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गजब! चंबा की महिलाओं के हुनर का कमाल, सुई और रेशम के धागों से जीवंत हो उठते हैं रूमाल; लाखों में जाती है कीमत

Himahal Pradesh News हिमाचल प्रदेश के चंबा की महिलाएं अपने हुनर से प्रदेश की कला और संस्कृति को एक अलग पहचान देने में जुटी हैं। दरअसल महिलाएं सुई और रेशम के धागों से इस पर अपनी कढ़ाई का जादू बिखरेती हैं तो इस रूमाल की कीमत ढाई सौ से एक लाख रुपये तक पहुंच जाती है। चंबा इन दिनों अपनी इस कला...

By Jagran News Edited By: Prince Sharma Published: Sat, 10 Feb 2024 09:47 AM (IST)Updated: Sat, 10 Feb 2024 09:47 AM (IST)
Himachal Pradesh News: सुई और रेशम के धागों से जीवंत हो उठते हैं रूमाल

विकास शर्मा, चंडीगढ़। सच ही कहते हैं कि हुनर की कोई कीमत नहीं होती है। अक्सर 50 से 100 रुपये में मिलने वाले रूमाल पर जब चंबा की महिलाएं सुई और रेशम के धागों से इस पर अपनी कढ़ाई का जादू बिखरेती हैं तो इस रूमाल की कीमत ढाई सौ से एक लाख रुपये तक हो जाती है।

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सेक्टर -34 स्थित एग्जिबिशन ग्राउंड में आयोजित सरस मेले में चंबयाली सामान का स्टाल लगाने वाली पूनम ठाकुर ने बताया कि उनके स्टाल ने लगाए चंबा रूमाल की कीमत 10 हजार रूपये हैं। इस रूमाल को बनाने में उन्होंने 20 से 25 दिन काम किया है। कई बार तो इससे भी ज्यादा समय लग जाता है। यह बेहद बरीकी का काम है। चंबा रूमाल को वर्ष 2007 में भौगोलिक संकेत (जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग ) के तहत विशेष उत्पाद के तौर पर स्थापित किया गया है।

चंबा रूमाल पर दिखती है हिमाचल संस्कृति

ऐसा कहा जाता है जब मुगल शासन अपने आखिरी दौर में था, तो कई कलाकार दिल्ली छोड़कर पहाड़ी रियासत चंबा में आ गए थे। इन्हें चंबा के राजा उम्मेद सिंह ने अपनी रियासत में जगह दी थी, जबकि कुछ लोग चंबा रूमाल पहाड़ी संस्कृति का हिस्सा है यह कांगड़ा जिले की गुलेर रियासत से आया है। चंबा रूमाल में पेंटिंग्स में कृष्ण लीलाएं, महाभारत और रामायण से जुड़े चित्र, गणेश बंदना, शिव पार्वती से जुड़े चित्र प्रमुख हैं। इसके अलावा फूल पत्तियां और गद्दी -गद्दीन और भेड़ों की चित्रण प्रमुख हैं।

दोनों तरफ एक जैसा दिखता है चंबा रुमाल

चंबा रुमाल की खासियत एक और खासयित होती है। इस रूमाल में दोनों तरफ एक तरह की ही कलाकृति बनकर उभर कर सामने आती हैं। ऐसा किसी भी अन्य किसी शैली में देखने को नहीं मिलता है, जिसमें रुमाल में दोनों तरफ एक ही तरह का चित्र नजर आए, इसके लिए कारीगर महिलाओं को खासी मेहनत करनी पड़ती है। रेशम के धागे से सूती व रेश्मी कपड़े पर कढ़ाई होती थी।

पूनम बताती हैं कि अब महिलाएं शाल, दुप्पटों, टोपियों और सिल्क फैब्रिक पर भी ये काम कर रही हैं। इसमें डबल साटन स्टिच (दो रुख टांका) का प्रयोग किया जाता है, जिसकी वजह से कपड़े के दोनों तरफ कढ़ाई उभर आती है जो एक समान लगती है। इसे बेहद आकर्षक फ्रैम में सजाकर बेचने के लिए बाजार में उतारा जाता है ताकि यह हमेशा आपके लिए कीमती बना रहे।

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