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    हरियाणा में 530 प्रकार के पक्षियों का बसेरा, 57 विलुप्त होने की कगार पर; शोध में चौंकाने वाला खुलासा

    Updated: Mon, 22 Dec 2025 11:04 AM (IST)

    हरियाणा में 530 प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं, जिनमें से 57 प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। डॉ. राजीव कलसी के शोध के अनुसार, कीटनाशकों का उपयोग ...और पढ़ें

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    पक्षियों की 57 प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर (फाइल फोटो)

    जागरण संवाददाता, यमुनानगर। हरियाणा में 530 प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं, जिनमें से 57 प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। यह जानकारी एमएलएन कालेज के जूलोजी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा. राजीव कलसी के एक शोध में सामने आई है। उन्होंने अपनी किताब 'बर्ड ऑफ हरियाणा फील्ड गाइड' में बताया है कि खेती में पेस्टिसाइड (कीटनाशक) के उपयोग और वनों की कटाई के कारण कई दुर्लभ प्रजाती के पक्षी प्रदेश छोड़कर अन्य जगहों पर बसेरा ले रहे हैं।

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    उन्होंने 602 पन्नों की इस किताब में पक्षियों की पहचान, आदत, रहन-सहन और यह मिलने वाले वाले क्षेत्र का विशेष तौर पर विवरण दिया है।

    कालेसर में सबसे ज्यादा प्रजाति के पक्षी

    डा. राजीव कलसी के अनुसार, 25 हजार एकड़ में फैले कलेसर राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य में करीब 400 प्रकार के पक्षी हैं। 

    यहां के साल और अन्य पेड़ उन्हें घोंसला, छाया और भोजन प्रदान करते हैं। इसके अलावा यमुना नदी, हथनीकुंड बैराज, दादुपुर, पश्चिमी यमुना नहर, पंचकूला, पिंजौर, करनाल, पानीपत, सोनीपत, रोहतक, फरीदाबाद, गुरुग्राम, झज्जर, हिसार, सिरसा सहित पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों में भी अलग-अलग प्रजाति के पक्षी मिलते हैं।

    हिमाचल के स्पीति में चल रहा शोध

    किताब 'बर्ड ऑफ हरियाणा फील्ड गाइड' में डा. कलसी ने बताया है कि जंगलों में शोध के दौरान पक्षियों के ज्यादातर फोटो उन्होंने खुद खींचे हैं। रिसर्च करते समय कई बार उन्हें हाथी और तेंदुए से सामना भी करना पड़ा। एक बार हाथी दस कदम की दूरी पर आ गया था, लेकिन सावधानी से रास्ता बदलकर वह सुरक्षित लौट आए।

    अभी वह हिमाचल के स्पीति में माइनस 34 डिग्री सेल्सियस व बर्फीली हवाओं में रहकर वन्यजीवों पर शोध कर रहे हैं। वहां की जानकारी और वीडियो जुटाने में लगे हैं।

    57 पक्षियों की प्रजाति पर संकट

    शोध में सामने आया कि 57 पक्षियों की प्रजाति लुप्त होने की कगार पर हैं। इनमें वाइट वीक्ड वल्चर, रेड हेडिड वल्चर, वाइर्स पोचर्ड, बेकल टीएल, लेसर एडजुटेंट, सोशिएबल लेपविंग, बार टेल्ड गोडविट, वाइट टेल्ड सी इगल, रुफोस वेंटिड ग्रास बाब्बलर, कश्मीरी फ्लाईकैचर, अलेग्सेंड्राइन पारकीट, लागर फालकान, रेड नेक्ड फालकान, आरिएंटल पिड होर्नविल, ग्रेट होर्नबिल, पालास फिश इगल, ग्रे हेडिड फिश इगल, इस्टर्न इम्पीरियल इगल, स्टेपे इगल, इंडियन स्पटिड ईगल, ग्रेटर स्पाटड इगल, सिनेरिअस वल्चर, हिमालयन वल्चर, इजिप्टियन वल्चर, ब्लैक बेलिड टर्न, इंडियन स्किमर, एशियन डाविचर, कूलव सांटपिपर, रिवर लापविंग और ग्रेट थिक-नी शामिल हैं।

    डा. राजीव कलसी ने बताया कि खेती में पेस्टीसाइड का बढ़ता उपयोग, पेड़ों की कटाई होने से पक्षी तेजी से गायब हो रहे हैं।