आटो इम्यून रोग अब संभव है सटीक इलाज
शरीर के रोग प्रतिरोधक तत्र में विकार आने से ऑटो इम्यून रोग पैदा होते हैं। लगभग 80 रोगों को ऑटो इम्यून रोगों में शामिल किया जाता है। इन रोगों के इलाज के लिए अब एक नई चिकित्सा पद्धति प्रचलन में आ चुकी है।
शरीर के रोग प्रतिरोधक तत्र में विकार आने से ऑटो इम्यून रोग पैदा होते हैं। लगभग 80 रोगों को ऑटो इम्यून रोगों में शामिल किया जाता है। इन रोगों के इलाज के लिए अब एक नई चिकित्सा पद्धति प्रचलन में आ चुकी है। इस कारण इन रोगों से ग्रस्त लोगों के लिए अब उम्मीदों का एक नया उजाला सामने आ चुका है
मानव शरीर कुदरत की अनमोल देन है। इसीलिए इसमें रोग प्रतिरोधक प्रणाली का भी समावेश है। यह प्रणाली किसी भी प्रकार के सक्रमण से शरीर का बचाव करती है, लेकिन जब यह प्रणाली अपने शरीर और सक्रमण के बीच के भेद या फर्क को समझ न पाए और अपने शरीर के स्वस्थ ऊतकों पर ही आक्रमण शुरू कर दे, तो एक गभीर रोग का रूप धारण कर लेती है। इस स्थिति को चिकित्सकीय भाषा में आटो इम्यून डिजीजेस या रोग कहते हैं। इन रोगों से शरीर का कोई भी अंग प्रभावित हो सकता है। फिर भी मुख्यत: ये रोग जोड़ों, त्वचा, रक्त नलिकाओं और तत्रिका तत्र को प्रभावित करते हैं।
नयी पहल
पिछले एक वर्ष में हैदराबाद और बगलुरु के रोगियों पर एक 'कॉम्बिनेशन प्रोटोकॉल' का सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है। इस प्रयोग ने आटो इम्यून रोगों से पीड़ित ऐसे रोगियों के लिए राहत के दरवाजे खोल दिये हैं,जो अपनी बीमारी से तग आ चुके थे। दिन-प्रतिदिन पीड़ितों की स्थिति में होने वाला सुधार उनकी जिंदगी को एक नई दिशा दे रहा है।
क्या है कॉम्बिनेशन प्रोटोकॉल
चार चरणों में पूरा होने वाले इस इलाज के दौरान पहले माह में इम्यून मॉड्यूलेशन का कार्य होता है। इसके बाद अगले तीन माह में एक विशिष्ट प्रकार की स्टेम सेल्स 'एपीएससी' का प्रत्यारोपण किया जाता है। चूंकि ये सेल्स आटोलोगस होती हैं। इसलिए इन्हे रोगी की अस्थि मज्जा या रक्त से ही बनाया जाता है। गौरतलब है कि फिलहाल यह सुविधा दुनिया के चुनिदा देशों में ही उपलब्ध है, जिसमें भारत भी शामिल है।
इन रोगों में इसे प्रभावी पाया गया
(1) रूमेटायड अर्थराइटिस।
(2) डाइबिटीज (टाइप-1)।
(3) मल्टीपल स्क्लीरोसिस (तत्रिका तत्र के विकार)।
(4) एनकायलोसिग स्पॉन्डिलाइटिस (कमर में जकड़न की शिकायत)।
(5) रिएक्टिव अर्थराइटिस
(अर्थराइटिस का एक प्रकार)।
क्या है आशाएं
आटो इम्यून रोगों के शुरुआती दौर में ही इलाज करने से काफी अच्छे परिणामों की सभावना रहती है। इन रोगों से निजात पाने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक खोज कर रहे हैं। हाल में ही 'नेचर' पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में अमेरिकी वैज्ञानिक डेविड मिलर ने नैनो टेक्नोलॉजी के प्रयोग की बात सुझायी है।
साइड इफेक्ट ऐसे होगा कम
लाइलाज समझी जाने वाली इन बीमारियों के लिए मुख्यत: कार्टिसोन (एक प्रकार का स्टेरायड) या प्रतिरोधक क्षमता कम करने वाली दवाओं का प्रयोग किया जाता है, लेकिन इन दवाओं के दुष्परिणाम गभीर होते हैं। कई बार रोगियों को नये सक्रमण होने और कैंसर तक का खतरा पैदा हो जाता है। इसीलिए चिकित्सा वैज्ञानिक उपर्युक्त दवाओं के दुष्प्रभावों (साइड इफेक्ट्स) को रोकने के लिए सुरक्षित और प्रभावी खोज की तलाश में है। इसी सदर्भ में मॉड्यूनॉल नामक तत्व का प्रयोग किया जा रहा है।
डॉ.बी.एस.राजपूत
आर्थो व स्टेम सेल ट्रासप्लाट सर्जन
क्रिटीकेयर हॉस्पिटल जुहू मुंबई
1ि1ंन्श्च4309820850187@ॠ्रें'.ङ्घश्रे
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