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    पहाड़ी संस्कृति के बीच इजरायल की जीवन शैली

    By Munish DixitEdited By:
    Updated: Sat, 14 Jul 2018 03:06 PM (IST)

    धौलाधार के आंचल में बसे धर्मशाला शहर की खूबसूरती के बारे में तो आप परिचित हैं, लेकिन इसके आसपास ऐसे स्थान भी हैं जहां पहाड़ों के बीच विदेशी जीवनशैली न ...और पढ़ें

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    पहाड़ी संस्कृति के बीच इजरायल की जीवन शैली

    धौलाधार के आंचल में बसे धर्मशाला शहर की खूबसूरती के बारे में तो आप परिचित हैं, लेकिन इसके आसपास ऐसे स्थान भी हैं जहां पहाड़ों के बीच विदेशी जीवनशैली नजर आती है। धर्मशाला से महज नौ किलोमीटर दूरी पर मैक्लोडगंज से तिब्बती संस्कृति की झलक मिल जाती है। यहां से महज दो किलोमीटर की दूरी पर धर्मकोट नामक एक ऐसा स्थान है, जहां आपको केवल इजरायल के पर्यटक ही नजर आएंगे। यहां के रेस्तरां से लेकर दुकानें सबकुछ इजरायली रंग में रंगे हुए हैं। इस कारण इसे मिनी इजरायल भी कहा जाता है।

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    ग्लोबल विलेज की संज्ञा भी पा चुका है धर्मकोट

    धर्मकोट को मिनी इजरायल, ग्लोबल विलेज व ग्लोबल स्ट्रीट का नाम भी दिया जा चुका है। यहां अलग अलग सोच का संगम है। पर्यटकों की जीवन शैली, खानपान अलग है। विकसित देशों का पर्यटक यहां सभ्यता के हिसाब से पाषाण सभ्यता में चला जाता है। यहां पहुंचने वाले पर्यटक चिंतन व मनन में लीन रहते हैं। कुछ लोग इसे नशे का गढ़ भी कहते हैं, लेकिन ऐसा अब बहुत कम नजर आता है।

    कबाद हाउस में सिर्फ इजरायली को ही प्रवेश

    धर्मकोट गांव में इजरायली मूल के लोगों का ही साम्राज्य है। यहां इन लोगों का च्कबाद हाउसज् यानी पूजा स्थल है। कबाद हाउस में केवल इजरायल से आने वाले लोग ही भीतर प्रवेश कर सकते हैं जबकि भारतीयों के भीतर जाने पर पूर्ण प्रतिबंध है। यह गांव वैसे तो भारतीय है, लेकिन यहां के हर घर में विदेशी दिखना आम है। नगर निगम धर्मशाला के अधीन आने वाला यह गांव एक छोटी सी गली के दोनों किनारों पर बसा है। यहां आपको इजरायली मूल के ही लोग देखने को मिल जाएंगे। कोई रेस्तरां में खाना खाते हुए तो कोई यहां मौजूद आभूषणों की दुकानों में आभूषण देखते हुए तो कोई यहां के पहाड़ी शैली में निर्मित घरों से झांकते हुए। इसके अलावा योग, ध्यान व रेकी के कई केंद्रों में भी इजरायल के पर्यटक ही दिखते हैं। धर्मकोट के पूर्व मनोनीत पार्षद अशोक पठानिया बताते हैं कि 1990 में यहां पर्यटक आना शुरू हुए थे और अब हर साल यहां आते रहते हैं। यह लोग भीड़ भाड़ से दूर शांति में रहना पसंद करते हैं इसलिए यहां देवदार से घिरे इलाके में रहते हैं।

    कैसे पहुंचें

    यहां तक पहुंचने के लिए सड़क व वायु मार्ग है। धर्मशाला व मैक्लोडगंज के लिए दिल्ली, पठानकोट, चंडीगढ़, गंगानगर व जम्मू से सीधी बस सेवा है। इसके अलावा धर्मशाला से 15 किलोमीटर दूरी पर गगल नामक स्थान पर कांगड़ा एयरपोर्ट भी है। यहां रोजाना दिल्ली से फ्लाइट आती है। रेल मार्ग के लिए धर्मशाला से ब्राडगेज का सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन 86 किलोमीटर दूर पठानकोट में है। पठानकोट से जोगेंद्रनगर के बीच नैरोगेज रेलमार्ग के जरिये भी पर्यटक टॉय ट्रेन का आनंद लेते हुए चामुंडा मार्ग या कांगड़ा रेलवे स्टेशन से धर्मशाला तक पहुंच सकते हैं।

    कहां ठहरें

    धर्मशाला, मैक्लोडगंज, भागसूनाग, नड्डी व धर्मकोट में कई होटल, गेस्ट हाउस मौजूद हैं। यहां आराम से ठहरा जा सकता है लेकिन पर्यटन सीजन में यहां पहले से बुकिंग करवाकर आना ही बेहतर होता है।

    धर्मशाला आने के लिए अप्रैल से जून और सितंबर से जनवरी तक का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। पर्यटन के लिहाज इस दौरान यहां का तापमान अनुकूल रहता है।

    प्रस्‍तुत‍ि - मुनीष दीक्ष‍ित।