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    सिनेमा मनोरंजन ही नहीं ज्ञान का भी साधन

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    Updated: Fri, 15 May 2015 05:19 AM (IST)

    जागरण संवाददाता, धर्मशाला : सिनेमा महज मनोरंजन ही नहीं बल्कि ज्ञान प्राप्ति का साधन भी है। हम जो आज

    जागरण संवाददाता, धर्मशाला : सिनेमा महज मनोरंजन ही नहीं बल्कि ज्ञान प्राप्ति का साधन भी है। हम जो आज सीख रहे हैं वे बारीकियां व तकनीक हमारे काम भी आएंगी। फिल्म को केवल फिल्म के रूप में ही न लें। यह भी ध्यान रखें कि कैसे फिल्म का निर्माण होता है और कैसे बनाई गई स्क्रिप्ट को दृश्यों से फिल्माया जाता है। यह तकनीकी ज्ञान बहुत जरूरी है और इन सभी चीजों को सीखकर ही कोई भी अपने जीवन में बेहतर कलाकार, फिल्म निर्माता, निर्देशक या कथाकार बन सकता है। मैक्लोडगंज में तीन दिवसीय फिल्म प्रोत्साहन कार्यशाला के समापन पर यह जानकारी फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया पुणे के प्रोफेसरों सहित बांग्ला फिल्म के निर्माता बुद्धदेव दास गुप्ता सहित अन्य अन्य वक् ताओं ने दी।

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    वीरवार को डॉक्यूमेंटरी फिल्में दिखाई गई। इस दौरान क्रोध पर आधारित एक डाक्यूमेंटरी फिल्म को सराहा गया। इसके माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया कि गुस्सा अपने आप व दूसरों के लिए भी खराब है। हम कैसे गुस्से पर नियंत्रण पा सकते हैं। फिल्मों के अवलोकन के बाद युवा पीढ़ी सहित कार्यशाला में भाग ले रहे लोगों ने फिल्म निर्देशकों से फिल्म निर्माण, स्क्रिप्ट व शूटिंग को लेकर चर्चा की। फिल्म प्रोत्साहन कार्यशाला का समापन बुद्धदेव दास गुप्ता ने किया। समापन पर भाषा एवं संस्कृति विभाग के निदेशक डॉ. अरुण शर्मा, हिमाचल प्रदेश संग्रहालय शिमला से एमएस नेगी, जिला भाषा एवं संस्कृति अधिकारी शिमला त्रिलोक सूर्यवंशी, जिला भाषा एवं संस्कृति अधिकारी प्रवीण मनकोटिया, पुणे इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर इंद्रनील भट्टाचार्य व फिल्म अनुसंधान अधिकारी चंद्र शेखर जोशी विशेष रूप से मौजूद रहे।

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    'पहली बार धर्मशाला में फिल्म प्रोत्साहन कार्यशाला हुई है और इसका उद्देश्य फिल्म निर्माण से संबंधित प्रशिक्षण युवाओं को प्रदान करना है। जो युवा सिनेमा के क्षेत्र में जाना चाहते हैं, के लिए कार्यशाला उपयोगी सिद्ध होगी। अन्य जिलों में भी ऐसी कार्यशालाओं का आयोजन निकट भविष्य में होगा। प्रदेश की संस्कृति को सहेजने में कार्यशाला लाभकारी सिद्ध होगी'

    -डॉ. अरुण शर्मा, निदेशक भाषा एवं संस्कृति विभाग।

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    क्षेत्र कोई भी हो, काम में स्थिरता जरूरी : बुद्धदेव

    धर्मशाला : व्यक्तिजीवन में कोई भी कार्य क्षेत्र चुने लेकिन वह तभी सफल हो पाता है जब उसमें स्थिरता का भाव होगा। कला व्यक्तिके अंदर ही छिपी होती है बस उसे निखारने के लिए मंच या व्यक्ति में जज्बा होना चाहिए। सिनेमा महज मनोरंजन ही नहीं बल्कि यह ऐसा आईना है जो कि हमें अच्छे-बुरे की पहचान करवाता है। यह बात बांग्ला फिल्म निर्माता, साहित्यकार व पटकथा लेखक बुद्धदेव दास गुप्ता ने दैनिक जागरण से अनौपचारिक बातचीत में कही।

    उन्होंने कहा कि सोच ही हमें शिखर तक पहुंचा देती है। किसी भी क्षेत्र में जाने के लिए हमें पहले आपको तैयार करने की जरूरत है। बकौल गुप्ता, अगर आप में काबिलियत है तो आपको किसी भी इंस्टीट्यूट में दाखिला लेने की जरूरत नहीं होगी। सिनेमा जीवन पर भी प्रभाव डालता है। अच्छी फिल्म आपके जीवन को बदल सकती है और आप एक अच्छे इंसान बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार का यह सराहनीय कदम है।

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    प्रोफेसर से बने फिल्म निर्माता निर्देशक

    पश्चिम बंगाल के अनारा गांव में 1944 में जन्मे बुद्धदेव दास गुप्ता को शुरू से ही सिनेमा का शौक रहा है। पढ़ाई के बाद वह हिसाब व अर्थशास्त्र के प्रोफेसर भी रहे, लेकिन सिनेमा का शौक उन्हें इस क्षेत्र में खींच लाया। 1976 में उन्होंने सिनेमा के क्षेत्र में कदम रखा और अपना नाम भी इस क्षेत्र में बनाया। वह अब तक 35 फिल्मों को निर्देशित कर चुके हैं। 14 फिल्में उन्होंने लिखी हैं।