हमीरपुर के झनिक्कर में पहली बार मनाई गई छठ पूजा, कृत्रिम तालाब पर सूर्य वंदन; प्रवासियों ने बिखेरी संस्कृति की रौनक
हमीरपुर के झनिक्कर गांव में पहली बार छठ पूजा का सार्वजनिक आयोजन किया गया। प्रवासी लोगों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। पानी की कमी के बावजूद कृत्रिम तालाब बनाकर पूजा की गई। महिलाओं और पुरुषों ने पारंपरिक रूप से सूर्य देवता की उपासना की। आयोजकों ने भविष्य में इसे और भी भव्य बनाने की बात कही। यह आयोजन संस्कृति के प्रति गर्व और सामाजिक मेलजोल का प्रतीक बना।

हमीरपुर के झनिक्कर में पहली बार छठ पूजा (फोटो: जागरण)
संवाद सहयोगी, टौणीदेवी। हमीरपुर जिले के छोटे गांव झनिक्कर में मंगलवार सुबह पहली बार सार्वजनिक रूप से छठ पूजा का आयोजन किया गया, जिसमें प्रवासी लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया और उत्साह का नजारा देखने लायक रहा। इस अनूठे आयोजन में अपने गांव से बाहर सांस्कृतिक एकजुटता और परंपराओं के प्रति नई ऊर्जा देखने को मिली ।
कृत्रिम तालाब बनाकर आयोजित इस छठ पूजा में महिलाओं और पुरुषों ने पारंपरिक व्रत, प्रसाद और के साथ सूर्य देवता की उपासना की। आयोजन की शुरुआत अरघ्य देने से पहले संध्या व्रत और सांझ के गीतों के साथ हुई, और प्रातःकालीन अरघ्य के समय नहा-धोकर बने पवित्र स्थान पर भक्तों की भीड़ उमड़ी। आयोजन में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी की भागीदारी रही।
आयोजन के मुख्य संयोजक विजय कुमार यादव ने बताया कि यह हमारा पहला सार्वजनिक छठ आयोजन है हमारा उद्देश्य इस पवित्र परंपरा को गाँव में परिचित कराना और सभी को जोड़ना था।
एक महिला ने कहा कि हमने अपने शहर से दूर होने के बावजूद अपनी अगली पीढ़ी को यह परंपरा दिखाने का फैसला किया । आज का अनुभव बेहद भावुक कर देने वाला था।
रघुनाथ, दिनेश, गरीबदास ने आयोजन की सराहना की और कहा कि भविष्य में इसे और व्यवस्थित रूप देकर बड़ा आयोजन बनाया जाएगा। पूजा स्थल पर साफ-सफाई और पंडाल की व्यवस्था मिलकर की गई। प्रसाद में अरवा-गुड़, फल, ठेकुआ और स्थानीय पकवान परोसे गए।
पहली बार होने वाला ऐसा आयोजन स्थानीय संस्कृति के प्रति नए गर्व और सामाजिक मेलजोल का कारण बना। कई परिवारों ने भविष्य में इसे वार्षिक परंपरा बनाने की इच्छा जताई है। युवा वर्ग ने भी संगीत और सांस्कृतिक प्रस्तुति देकर आयोजन को जीवंत बनाया।
छठ पूजा सूर्यदेव व छठी माताजी को समर्पित एक प्राचीन व्रत है जिसे मुख्यतः बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश तथा नेपाल में बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। झनिक्कर में इस पूजा का आयोजन दर्शाता है कि परंपराओं का फैलाव अब छोटे-छोटे समुदायों तक भी पहुंच रहा है।

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