यमुना नदी से निकला लकड़ियों का जखीरा, चार दिनों में लगभग एक लाख क्विंटल लकड़; कीमत 6-7 करोड़ रुपये
यमुनानगर में हिमाचल उत्तर प्रदेश और हरियाणा के तटवर्ती ग्रामीण जान जोखिम में डालकर यमुना नदी से लकड़ी निकाल रहे हैं। हर साल कई लोग डूब जाते हैं फिर भी यह सिलसिला जारी है। पिछले सप्ताह लगभग छह-सात करोड़ रुपये की लकड़ी निकाली गई। प्रशासन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है।

अवनीश कुमार, यमुनानगर। तीन राज्यों में जान जोखिम में डाल तटवर्ती ग्रामीण यमुना से करोड़ों रुपये की लकड़ी निकालते हैं। इस दौरान प्रत्येक वर्ष कई लोग बह जाते हैं। बेखौफ लहरों को चीरते हुए भारी-भरकम पेड़ भी निकाल लेते हैं। प्रशासन न तो इन पर कोई कार्रवाई करता। और न ही लकड़ी जब्त करता।
पिछले सप्ताह चार दिनों में लगभग एक लाख क्विंटल लकड़ी निकाल ली गई। इसकी कीमत बाजार में लगभग छह से सात करोड़ रुपये है। हिमाचल, उत्तर प्रदेश के सहारनपुर और हरियाणा के यमुनानगर एवं करनाल के तटवर्ती गांवों के लोग प्रतिवर्ष यह काम बेखौफ करते हैं। इमारती लकड़ी लगभग एक हजार रुपये प्रति क्विंटल बेची जाती है, ईंधन की लकड़ी को 300 रुपये प्रति क्विंटल बेचा जाता है।
इस हिसाब से लगभग छह-सात करोड़ रुपये की लकड़ी नदी से निकाल ली गई। इस दौरान बल्लेवाला गांव के 16 वर्षीय साकिर की मौत हो गई, जबकि एक युवक लापता है। सहारनपुर के एक गांव के युवक की भी डूबने से मौत हो चुकी है। पुलिस की ओर से भी लोगों को केवल नदी की ओर जाने से रोका जाता है। लकड़ियां पकड़ने वालों पर कार्रवाई नहीं होती।
हमें तो इंतजार रहता है
आशीष फर्नीचर का काम करने वाले अशीष धीमान का कहना है कि पहाड़ों से सागवान, देवदार, चीड़ सहित अन्य इमारती लकड़ियां आती हैं। इन लकड़ियों को स्थानीय लोग पकड़ लेते हैं। कीमती लकड़ियां कम दाम में मिल जाती है। इस लकड़ी से बने फर्नीचर के दाम भी अच्छे मिलते हैं। इस फर्नीचर की उम्र भी ज्यादा होती है।
प्रशासन लगाए रोक
किरण पाल यमुना सेवा समिति के प्रधान किरण पाल राणा का कहना है कि लकड़ियां निकलाने के चक्कर में हथनीकुंड बैराज के ऊपर से दोनों साइड में करनाल तक ही आठ से 10 लोग बह जाते हैं। प्रशासन को इस पर रोक लगानी चाहिए।
बैराज के 18 गेट खुलेते ही शुरू हो जाता है ‘कांटे’ का खेल हथनीकुंड बैराज पर एक लाख क्यूसेक जलबहाव होते ही सभी 18 गेट खोल दिए जाते हैं। इनके खुलते ही नदी किनारे बसे हरियाणा व उत्तर प्रदेश के ग्रामीण नदी किनारे पहुंच जाते हैं। पानी में आई लकड़ियों को एकत्र करने लगते हैं।
बांस में लोहे के पैने कांटे बनाकर रखते हैं। जैसे ही लकड़ी दिखाई देती है उस पर कांटा फंसाकर बाहर निकाल लेते हैं। कुछ लकड़ियों को यह पानी के अंदर जाकर निकालते हैं। लकड़ियां निकालने वाले इमरान व नौशाद का कहना है कि इससे अच्छी कमाई हो जाती है। अधिकतर इमारती हैं, इनके दाम अच्छे मिलते हैं।
आरएस मित्तल, एसई, सिंचाई विभाग, यमुनानगर ने बताया कि पानी बढ़ने पर यमुना में सुरक्षा के लिए पंचायत, पुलिस व अन्य विभाग की मदद से लोगों को सूचना दी जाती है। सिंचाई विभाग व पुलिस कर्मचारी तैनात रहते हैं। निगरानी के बीच भी कुछ लोग यमुना नदी से लकड़ियां निकालने के लिए चले जाते हैं। यह गलत है। इन्हें रोका जाएगा।
उम्रभर का मिलता दर्द
बनियावाला के राशिद का कहना है कि उसका 19 वर्षीय भांजा सूफियान बह गया। नदी के बाढ़ आने की सूचना पर दोस्तों के साथ यमुना पर चला गया। लकड़ियां निकालने के दौरान बह गया। लकड़ी के लालच में परिवारों को उम्रभर का दर्द मिलता है। बाढ़ के दिनों में यमुना नदी से लकड़ी नहीं निकालनी चाहिए।
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