बैडमिंटन खेलने से जोड़ों के दर्द में मिले आराम
यह तो आपको पता ही है कि खेलने-कूदने से शरीर स्वस्थ रहता है। इसके साथ ही हमारा मन भी प्रसन्न रहता है। हाल ही में ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि जो लोग कम उम्र से बैडमिंटन खेलने लगते हैं, उनको आगे चलकर जोड़ों के दर्द की समस्या से दो-चार नहीं होना पड़ता। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि इस बात के परीक्षण के लिए हमने कई स्पोर्ट्स इं

यह तो आपको पता ही है कि खेलने-कूदने से शरीर स्वस्थ रहता है। इसके साथ ही हमारा मन भी प्रसन्न रहता है। हाल ही में ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि जो लोग कम उम्र से बैडमिंटन खेलने लगते हैं, उनको आगे चलकर जोड़ों के दर्द की समस्या से दो-चार नहीं होना पड़ता। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि इस बात के परीक्षण के लिए हमने कई स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट के संपर्क में रहकर करीब 10 वर्ष तक अध्ययन किया। अध्ययन से पता चला कि जो लड़के-लड़कियां कम उम्र से ही बैडमिंटन जैसे खेलों में भाग लेने लगते हैं, उनको आगे चलकर जोड़ों के दर्द संबंधी शिकायत नहीं पकड़ती।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस अध्ययन के लिए हमने न केवल बैडमिंटन में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले, बल्कि सामान्य खेलकूद में भाग लेने वाले युवाओं को भी शामिल किया। दस वर्ष पश्चात इन लोगों के स्वास्थ्य संबंधी रिकार्ड को देखने पर पता चला कि जो युवा बैडमिंटन जैसे खेलों में सक्रिय भागीदारी निभा रहे थे, उन्हें जोड़ों संबंधी दर्द से परेशान नहीं होना पड़ा, जबकि अन्य खेलों में भाग लेने वाले युवाओं को जोड़ों के दर्द से कई बार परेशान होना पड़ा।
इस अध्ययन दल के प्रमुख डॉ. मार्क के अनुसार टेनिस व बैडमिंटन खेलने के दौरान हमारे हाथों और पैरों की जबरदस्त एक्सरसाइज हो जाती है। इस दौरान हमारे शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बहुत तेजी से होता है। इसके साथ ही पूरे शरीर की मांसपेशियों पर भी काफी खिंचाव पड़ता है। यह खिंचाव आगे चलकर जोड़ों के दर्द से राहत दिलाता है।
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार बढ़ती उम्र के साथ ही करीब 60 प्रतिशत लोग जोड़ों के दर्द से परेशान होने लगते हैं। यदि समय रहते हम शरीर में अधिक खिंचाव पैदा करने वाले खेल खेलने लगते हैं तो हमें जोड़ों के दर्द से राहत मिल सकती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार बैडमिंटन खेलने का हमारे दिमाग पर भी गहरा असर पड़ता है। कारण, इन खेलों में भाग लेने पर हमें दिमाग पर अधिक जोर डालना पड़ता है। इसका नतीजा यह होता है कि कई बार हल्के-फुल्के दर्द होने पर हमें ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ता। डॉ. मार्क के अनुसार यदि कम उम्र से ही बच्चों में बैडमिंटन व इसी प्रकार के अन्य खेल खेलने की आदत डाल दी जाए तो आगे चलकर उन्हें मानसिक समस्याओं से भी दो-चार नहीं होना पड़ता।
सायरा शर्मा
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