तन से जरूरी मन की सुंदरता का सौंदर्यबोध
तन की सुंदरता से मन की सुंदरता व्यक्तित्व के लिए अधिक महत्व रखती है। तन की सुंदरता अस्थिर है लेकिन म
तन की सुंदरता से मन की सुंदरता व्यक्तित्व के लिए अधिक महत्व रखती है। तन की सुंदरता अस्थिर है लेकिन मन की सुंदरता जीवन की अंतिम सांस तक ही नहीं जीवन पर्यत भी लोगों के लिए प्रेरणा बनकर जीवंत रहती है। 'सत्यम शिवम सुंदरम' पूरी तरह से सुंदरता का बोध करवाता है। इसका अभिप्राय है कि जो सत्य है वास्तव में वह ही कल्याणकारी है और जो कल्याणकारी है वही सुंदर है। इसलिए सौंदर्यबोध को केवल तन की सुंदरता से आकलन करना तार्किक ही नहीं है। इसमें कल्याण और सत्य के बोध को भी समाहित करना होगा। वर्तमान में बदलती आधुनिकवाद की धारणाओं में केवल सौंदर्य को मानव ने अपने तक ही सीमित कर दिया है। आलम यह है कि अब तो युवा वर्ग ही नहीं बल्कि बच्चों में भी इसका प्रभाव देखने को मिलता है। वह जब दूसरे बच्चों के पहराने व रहन-सहन को देखता है तो वह भी उसी प्रकार से मांग करता है। इसमें अभिभावकों की भी भूमिका कम नहीं है। वह बचपन से बच्चे को संस्कारों की बजाए केवल सौंदर्य पर ही अधिक ध्यान देते हैं। वर्तमान में हर किसी को केवल दूसरों से अधिक सुंदर दिखने की अवधारणा पैदा हो गई है। इससे युवा वर्ग को फैशन की प्रवृति ने इस प्रकार से जकड़ लिया है कि वह केवल अपने आप तक ही सीमित होकर रह गया है। आज उसकी फैशन की मानसिकता का ही असर है कि वह सुंदरता के दो अन्य मूल मंत्रों सत्य से आत्मसात और मानव कल्याण को भूल चुका है। अब फुर्सत के क्षणों में कहीं भी अपने कैरियर या जन कल्याण की बातों की बजाए केवल वह बाजार में आने वाले नए फैशन के उत्पादों की जानकारी की बातें अधिक होती हैं। इसके अलावा अगर कोई बात करता है तो उसे दकियानूसी विचारों की संज्ञा देने से भी नहीं चूका जाता। इससे नैतिक मूल्यों में भी लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। वर्तमान में सौंदर्य की सही परिभाषा से युवा वर्ग को अवगत करवाने की जरूरत महसूस की जा रही है लेकिन जो सौंदर्य का बोध प्रकृति से होता है उसका मूल्यांकन ही नहीं किया जा सकता। सौंदर्य के लिए प्रकृति से भी सीख लेने की आवश्यकता है। प्रकृति किसी के भी सौंदर्य का अनुसरण नहीं करती। झरने, कल-कल करती नदियां, पहाड़ो पर हरियाली की छटा और गगनचुंबी पर्वतों पर चांदी सी बर्फ केवल अपने-अपने सौंदर्य से ही आकर्षित करती है। शायद प्रकृति अपने सौंदर्य से मानव को सत्यम शिवम सुंदरम का ही संदेश देती हैं इसलिए सौंदर्यबोध के लिए प्रकृति से संदेश लेना आवश्यक है।
-पी. शिवपुरी, प्रधानाचार्य
डीएवी सीनियर सेकेंडरी स्कूल नरवाणा, योल कैंट।
(जैसा राकेश पठानिया को बताया)
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मन की सुंदरता जरूरी
मन की सुंदरता ही वास्तव में सुंदरता का सही अर्थ है। अच्छे परिधान पहनने से ही कोई सुंदर नहीं बन जाता। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि उसका व्यवहार भी सुंदर हो और आचरण भी सुंदर होना चाहिए।
-आशिना, छात्रा
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मानव कल्याण ही सौंदर्यबोध
सुंदरता का वास्तविक स्वरूप ही मानव कल्याण है। कल्याण की भावना जो मानव के जीवन को सौंदर्य का रूप देती है वह ही अमिट रहती है। तन की सुंदरता तो क्षणभंगुर है। कभी भी नष्ट हो सकती है।
-केशव बाली, छात्र
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सत्य ही सुंदर है
प्रकृति ने जो दिया है उससे सुंदर कुछ भी नहीं है। इस सत्य को आत्मसात कर मन को सुंदर बनाने की आवश्यकता है। अच्छा चरित्र जो जीवन को सौंदर्य प्रदान करता है वह मेकअप सा अच्छे परिधानों से नहीं पाया जा सकता। हमें चरित्र के सौंदर्य का निर्माण करना चाहिए।
-नीरज जरयाल, छात्र
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संस्कारित जीवन ही मानव का सौंदर्य
संस्कारित जीवन ही मानव का असली सौंदर्य है। मनुष्य के गुण ही उसके आभूषण हैं और संस्कार उसके सौंदर्य के विभिन्न अलंकार। यही मानव जीवन के सौंदर्य की सच्ची अनुभूति करवाते हैं इसलिए हमें अप्राकृतिक सौंदर्य की बजाए प्राकृतिक सौंदर्य से आत्मसात कर सदगुणों को जीवन का ध्येय बनाना होगा।
-नितिका धीमान, छात्र
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