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    कृषि विश्‍वविद्यालय पालमपुर के वैज्ञानिकों ने किसानों को धान की पनीरी लगाने व मक्की की बिजाई करने की दी सलाह

    By Richa RanaEdited By:
    Updated: Sat, 14 May 2022 12:38 PM (IST)

    प्रदेश में अब खरीफ की फसल यानि धान और मक्की की बिजाई का समय हो गया है। 15 मई के बाद खरीफ फसलों की आराम से बिजाई कर सकते हैं। कृषि विवि पालमपुर के वैज्ञानिकों ने किसानों को मई में कृषि कार्य करने कीसलाह दी है।

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    15 मई के बाद खरीफ फसलों की आराम से बिजाई कर सकते हैं।

    पालमपुर, कुलदीप राणा। हिमाचल प्रदेश में अब खरीफ की फसल यानि धान और मक्की की बिजाई का समय हो गया है। 15 मई के बाद खरीफ फसलों की आराम से बिजाई कर सकते हैं। कृषि विवि पालमपुर के विज्ञानिकों ने प्रदेश के किसानों को मई माह के दूसरे पखवाड़े में कृषि एवं पशुपालन कार्यों के बारे में सलाह दी है , जिन्हें अपनाकर प्रदेश के किसान आर्थिक तौर पर लाभान्वित हो सकते हैं।

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    धान

    रोपाई से 4 सप्ताह पहले पनीरी की बुआई करनी चाहिए। लंबी व बौनी किस्मों की पनीरी की बुआई 20 मई से 7 जून तक तथा बासमती किस्में 15 मई से 30 मई तक की जा सकती हैं। बुआई से पहले बीज का उपचार बैविस्टीन नामक दवाई (2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) से अवश्य करें। एक हैक्टेयर की नर्सरी के लिए 25-30 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। धान की अनुमोदित किस्मों जैसे आरपी-2421, एचपीआर- 2143, एचपीआर-1068, सुकारा धान-1, एचपीआर-1156, एचपीआर-2656, हिम पालम धान-1, हिम पालम धान-2, हिम पालम लाल धान-1 तथा बासमती की पालम बासमती-1 (एचपीआर-2612) व कस्तूरी इत्यादि की पनीरी ही लगाएं।

    मक्की

    अच्छी पैदावार लेने के लिए मक्की की बुआई समय पर करनी चाहिए। ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों के लिए 15 मई से जून के प्रथम सप्ताह तथा मध्य क्षेत्रों में 20 मई से 15 जून तक का समय उपयुक्त रहेगा। प्रति हैक्टेयर बीजाई के लिए 20 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है जिससे पौधे की निश्चित संख्या प्राप्त हो जाती है। बुआई केरा विधि से करनी चाहिए। पर्याप्त और सही अंकुरण के लिए मक्की के बीज को 3-5 सैंमी गहरा बीजना चाहिए। अच्छी फसल के लिए मक्की को 60 सैमी दूरी की कतारों में और बीज से बीज 20 सैंमी की दूरी पर बीजना चाहिए।

    सब्जी उत्पादन

    प्रदेश के निचले पर्वतीय क्षेत्रों में जहां पर मार्च महीने के दूसरे पखवाड़े में या इससे पहले टमाटर, बैंगन, लाल मिर्च, शिमला मिर्च या कद्दू वर्गीय फसलों की रोपाई या बीजाई हुई हो तो वहां पर इन फसलों में सब्जियों में निराई-गुड़ाई करें तथा 40-50 किग्रा यूरिया प्रति हैक्टेयर भी साथ में डालें। इन सब्जियों में 7-8 दिन के अन्तराल पर सिंचाई भी करते रहें। मध्यवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों में फूलगोभी की अगेती किस्मों की पनीरी उगाने का उपयुक्त समय है। इन्हीं क्षेत्रों में जहां टमाटर, बैंगन, मिर्च, शिमला मिर्च व लाल मिर्च की रोपाई, भिंडी, फ्रासबीन की बीजाई तथा कद्दू वर्गीय सब्जियों जैसे खीरा, करेला, घीया, तोरी, कद्दू व चप्पनकद्दू की बीजाई या रोपाई न हुई हो तो इन सभी की बीजाई या रोपाई करे।

    पौध एवं फसल संरक्षण

    टमाटर, बैंगन, लाल मिर्च तथा शिमला मिर्च आदि सब्जियों की पौध तैयार करते समय ध्यान रखें कि कमरतोड़ रोग पौध को नष्ट न कर दे । पौध को इस रोग से बचाने के लिए क्यारियों को फार्मलीन (1 लीटर फार्मलीन प्रति 8 लीटर पानी) से बीजाई से 15-20 दिन पहले शोधित करें। इस रोग के कारण बीज से पौधा बनते ही मुरझा जाता है। क्यारियों को 25 ग्राम मैनकोजैब (इण्डोफिल एम-45) और 5 ग्राम कार्बेण्डाजिम (बैवीस्टीन) को 10 लीटर पानी में घोल बनाकर पौध निकलने पर रोग के लक्षण देखते ही सींचें । सब्जियों में कटुआ कीट (टोका) की समस्या से बचाव के लिए कच्ची गोबर की खाद खेतों में न डालें तथा समस्या के गम्भीर होने पर क्लोरपाइरीफॉस 20 ईसी नामक कीटनाशक को (2 लीटर को 25 किलो ग्राम रेत में मिलाकर एक हैक्टेयर क्षेत्र में) बिजाई से पहले खेत में मिलाएं। कदूवर्गीय सब्जियों में लाल भृंग के नियन्त्रण के लिए मैलाथियान 50 ई.सी. (1.0 मिली प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें मैलाथियान 50 ईसी का छिड़काव अन्य सब्जियों में विभिन्न कीटों के नियन्त्रण के लिए भी किया जा सकता है।

    पशुधन

    पशुओं में बाह्य व आन्तरिक परजीवियों के नियंत्रण के लिए स्थानीय पशु चिकित्सक की सलाह अवश्य लें। अभी भी अपने पशुओं में खुरमुंही व गलघोंटू बीमारी के टीके लगवा सकते है । बीमारी हो जाने पर रोकथाम बहुत कारगर सिद्ध नहीं होता है। मुर्गियां गर्मियों में कम दाना खाती हैं अतः उनकी खुराक में प्रोटीन की मात्रा 2 प्रतिशत तक बढ़ा दें ताकि उत्पादन का स्तर बना रहे।

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