हिमाचल में सज गए मां के दरबार, नवरात्रि में करें प्रसिद्ध मंदिरों में दर्शन; प्राकृतिक सुंदरता का भी लें आनंद
चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है और हिमाचल प्रदेश के मंदिर श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रहे हैं। कांगड़ा जिले में स्थित श्री बज्रेश्वरी देवी मां चामुंडा देवी और मां ज्वालाजी के मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं। इन शक्तिपीठों के बारे में जानें और हिमाचल प्रदेश की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं। भक्तों के लिए माता का दरबार सज गया है।

जागरण संवाददाता, धर्मशाला। यूं तो साल में चार तरह के नवरात्र आते हैं, लेकिन चैत्र और शरद ऋतु में आने वाले नवरात्र का खास महत्व है। चैत्र और शारदीय के अलावा दो गुप्त नवरात्र (माघ और आषाढ़) होते हैं। नववर्ष के पंचांग की गणना भी इन्हीं नवरात्र से की जाती है। इसलिए इनका महत्व अधिक है।
30 मार्च से चैत्र नवरात्र शुरू हो रहे हैं, इसलिए इस बार हिमाचल में देवी दर्शन के साथ यहां मैदानी इलाकों के मुकाबले थोड़ी ठंड का भी अहसास होगा और प्राकृतिक नजारे आपको आनंदित कर देंगे। नवरात्र का अर्थ है- नौ रातें, जिसमें मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की आराधना होती है।
हिमाचल में कई देवियों के मंदिर हैं, लेकिन कांगड़ा जिले में श्री बज्रेश्वरी देवी, मां चामुंडा देवी और मां ज्वालाजी के मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं। आइए जानें इन शक्तिपीठों के बारे में...
मां बज्रेश्वरी देवी मंदिर
कांगड़ा का बज्रेश्वरी देवी शक्तिपीठ को नगरकोट धाम भी कहा जाता है। 51 शक्तिपीठों में से यह मां की वह शक्तिपीठ है, जहां मां सती का दाहिना वक्ष गिरा था। माता के इस धाम में मां की तीन पिंडियां हैं। मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित पहली और मुख्य पिंडी मां बज्रेश्वरी की है।
दूसरी मां भद्रकाली और तीसरी और सबसे छोटी पिंडी मां एकादशी की है। मां की इस शक्तिपीठ में ही उनके परम भक्त ध्यानु ने अपना शीश अर्पित किया था। इसलिए मां के वे भक्त जो ध्यानु के अनुयायी भी हैं वह पीले रंग के वस्त्र धारण कर मंदिर में आते हैं। मां के इस दरबार में पांच बार आरती का विधान है।
ज्वालामुखी मंदिर
ज्वालामुखी मंदिर को ज्वालाजी के रूप में भी जाना जाता है। यह जिला कांगड़ा के दक्षिण में 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां मां के मुख से अग्नि का प्रवाह होता है।
इस मंदिर में अग्नि की अलग-अलग छह ज्योतियां हैं, जो अलग-अलग देवियों को समर्पित हैं जैसे महाकाली अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका और अंजी देवी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां देवी सती की जीभ गिरी थी। यहां ज्योति स्वरूप मां की लपटें एक पर्वत से निकलती हैं।
श्री चामुंडा नंदीकेश्वर धाम
चामुंडा देवी मंदिर भी कांगड़ा में स्थित है। जिला मुख्यालय धर्मशाला से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर बनेर खड्ड (नदी) के किनारे स्थित यह मंदिर 700 साल पुराना है। कहते हैं कि मां ने यहां चंड और मुंड नामक दो असुरों का संहार किया था, इसी कारण माता का नाम चामुंडा देवी पड़ गया।
यहां साथ ही में एक गुफा के अंदर भगवान शिव भी नंदीकेश्वर के नाम से विराजमान हैं। ऐसे में इस स्थान को चामुंडा नंदीकेशवर धाम भी कहा जाता है।
चिंतपूर्णी देवी
कांगड़ा से करीब 60 किलोमीटर दूर ऊना जिले में सोलह सिंगी श्रेणी की पहाड़ी पर मां चिंतपूर्णी भव्य मंदिर है। चिंतपूर्णी देवी का एक बार दर्शन मात्र करने से सभी चिंताओं से मुक्ति मिलती है इसे छिन्नमस्तिका देवी भी कहते हैं। यहां पर माता सती के चरण गिरे थे।
ऐसे पहुंचें कांगड़ा
पठानकोट से कांगड़ा की दूरी करीब 110 किलोमीटर है। मंडी-पठानकोट मार्ग पर स्थित कांगड़ा के लिए बसें उपलब्ध रहती हैं। पठानकोट-जोगेंद्रनगर नैरोगेज रेललाइन पर भी कुछ ट्रेनों की सुविधा है। गगल (कांगड़ा) हवाई अड्डा भी बज्रेश्वरी देवी मंदिर से महज 11 किलोमीटर दूर है।
गगल हवाई अड्डे पर दिल्ली से अभी छह फ्लाइट की सुविधा है। 30 मार्च से सायं 5.20 से एक फ्लाइट और दिल्ली के लिए शुरू होगी। यह विमान पांच बजे दिल्ली से यहां पहुंचेगा और 5.20 पर दिल्ली के लिए रवाना हो जाएगा।
दिल्ली से हिमाचल की सरकारी परिवहन हिमसुता के अलावा कई निजी लग्जरी बसों में मजह 1200 रुपये खर्च करके यहां पहुंच सकते हैं। जिस भी मंदिर की यात्रा पर जाएं वहां कई प्रकार के होटल आसानी से मिल जाते हैं। हर मंदिर में सराय की व्यवस्था है।
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