पांगी के मंदिरों के कपाट बंद
घाटी में उत्तरायण के नाम से मनाई जाती है मकर संक्रांति -मकर संक्रांति से फाल्गुन माह क ...और पढ़ें

घाटी में उत्तरायण के नाम से मनाई जाती है मकर संक्रांति
-मकर संक्रांति से फाल्गुन माह की संक्रांति तक राक्षस राज कृष्ण चंद राणा, पांगी
मकर संक्रांति का पर्व पांगी में धूमधाम से मनाया गया। मकर संक्रांति से माघ का महीना शुरू होता है। माघ को सबसे सर्द महीने के तौर पर भी जाना जाता है। पांगी में मकर संक्रांति को उत्तरायण के नाम से भी मनाया जाता है। उत्तरायण के दिन मंदिरों के कपाट बंद हो जाते हैं। मान्यता है कि कपाट बंद होने के बाद माता मलासनी व सिद्धबाबा को छोड़कर समस्त देवी-देवता चार माह के लिए प्रवास पर स्वर्ग लोक जाते हैं। मकर संक्रांति के साथ कई किवदंतियां भी जुड़ी हुई है। किवदंतियों के अनुसार मकर संक्रांति से फाल्गुन माह की संक्रांति तक समस्त पांगी में राक्षस राज रहता है, जिसके चलते लोग अकेले एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा नहीं करते हैं।
किवदंती और जनश्रुति के मुताबिक इस दिन से सूर्य उत्तरायण में आता है। हालांकि, सर्दियों में मनाए जाने वाले त्योहारों के दौरान कुछ मंदिरों में पूजा अर्चना की जाती है। मकर संक्रांति के दिन भगवान भोलेनाथ को पांगी के लोग शितराज और शितबुड़ी के नाम से पूजते हैं। कैलाश पर्वत से नीचे आकर एक माह तक चंद्रभागा नदी में प्रवास करते हैं। इस दौरान उनके गण मानव जाति की सुरक्षा का जिम्मा लेते हैं। यह फाल्गुन माह के संक्रांति को चंद्रभागा नदी से शिवगणों की ओर से निकाल कर पड़ाव में ठहरने के बाद 15 दिन के बाद कैलाश पर्वत पर पहुंचते हैं। शितराज, शितबुड़ी के कैलाश पर्वत से चंद्रभागा में प्रवेश करने से लेकर फाल्गुन माह की 15 तक पांगी में शीतलहर जोरों पर रहती है तथा पानी जम जाता है। चंद्रभागा पर पानी की मोटी परत जम जाती है। आस्था के मुताबिक फाल्गुन माह की 15 तारीख को नागलोक में एक हवन कुंड प्रज्वलित हो जाता है। उसके बाद मतलोक (धरती) पर गर्मी आ जाती है। सिद्ध बाबा किरयूनी के पुजारी रूप सिंह ठाकुर बताते हैं कि मकर संक्रांति का पांगी में अपना ही अलग महत्व है।

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