उत्साह से हारी ऊंचाई, पहाड़ी की चोटी पर मंत्रा देवी के दर्शन
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : एक ओर जहां मेला कपाल मोचन में श्रद्धा का जन सैलाब उमड़ रहा है
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : एक ओर जहां मेला कपाल मोचन में श्रद्धा का जन सैलाब उमड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं की सबसे ऊंची पहाड़ी पर स्थित माता मंत्रा देवी मंदिर में भारी संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए पहुंचे रहे हैं।
मंत्रों से प्रकट हुई माता मंत्रा देवी का यह मंदिर राज्य की सबसे ऊंची दो हजार फुट पहाड़ी चोटी पर सुशोभित है। यहां एक सुंदर गुफा में नर-नारायण की दिव्य लौकिक एवं मनमोहक दो मूर्तियां एक ही लाल पत्थर में अंकित होकर पिंड रूप में विराजमान हैं। मान्यता है कि यहां वर्ष में एक बार सभी देवता अपने हाथों से हलवा, मिष्ठान बनाकर भगवती के साथ प्रसाद ग्रहण करते हैं। लक्ष्मी पूजा की अर्ध रात्रि में मंदिर के 500 मीटर नीचे स्थित बरगद के पेड़ से आज भी हर साल एक चमकती हुई ज्योति प्रकट होती है और मंदिर में जाकर विलीन हो जाती है।
विहंगम ²श्य से श्रद्धालु प्रभावित
यमुनानगर-जगाधरी से बिलासपुर, रणजीतपुर होते हुए काठगढ़ गांव से छोटी बड़ी मनमोहक पर्वत मालाओं को पार करके चार किलोमीटर पैदल पर्वत श्रृंखला नाहन, सरौठा जमदाग्नि धूना रेणुका जी एवं हिमाचल की श्रृंखलाओं का विहंगम दृश्य देखते हुए ऊंची चोटी पर स्थित अति प्राचीन लक्ष्मी नारायण के उस मंदिर में पहुंचते हैं। मंदिर में पहुंचे श्रद्धालु राम मेहर ¨सह, अवतार ¨सह व श्रवण ¨सह का कहना है कि वह पहली बार मंदिर में आए हैं। यहां के विहंगम दृश्य से वह काफी प्रभावित हुए।
मंदिर के प्रति ऐसी मान्यता
पंडित बसंत दास के अनुसार मान्यता यह है कि भगवान विष्णु ने एक बार लक्ष्मी से कहा कि हे लक्ष्मी वैसे तो मैं तुम्हे एक क्षण भी अपनी सेवा से विमुख नहीं रखना चाहता हूं लेकिन इस समय पृथ्वी संकटों से घिरी हुई है। उसका उद्धार करने के लिए मुझे सरस्वती नदी के उद्गम स्थल के नजदीक कुछ समय एकांत में तप करना होगा। ऐसा कहकर विष्णु बैकुण्ठ धाम से आदिबद्री क्षेत्र में पृथ्वी पर आकर तप करने लगे। उधर, लक्ष्मी को भी लगा कि विष्णु अकेले तप कर रहे है मैं भी उनके तप में सहयोगी बनूं। इसी इच्छा से लक्ष्मी भी विष्णु जी को देखने पृथ्वी पर आ गई। लक्ष्मी देखती हैं कि समस्त भू-मंडल के मालिक भगवान विष्णु बैशाख-ज्येष्ठ (मई-जून) महीने की कठोर धूप में खुले आकाश के नीचे घोर तप कर रहे हैं। लक्ष्मी यह देख न सकी और तुंरत विष्णु के तप करने के स्थान पर एक बदरी (बेरी) का पेड़ बन भगवान विष्णु को शीतल छाया प्रदान करने लगी।
भगवान विष्णु तपस्या में लीन थे और शीत, उष्ण, सर्दी, गर्मी, धूप, छाया की ओर उनका कोई ध्यान नहीं था। एक दिन वह समय भी आया जिस दिन भगवान विष्णु का तप पूरा होना था उसी उपलक्ष में देवताओं ने यज्ञ का आयोजन किया। परन्तु अद्र्धागिनी के बिना यज्ञ कैसे पूरा होगा। भगवान विष्णु की ¨चता को दूर करने के लिए समस्त देवताओं ने यज्ञ से एक दिव्य कन्या को प्रकट किया और विष्णु को इसे अद्र्धागिनी के रूप में स्वीकार करने को कहा। इतने में लक्ष्मी जी बदरी (बेर) के पेड़ के रूप में सहभागिनी बनी हुई थी वह सब घटना देख रही थी उसे लगा कि अब नारायण भगवान विष्णु दूसरा विवाह रचाने लगे हैं और मुझे त्याग देंगे, भगवान विष्णु बैकुंठ वापस नहीं जाएंगे। इस भय से लक्ष्मी बदरी (बेरी)के पेड़ के रूप को छोड़कर अपने असली रूप में प्रकट हो गई। बेरी का पेड़ गायब हो गया। उसी पेड़ की जगह लक्ष्मी भगवान विष्णु के पीछे खड़ी नजर आई। यह देख विष्णु भगवान ने मंत्रों से प्रकट हुई उस कन्या से कहा कि हे कन्या आप अत्यंत भाग्यशाली हो मैं आपके साथ सदा ही निवास करूंगा परन्तु अब श्री लक्ष्मी जी आ गई हैं इस अवस्था में आप ही मेरी रक्षा कर सकती हैं। आपके उपकार को मैं तुम्हे सम्पूर्ण शक्ति प्रदान करके चुकाऊंगा और आपके भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हुए कलयुग में आपका चारों दिशाओं में यश फैलाऊंगा। तुम इसमें तनिक भी संदेह न करो। आप तत्काल ही यहां से अर्न्तध्यान होकर सामने पर्वत शिखर में निवास करो। वहां तुम्हारी व मेरी दोनों की ही दिव्य लालवर्ण के पत्थर की प्रतिमा में मैं तुम्हारे साथ निरंतर निवास करूंगा। फिर भी यह स्थान मेरे नाम से न होकर केवल तुम्हारे नाम से ही जाना जाएगा। इस पुण्य तीर्थ में लोग पूजा भी तुम्हारी ही करेंगे। कलयुग में भक्तों को वरदान देने के लिए माता मंत्रा देवी के नाम से आप सदा ही सुविख्यात होंगी। मैं तुम्हारे साथ नित्य चमत्कारी लीलाएं करता रहूंगा। आदिबद्री क्षेत्र में स्थित गांव रामपुर गेंडा के एक किसान को पशु चराते हुए मां मंत्रा देवी उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने के लिए कहा। किसान ने माता मंत्रा देवी से वरदान मांगा कि मेरी इच्छा घी की छाव में सोने की है। माता मंत्रा देवी ने उसकी इच्छा पूर्ण की और उसके घर में इतनी गाय और दूधारु पशु हो गए कि उसके यहां घी-दूध की कोई कमी नहीं रही। लोक नायक भगवान विष्णु के ऊपर संकट मंडराता देख यज्ञ मंत्रों से प्रकट हुई कन्या मंत्रा देवी इस प्राचीन भवन में श्री नारायण के सुक्ष्म विग्रह के साथ निवास करने लगी। उधर लक्ष्मी सहित विष्णु जी यज्ञ समाप्त कर व पृथ्वी को संकटों से मुक्त कर क्षीर सागर में पहले की तरह लक्ष्मी जी के साथ रहने लगे।
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