Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बड़ी आंत का कैंसर

    By Babita kashyapEdited By:
    Updated: Tue, 25 Aug 2015 02:49 PM (IST)

    अब उपलब्ध है कारगर इलाज कोलन या बड़ी आंत का कैंसर अब लाइलाज नहीं रहा। मेडिकल साइंस में हुई प्रगति के चलते अब इस मर्ज का समय रहते कारगर इलाज संभव है... विश्व में कैंसर से पीडि़त लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। भारत भी इसका अपवाद नहीं है।

    अब उपलब्ध है कारगर इलाज कोलन या बड़ी आंत का कैंसर अब लाइलाज नहीं रहा। मेडिकल साइंस में हुई प्रगति के चलते अब इस मर्ज का समय रहते कारगर इलाज संभव है...

    विश्व में कैंसर से पीडि़त लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। भारत भी इसका अपवाद नहीं है। विश्व में विभिन्न प्रकार के कैंसरों से पीडि़त

    हर तीन में से एक व्यक्ति कोलन या बड़ी आंत के कैंसर से ग्रस्त है।

    कारण

    कोलन कैंसर के पनपने का एक प्रमुख कारण तब सामने आता है, जब बड़ी आंत की स्वस्थ कोशिकाओं में बदलाव आने लगता

    है। इस कैंसर के संभावित कारणों में

    आनुवांशिक कारण भी शामिल है। धूम्रपान,

    रेड मीट और जंक फूड्स खाना भी इस कैंसर के

    खतरे को बढ़ाता है। लगातार लंबे वक्त तक कब्ज का बने रहना भी इस कैंसर का कारण बन सकता है।

    जो लोग फैमिलियल एडोनोमेटस पॉलीपोसिस

    नामक बीमारी से ग्रस्त हैं, उनमें कोलन कैंसर

    होने का खतरा काफी बढ़ जाता है।

    लक्षण

    - मल में रक्त आना।

    - एनीमिया(खून की कमी) होना।

    - पेट में दर्द होना।

    - भूख न लगना और वजन कम होना।

    - पेट फूलना

    - रेक्टम या मलाशय का पूरी तरह खाली

    नहीं होना। कमजोरी महसूस करना।

    डायग्नोसिस

    इसके अंतर्गत कई जांचें करायी जाती हैं।

    जैसे...

    कोलोनोस्कोपी- इसे बड़ी आंत का दूरबीन

    से किया जाने वाला टेस्ट भी कहते हैं।

    पेट स्कैन- इसके द्वारा पता लगाया जाता है

    कि ट्यूमर बड़ी आंत में है या हड्डियों,

    लिवर या फेफड़ों तक फैल चुका है या नहीं।

    उपचार की महत्वपूर्ण पद्धतियां

    कैंसर ग्रस्त ट्यूमर जिस अवस्था में है,

    उसके अनुसार उपचार के बारे में निर्णय

    लिया जाता है। अधिकतर मामलों में सर्जरी

    की आवश्यकता होती है। कैंसर की पहली

    और दूसरी अवस्था में सर्जरी के जरिये ही

    उपचार होता है, लेकिन मर्ज की तीसरी और चौथी अवस्था में रेडियोथेरेपी और

    कीमोथेरेपी की आवश्यकता होती है।

    सर्जरी के अंतर्गत आंत के उस भाग को

    काटकर निकाल दिया जाता है, जिसमें

    ट्यूमर पनपा है और फिर आंत को जोड़

    दिया जाता है। अगर आंत में सूजन आ जाए या कोई और समस्या हो जाए, तो उसे तुरंत नहीं जोड़ा जा सकता है। तब 'स्टोमा बैग- लगाया जाता है,

    जिससे मल बाहर आता है। छह से आठ सप्ताह के बाद इसे निकाल दिया जाता है और आंत को

    वापस जोड़ दिया जाता है।

    लैप्रोस्कोपिक सर्जरी

    पहले सर्जरी पारंपरिक तरीके से होती थी,

    लेकिन अब लैप्रोस्कोपी ने इसे बहुत आसान

    बना दिया है। लैप्रोस्कोपिक सर्जरी के अंतर्गत

    पेट में सूक्ष्म छेद किए जाते हैं और इनमें से

    यंत्रों को अंदर डालकर सर्जरी की जाती है।

    इस प्रक्रिया में शरीर पर चीरे के निशान नहीं

    पड़ते और न ही रक्तस्राव होता है। इसलिए

    रक्त चढ़ाने की भी आवश्यकता नहीं होती है।

    दर्द भी कम होता है और अस्पताल से जल्दी

    छुट्टी मिल जाती है।

    डॉ.दीप गोयल

    ग्रैस्ट्रोइंटेस्टाइनल-ऑनको सर्जन

    बी.एल.के. हॉस्पिटल, नई दिल्ली

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें
    comedy show banner
    comedy show banner