क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस का समुचित इलाज
कॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सी.ओ.पी.डी.) फेफड़े की एक प्रमुख बीमारी है, जिसे आम भाषा में क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस भी कहते हैं। देश में संप्रति लगभग 1.7 करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। कारण: यह बीमारी प्रमुख रूप से धूम्रपान बीड़ी, सिगरेट, हुक्का और चिलम का प्रयोग

कॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सी.ओ.पी.डी.) फेफड़े की एक प्रमुख बीमारी है, जिसे आम भाषा में क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस भी कहते हैं। देश में संप्रति लगभग 1.7 करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं।
कारण: यह बीमारी प्रमुख रूप से धूम्रपान बीड़ी, सिगरेट, हुक्का और चिलम का प्रयोग करने वालों को होती है। इसके अतिरिक्त ऐसे लोग जो धूल, धुआं, गर्द व प्रदूषित वातावरण के प्रभाव क्षेत्र में रहते हैं, उन्हें भी इस बीमारी के होने का खतरा होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जो महिलाएं चूल्हे या अंगीठी पर खाना बनाती हैं, उन्हें भी यह रोग हो जाता है। प्राय: यह बीमारी 30 से 40 वर्ष की आयु के बाद शुरू होती है। इस साल सी.ओ.पी.डी डे की थीम 'इट्स नॉट टू लेट' है, जिसका आशय है कि इस रोग से ग्रस्त लोगों के इलाज के लिए अभी देरी नहींहुई है। जिन लोगों ने धूम्रपान अभी तक नहीं छोड़ा है, वे इस लत को छोड़ दें। उन्हें इस बुरी आदत को छोड़ने का अवश्य लाभ मिलेगा।
लक्षण
-सुबह के वक्त खांसी आना। धीरे-धीरे यह खांसी बढ़ने लगती है और इसके साथ बलगम भी निकलने लगता है।
-सर्दी के मौसम में खासतौर पर यह तकलीफ बढ़ जाती है। बीमारी की तीव्रता बढ़ने के साथ ही रोगी की सांस फूलने लगती है और धीरे-धीरे रोगी सामान्य कार्य जैसे- नहाना, धोना, चलना-फिरना, बाथरूम जाना आदि में भी अपने को असमर्थ पाता है।
-पीड़ित व्यक्ति का सीना आगे की तरफ निकल आता है। रोगी फेफड़े के अंदर रुकी हुई सांस को बाहर निकालने के लिए होंठों को गोल कर मेहनत के साथ सांस बाहर निकालता है, जिसे पर्स लिप ब्रीदिंग कहते हैं।
-गले की मांसपेशियां उभर आती हैं और शरीर का वजन घट जाता है।
-पीड़ित व्यक्ति को लेटने में परेशानी होती है। इस बीमारी के साथ हृदय रोग होने का भी खतरा बढ़ जाता है।
धूम्रपान से फेफड़ों को नुकसान
धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के फेफड़ों में सूजन आने लगती है। बलगम जमा हो जाता है और फेफड़े की सामान्य संरचना भी नष्ट होने लगती है। फेफड़े का कार्य शरीर को ऑक्सीजन प्रदान करना और कार्बन डाईआक्साइड को बाहर निकालना है। धूम्रपान से फेफड़े का कार्य बाधित होता है, जिसके फलस्वरूप रोगी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और उसकी सांस फूलती है।
परीक्षण: सामान्यत: प्रारंभिक अवस्था में एक्सरे में फेफड़े में कोई खराबी नजर नहीं आती, लेकिन बाद में फेफड़े का आकार बढ़ जाता है। इसके परिणामस्वरूप दबाव पड़ने से दिल लम्बा और पतलें ट्यूब की तरह (ट्यूबलर हार्ट) हो जाता है। इस रोग की सर्वश्रेष्ठ जांच स्पाइरोमेटरी (कम्प्यूटर के जरिये फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच) या पी.एफ.टी. ही है।
बचाव
सी.ओ.पी.डी. का सर्वश्रेष्ठ बचाव धूम्रपान रोकना है। अगर रोगी धूल, धुआं या गर्दा के वातावरण में रहता है या कार्य करता है उसे शीघ्र ही अपना वातावरण बदल देना चाहिए। इसके अतिरिक्त सी.ओ.पी.डी. के रोगियों को प्रतिवर्ष इन्फ्लूएंजा से बचाव के लिए वैक्सीन लगवाना चाहिए। इसी तरह सी.ओ.पी.डी. के रोगियों को न्यूमोनिया से बचाव के लिए एक बार न्यूमोकोकल वैक्सीन भी लगवानी चाहिए।
उपचार
सी.ओ.पी.डी. का सर्वश्रेष्ठ उपचार इन्हेलर चिकित्सा है, जिसे डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त कुछ दवाएं और बलगम आने पर एंटीबॉयटिक भी दी जाती हैं। सी.ओ.पी.डी. के अटैक के दौरान रोगी को भर्ती करना पड़ता है और उसका उपचार ऑक्सीजन, नेबुलाइजर, स्टेरॉइड्स, ब्रॉन्कोडायलेटर और बाईपैप मशीन द्वारा किया जाता है। सी.ओ.पी.डी. से पाीड़ित गंभीर अवस्था वाले रोगियों को लॉग टर्म ऑक्सीजन थेरेपी पर रखा जाता है।
(डॉ.सूर्यकान्त त्रिपाठी)
(प्रमुख:पल्मोनरी मेडिसिन विभाग
किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ)
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