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    रीढ़ की हड्डी के विकार, अब है सटीक उपचार

    By Edited By:
    Updated: Tue, 07 Aug 2012 03:35 PM (IST)

    एक वक्त था, जब रीढ़ की हड्डी के विकारों को दूर करने के लिए की जाने वाली सर्जरी का जिक्र आते ही रोगी और उसके परिजनों के होश फाख्ता हो जाते थे, लेकिन अब वक्त बदल चुका है।

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    एक वक्त था, जब रीढ़ की हड्डी के विकारों को दूर करने के लिए की जाने वाली सर्जरी का जिक्र आते ही रोगी और उसके परिजनों के होश फाख्ता हो जाते थे, लेकिन अब वक्त बदल चुका है। चिकित्सा विज्ञान में हुई चमत्कारिक प्रगति के कारण अब नॉन फ्यूजन टेक्निक के जरिये स्पाइन के विकारों को अतीत की तुलना में कहीं ज्यादा सहजता से दूर किया जा सकता है। क्या है यह टेक्निक और इसकी खासियतें क्या हैं..?

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    आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने रीढ़ की हड्डी से सबधित अनेक रोगों व विकारों पर विजय पा ली है। समय-समय पर तकनीकों में होने वाले बदलावों से ही यह कामयाबी मिली है। इन्हींमें से एक तकनीक नॉन फ्यूजन है। यह तकनीक रीढ़ की हड्डी से सबधित रोगों जैसे स्लिप डिस्क, स्लिप्ड वर्टिब्रा और स्पॉन्डिलाइटिस को जड़ से खत्म कर देने में बेहद कारगर है। सहज शब्दों में कहें तो रीढ़ की हड्डी के जोड़ों के लचीलेपन को बरकरार रखने की तकनीक को नॉन फ्यूजन कहा जाता है।

    पुरानी व नई तकनीक में फर्क

    पारंपरिक इलाज में स्पाइन की नसों को डीकम्प्रेस करने के लिए हड्डी के बड़े भाग को निकाल दिया जाता है। इस इलाज से बेशक दर्द में राहत मिल जाती है, लेकिन वह आराम अस्थायी होता है। हड्डी निकाल देने से अक्सर स्पाइन का मूल ढाचा बिगड़ जाता है, जो आगे चलकर एक लाइलाज बीमारी बन जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि हड्डी को एक बार निकाल देने के बाद उसे दोबारा जोड़ा नहीं जा सकता। ऐसा होने पर धीरे-धीरे शरीर का लचीलापन और गतिशीलता घटने लगती है। एक समय के बाद रोगी चलने-फिरने में असमर्थ हो जाता है। ऐसे में स्पाइन के रोगियों के लिए नॉन फ्यूजन तकनीक उम्मीद की एक नई किरण है।

    इस तकनीक से इलाज करने में फ्यूजन किए बगैर नसों को डीकम्प्रेस कर दिया जाता है। इस प्रकार स्पाइन का मूल ढाचा भी बरकरार रहता है और उसकी ताकत व लचक भी सामान्य बनी रहती है।

    कैसे करते हैं इलाज

    नॉन फ्यूजन टेक्निक के जरिये इलाज करने की तीन प्रक्रियाएं हैं। यह प्रक्रिया इतनी वैज्ञानिक है कि इलाज में असफलता की आशका नगण्य रहती है

    1. स्पाइन में विकार होने पर पूरी हड्डी को निकालने के बजाय सिर्फ उतनी ही हड्डी निकालते हैं, जिसकी वजह से परेशानी हो रही है।

    2. डिस्क में समस्या होने पर अगर हम उसे निकाल देते हैं, तो उसकी ऊंचाई कम हो जाती है और वह सीधे हड्डी के सपर्क में आ जाती है। डिस्क का हड्डी से सीधा सपर्क होने पर और रगड़ खाने से दोबारा पीठ या कमर दर्द की शिकायत होने लगती है। वहीं नॉन फ्यूजन तकनीक में डिस्क को निकालने के बाद उसी जगह पर एक कृत्रिम डिस्क लगा देते हैं, जो किसी प्राकृतिक डिस्क की तरह ही काम करती है और इस प्रकार डिस्क का मूल ढाचा भी बरकरार रहता है।

    3. पूर्व में स्पाइन की पारंपरिक सर्जरी को ठीक करने के लिए स्क्रू या रॉड डाल दिए जाते थे, जो अपनी जगह से टस से मस नहीं होते थे, लेकिन नई तकनीक के सहारे डाले जाने वाले स्क्रू या रॉड लचीले होते हैं जो अपनी जरूरत के मुताबिक गति भी कर सकते हैं।

    यह कहना गलत नहीं होगा कि चिकित्सा विज्ञान की उपलब्धियों में नॉन फ्यूजन तकनीक न सिर्फ किसी ध्रुव तारे की तरह चमक रही है बल्कि स्पाइन से सबधित रोगियों के लिए आशा की एक नई किरण भी है।

    डॉ.सुदीप जैन आर्र्थो-स्पाइन सर्जन

    फोर्टिस हॉस्पिटल, दिल्ली

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