता क्षेत्र से शुरू हुआ था, इसलिए इसे पझौता आंदोलन नाम दिया।

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    जिला सिरमौर स्वतंत्रता सेनानी समिति के जिला अध्यक्ष एवं स्वर्गीय वैद्य सूरत सिंह के पुत्र जयप्रकाश चौहान ने बताया 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने पझौता क्षेत्र पर सिरमौर रियासत के सैनिकों के साथ निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसाई थीं। इसमें कुछ आंदोलनकारी बलिदान हुए। 13 मई, 1942 को सुबह सात बजे पझौता क्षेत्र में मार्शल ला लागू कर दिया।

    इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने सिरमौर रियासत के सैनिकों की सहायता से 69 आंदोलनकारी गिरफ्तार किए। 14 माह के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रथम ट्रायल शुरू हुआ। इसमें 14 आंदोलनकारियों को रिहा कर दिया, जबकि 55 आंदोलनकारियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

    1945 में 55 आंदोलनकारियों की सजा को घटाकर 10, सात व पांच वर्ष कर दिया। 1946 में क्रिप्स मिशन के भारत आने से कुछ दिन पहले 25 को रिहा कर दिया। 1947 में 27 सदस्यों को फिर से रिहा कर दिया गया। फिर 15 अगस्त, 1947 को देश आजाद हुआ। देश की आजादी के बाद विभिन्न जेलों में बंद आंदोलनकारियों को धीरे-धीरे रिहा किया गया।

    उसके बाद 17 मार्च, 1948 को पझौता आंदोलन का नेतृत्व करने वाले तीन साथियों वैद्य सूरत सिंह, बस्तीराम पहाडिय़ा व जीत सिंह को रिहा किया। सूरत सिंह व उनके साथी 1943 से 1948 तक जेल में रहे।

    वैद्य सूरत सिंह निर्विरोध चुने विधायक

    आजादी के बाद हिमाचल प्रदेश में प्रथम विधानसभा के चुनाव में वैद्य सूरत सिंह 1953 से 1957 तक श्रीरेणुकाजी विधानसभा क्षेत्र से निर्विरोध विधायक चुने गए। 1967 से 1971 तक हिमाचल प्रदेश विधानसभा में मनोनीत सदस्य रहे। 1972 से 1978 तक हिमाचल प्रदेश खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष रहे।

    क्‍या कहते हैं इतिहासकार

    पझौता क्षेत्र से इतिहासकार व सेवानिवृत्त शिक्षक शेरजंग चौहान ने कहा पझौता व भारत छोड़ो आंदोलन में क्षेत्र के लोगों ने निर्णायक भूमिका निभाई है। पझौता आंदोलन को हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड ने पाठ्यक्रम में भी शामिल किया है। कई लेखकों ने पझौता आंदोलन पर पुस्तकें भी लिखी हैं।