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    जानिए सोरायसिक का सटीक इलाज

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    Updated: Tue, 04 Mar 2014 11:47 AM (IST)

    आयुर्वेद के अनुसार सोरायसिस एक गैर-संक्रामक त्वचा रोग है। सोरायसिस में शरीर में वात व पित्त की अधिकता के कारण त्वचा के टिश्यूज में विषैले तत्व फैल जात ...और पढ़ें

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    आयुर्वेद के अनुसार सोरायसिस एक गैर-संक्रामक त्वचा रोग है। सोरायसिस में शरीर में वात व पित्त की अधिकता के कारण त्वचा के टिश्यूज में विषैले तत्व फैल जाते हैं, जो कालांतर में सोरायसिस की समस्या पैदा करते हैं।

    लक्षण

    सोरायसिस के कारण त्वचा में जलन, खुजली, त्वचा का लाल पड़ना और सूजन आना जैसे लक्षण प्रकट होते हैं।

    कारण

    सोरायसिस होने का कारण आनुवांशिक भी हो सकता है। यदि माता-पिता दोनों इससे ग्रस्त हैं, तो बच्चे को भी सोरायसिस होने की सम्भावना 60 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इसके अलावा प्राकृतिक वेगों(मल व पेशाब) को कई बार रोकना भी कालांतर में इस रोग का कारण बन सकता है। इसी प्रकार मसालेदार, तैलीय,चिकनाईयुक्त व जंक फूड्स खाने, चाय काफी और शराब का सेवन व धूम्रपान भी सोरायसिस के कारण बन सकते हैं।

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    उपचार

    अनुभवी आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श लेने के बाद ही उपचार शुरू करें..

    -नीम की पत्तियां उबालकर सोरायसिस से प्रभावित अंग को धोएं।

    -15 से 20 तिल के दाने एक गिलास पानी में भिगोकर पूरी रात रखें। सुबह खाली पेट इनका सेवन करें।

    -पांच से छह महीने तक प्रात: आधा से एक कप करेले का रस पिएं। यदि यह रस अत्यधिक कड़वा लगे, तो एक बड़ी चम्मच नींबू का रस इसमें डाल सकते हैं।

    -खीरे का रस, गुलाब जल व नींबू के रस को समान मात्रा में मिलाएं। इस मिश्रण से प्रभावित अंग को धोकर और नारियल तेल लगाकर रातभर छोड़ दें।

    -आधा चम्मच हल्दी चूर्ण को पानी के साथ दिन में दो बार लें।

    -घृतकुमारी (एलोवेरा) का ताजा गूदा त्वचा पर लगाया जा सकता है या इस गूदे का प्रतिदिन एक चम्मच दिन में दो बार सेवन करें।

    -यदि आपको उपर्युक्त उपचार विधियों से राहत नहीं मिलती है, तो आयुर्वेद चिकित्सक से सलाह अवश्य लें। आयुर्वेद चिकित्सा के माध्यम से सर्वप्रथम रक्त व टिश्यूज की शुद्धि की जाती है। फिर यह पद्धति पाचन तंत्र को मजबूत कर त्वचा के टिश्यूज को सशक्त करती है।

    -सुबह टहलें और नियमित रूप से पेट साफ रखें।

    (डॉ.प्रताप चौहान)

    (वरिष्ठ आयुर्वेद चिकित्सक, दिल्ली)