Yamunanagar News: चूल्हे से निकले धुएं को पकड़ रहा सैटेलाइट, पराली जलाने के नाम पर किसान हो रहे बदनाम
Yamunanagar News हरियाणा (Haryana) में पराली जलाने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। वहीं इन पर प्रशासन लगाम लगाने के लिए लगातार कोशिश और जुर्माना कर रहा है। वहीं कुछ मामले ऐसे भी सामने आए जहां पर कचरा और चूल्हा जलाने पर निकले धुएं को सैटेलाइट पकड़ रहा है। इससे किसान पराली जलाने को लेकर बदनाम हो रहे हैं।

जागरण संवाददाता, यमुनानगर। सैटेलाइट की निगरानी में किसान बदनाम हो रहा है। धुआं बेशक चूल्हे-चौके से निकल रहा हो, लेकिन आंकड़ा पराली जलाने वाले किसानों का बढ़ रहा है। जिले में अब से पहले सैटेलाइट की पकड़ में पराली जलाने के 42 मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से गठित टीम द्वारा जांच किए जाने पर 19 मामले ही ऐसे आए हैं जहां खेतों में पराली में आग लगी मिली। अन्य केसों में कहीं कचरा जलता मिला तो कहीं डेरों में रह रहे किसानों के चूल्हे से निकला धुआं पकड़ में आ गया।
पराली जलाने की घटनाओं पर पूरी तरह अंकुश लगाने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग का अमला फील्ड में है। एक ओर जहां किसानों को जागरूक करने का काम किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर से पराली जलाने वालों पर जुर्माना भी किया जा रहा है।
यह है जुर्माने का प्रावधान
फसलों के बचे अवशेषों को जलाने पर कानूनी कार्रवाई तथा जुर्माना भी किया जा सकता है। जो कि ढाई एकड़ तक 2500 रुपये, ढाई एकड़ से पांच एकड़ तक 5000 रुपये और पांच एकड़ से ऊपर 15000 रुपये है। 47 हजार 500 रुपये जुर्माना अब तक लगाया जा चुका है।
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फसल अवशेष से होता है ये नुकसान
पर्यावरणविद डॉक्टर रवीश चौहान का कहना है कि फसल अवशेष जलाने से पोषक तत्वों का नुकसान होता है। फसल अवशेष जलाने से 100 प्रतिशत नाइट्रोजन, 25 प्रतिशत फास्फोरस, 20 प्रतिशत पोटाश और 60 प्रतिशत सल्फर का नुकसान होता है। इससे जैविक पदार्थ नष्ट हो जाते हैं। मिट्टी कीटों का नुकसान होता है। फसल अवशेष जलाने से कार्बन मोनोआक्साइड, कार्बनडाई आक्साइड, राख, सल्फर हाइआक्साइड, मीथेन और अन्य अशुद्धियां उत्पन्न होती है। इससे वायु प्रदूषण बढ़ता है। इन्हें जलाने से भूमि की उर्वरा शक्ति कम होने के साथ-साथ भूूमंडलीय तापमान में बढ़ोतरी होती है। छोटे पौधे व वृक्षों पर आश्रित पक्षी मारे जाते हैं।
फसल अवशेषों को न जलाएं, प्रबंधन करें: डा. गोदारा
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के उप निदेशक डा. आत्मा राम गोदारा ने बताया कि फसल अवशेषों के साथ 10-15 किलोग्राम यूरिया खाद डालने से अच्छी जैविक खाद मिलती है। भूमि की उर्वरा शक्ति व जैविक कार्बन में बढ़ोतरी होती है। इससे समय की बचत होती है और उपयुक्त समय पर बिजाई संभव होती है। फसल अवशेष पोटाश व अन्य पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने का महत्वपूर्ण स्त्रोत हैं। इससे रासायनिक खादों पर निर्भरता कम होती है।
फसलों की उपज में दो से लेकर चार क्विंटल प्रति हेक्टेयर की बढ़ोतरी होती है। लंबे समय में भूमि के भौतिक रासायनिक व जैविक गुणों में सुधार होता है। उत्पादन लागत में कमी आती है। इसलिए सभी किसानों से अपील है कि वे फसली अवशेषों को न जलाएं बल्कि इनका सदुपयोग कर भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाए।
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