Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    स्वर विज्ञान के साथ प्राणायाम

    By Edited By:
    Updated: Wed, 03 Oct 2012 11:19 AM (IST)

    स्वर विज्ञान भारत की अत्यत प्राचीन विद्या है। इस विद्या के द्वारा सासारिक कार्यो की सफलता के लिए किसी कार्य के शुभारभ का मुहूर्त निकाला जाता है। स्वर विज्ञान की मूल पुस्तक शिव स्वरोदय में ऐसा वर्णन है कि स्वर विज्ञान से निकाले गये मुहूर्त कभी असफल नहीं हो सकते।

    Hero Image

    स्वर विज्ञान भारत की अत्यत प्राचीन विद्या है। इस विद्या के द्वारा सासारिक कार्यो की सफलता के लिए किसी कार्य के शुभारभ का मुहूर्त निकाला जाता है। स्वर विज्ञान की मूल पुस्तक शिव स्वरोदय में ऐसा वर्णन है कि स्वर विज्ञान से निकाले गये मुहूर्त कभी असफल नहीं हो सकते।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    स्वर और उसके प्रकार

    नासिका द्वारा सास के अंदर जाने व बाहर आने के समय जो अव्यक्त ध्वनि होती है, उसी को स्वर कहते है। स्वर तीन प्रकार के होते है- 1. सूर्य स्वर। 2. चद्र स्वर। 3. सुषुम्ना स्वर।

    दाहिनी नासिका के अव्यक्त स्वर को सूर्य स्वर कहते है। और बायीं के अव्यक्त स्वर को चद्र स्वर कहते है। स्वर विज्ञान के अनुसार जब सूर्य स्वर चल रहा हो, तो शरीर को गर्मी मिलती है और जब चद्र स्वर चल रहा हो तो शरीर को ठडक मिलती है, किन्तु जब दोनों स्वर एक साथ चल रहे हों, तब शरीर गर्मी और ठडक के सतुलन में रहता है।

    विशेष लाभ

    जैसे प्राणायाम करते समय स्वच्छ वायु का ध्यान रखना जरूरी है, उसी प्रकार स्वर विज्ञान के अनुसार दोनों स्वरों के एक साथ चलने का ध्यान रखने से या इन्हे चलाकर प्राणायाम करने से प्राणायाम अभ्यासी को किसी भी प्रकार की कभी हानि की सभावना नहीं होती और उसे विशेष लाभ भी प्राप्त होते हैं

    -मान लीजिये आपका दाहिना स्वर या सूर्य स्वर चल रहा है अर्थात् शरीर में गर्मी की वृद्धि हो रही है और आपको शरीर में गर्मी बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है। ऐसी स्थिति मे स्वाभाविक है कि प्राणायाम से गर्मी और बढ़ेगी, परिणामस्वरूप न चाहने पर भी प्राणायाम से शरीर को नुकसान होगा।

    -मान लीजिए आपका बाया स्वर चल रहा है और इस कारण शरीर में ठडक की वृद्धि हो रही है। आपको शरीर में ठडक बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है, तो स्वाभाविक है कि प्राणायाम करने से ठडक और बढ़ेगी। परिणामत: शरीर को नुकसान होगा।

    -प्राणायाम के अनुभवी जानकार इसीलिए प्राणायाम के पहले योगासनों का अभ्यास करते है या मध्यम या तेज गति से प्रात: भ्रमण या जॉगिग करते हैं या एक ही स्थान पर खड़े होकर 10-15 मिनट भ्रमण योग करते है। फलस्वरूप दोनों स्वर एक साथ चलने लगते है। फिर प्राणायाम से न गर्मी अनावश्यक बढ़ती है और न ही सर्दी अनावश्यक बढ़ती है।

    यदि साधक अनुभव करते है कि उन्हें गर्मी की आवश्यकता है, तब साधक दाहिने स्वर को चलाकर प्राणायाम करें तो वह लाभकारी होगा। वहीं साधक को यदि ठडक की आवश्यकता है तो साधक बाएं स्वर को चलाकर प्राणायाम करे तो लाभकारी होगा। जिस स्वर को चलाना चाहते है, उसके विपरीत नासिका द्वार में रुई लगा दें, तो कुछ देर में वह स्वर चलने लगेगा या अगर आप दाहिना स्वर चलाना चाहते हैं, तो फिर कुछ देर तक बायींकरवट लेट जाएं। इसी तरह यदि बाया स्वर चलाना चाहते तो कुछ देर तक दाहिनी करवट लेट जाएं। स्वर विज्ञान के अनुरूप प्राणायाम करने से पहले योग विशेषज्ञ से परामर्श लेकर प्राणायाम की विधि की अच्छी तरह से जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए।

    वरिष्ठ योग-प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ

    डॉ. ओमप्रकाश 'आनद'

    मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर