मस्तिष्क आघात अब है समुचित उपचार
ब्रेन स्ट्रोक, दिल की बीमारिया और कैंसर की गणना तीन बड़े गंभीर व जानलेवा रोगों में की जाती है। फिर भी समय रहते कुछ सजगताएं बरतने से इन रोगों से बचाव और समुचित इलाज संभव है। यह बात मस्तिष्क आघात पर भी लागू होती है।

ब्रेन स्ट्रोक, दिल की बीमारिया और कैंसर की गणना तीन बड़े गंभीर व जानलेवा रोगों में की जाती है। फिर भी समय रहते कुछ सजगताएं बरतने से इन रोगों से बचाव और समुचित इलाज संभव है। यह बात मस्तिष्क आघात पर भी लागू होती है।
दो प्रकार और इनका इलाज
स्ट्रोक दो प्रकार के होते हैं। पहला, प्रकार पैरालिटिक होने या लकवा लगने से संबंधित है। जब भी मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति में बाधा आड़े आती है, तब इस प्रकार के स्ट्रोक के दुष्प्रभाव सामने आते हैं।
पहले प्रकार के स्ट्रोक में अगर रोगी को शीघ्र ही अस्पताल पहुंचा दिया जाता है, तो रोगी की जान बच सकती है। अस्पताल में रोगी को थक्का दूर करने वाली दवाएं दी जाती हैं।
स्ट्रोक का दूसरा प्रकार मस्तिष्क में हेमरेज से संबंधित है। जब मस्तिष्क में रक्त की नलिकाएं फट जाती हैं, तो इसके परिणामस्वरूप दिमाग में हेमरेज हो जाता है। दूसरे प्रकार के स्ट्रोक में दवाओं के अलावा जरूरत पड़ने पर सर्जरी की जाती है।
पूर्व लक्षण
सामान्य तौर पर स्ट्रोक के कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं
सिर में अचानक जोर से दर्द होना।
शरीर के एक भाग के हाथ व पैर में थोड़ी देर के लिए कमजोरी महसूस होना।
कुछ देर के लिए एक आख से दिखायी न पड़ना।
थोड़ी देर के लिए बोलने में असमर्थ महसूस करना।
लगातार चक्कर आना।
बचाव
सकारात्मक सोच से अत्यधिक तनाव को स्वयं पर हावी न होने दें।
रक्तचाप को डॉक्टर के परामर्श से नियंत्रित रखें।
अत्यधिक चिकनाई व वसा युक्त खाद्य पदार्र्थो को आहार में महत्व न दें। ऐसा इसलिए , क्योंकि ऐसे खाद्य पदार्र्थो को ग्रहण करने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ता है, जिससे ब्लडप्रेशर अनियंत्रित हो जाता है। इसलिए कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करें।
वजन को नियंत्रित रखना और नियमित रूप से व्यायाम करना जरूरी है।
सिगरेट व अन्य मादक पदार्र्थो से परहेज करें।
ऐन्यूरिज्म से होने वाला स्ट्रोक
मस्तिष्क की रक्त नलिका में सूजन को ऐन्यूरिच्म के नाम से जाना जाता है। यह सूजी हुई नलिका फट सकती है और उससे मस्तिष्क में रक्तस्त्राव हो सकता है। एक अध्ययन के अनुसार मस्तिष्क आघातों से संबंधित 20 में से एक मामला इसी सूजी हुई नलिका के फटने की वजह से होता है। फिर भी अच्छी खबर यह है कि क्वायलिंग तकनीक के प्रचलन में आने से ऐन्यूरिच्म से होने वाले स्ट्रोक को नियंत्रित किया जा सकता है।
रोग की जटिलता
आम तौर पर ऐन्यूरिच्म का आघात 40 से 50 की उम्र के बीच हुआ करता है, जिसे जीवन में उम्र का सबसे महत्वपूर्ण भाग माना जाता है। दरअसल दूसरी तरह के आघातों से ऐन्यूरिच्म अलग होता है क्योंकि यह अपेक्षाकृत कम उम्र में हमला बोलता है और लकवा लगने की तरह जानलेवा साबित हो सकता है। लगभग 30 प्रतिशत रोगी तो शुरुआती रक्तस्त्राव को सहन नहीं कर पाते जबकि प्रारंभिक हमला झेल जाने वाले रोगियों में से लगभग 50 प्रतिशत से अधिक एक महीने से अधिक जिंदा नहीं रह पाते क्योंकि ऐन्यूरिच्म कभी भी फट सकता है।
आधुनिक इलाज
हालाकि ऐन्यू्रिच्म से होने वाले स्ट्रोक के कई उपचार मौजूद हैं लेकिन इन सबकी अपनी कुछ सीमाएं हैं। फिर भी एंडोवैस्कुलर विधि के अपनाए जाने पर इस तरह का कोई खतरा नहीं रहता। पैरों की धमनियों के रास्ते से एक सूक्ष्म ट्यूब यानी माइक्त्रोकैथेटर को मस्तिष्क में उस भाग पर ले जाया जाता है और इसके जरिये दिमाग के क्षतिग्रस्त भाग को बंद कर दिया जाता है, जिसे क्वायलिंग के नाम से भी जाना जाता है। इस तकनीक को अपनाए जाने का एक बड़ा फायदा यह है कि इससे मस्तिष्क को कम से कम नुकसान पहुंचता है और इसके परिणाम भी अपेक्षाकृत बेहतर आ रहे हैं।
डॉ. विपुल गुप्ता
न्यूरो- रेडियोलॉजी सर्जन
मेदात दि मेडिसिटी, गुड़गाव
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