यमुना किनारे हुआ था रतन लाल कटारिया का जन्म, साइकिल से प्रचार कर रादौर से बने थे पहली बार विधायक
रतन लाल कटारिया के मित्र जयदेव सैनी ने बताया कि वह हमारे गांव खेड़की ब्राह्मण भी आना नहीं भूलते थे। मेरे पिता पूर्व सरपंच स्व. चंदन सिंह व भाई स्व. भविष्य सैनी के साथ उनका काफी जुड़ाव था। वो अपने मित्रों के साथ खूब मजाक-मस्ती किया करते थे।

यमुनानगर, जागरण संवाददाता। अंबाला से सांसद व केंद्रीय मंत्री रतन लाल कटारिया का गुरुवार को चंडीगढ़ पीजीआई में निधन हो गया। उन्होंने 72 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। अंबाला में दोपहर तो उनका अंतिम संस्कार किया गया। रतन लाल कटारिया का यमुनानगर के रादौर क्षेत्र से पुराना रिश्ता रहा है। रादौर विधानसभा का गांव संधाली में न केवल उनकी ननिहाल था, बल्कि उनका जन्म भी इसी गांव में हुआ था।
इसके अलावा, उनका राजनीतिक सफर भी सही मायनों में रादौर विधानसभा से ही शुरू हुआ। वह क्षेत्र में साइकिल पर सवार होकर मित्रों व पार्टी कार्यकर्ताओं से सपंर्क करते थे। रात्रि में जब भी मौका मिलता पुराने साथियों के पास ही ठहरते और उनके साथ समय गुजारते थे। शुरू से ही कटारिया मस्तमौला स्वभाव के थे। दोस्तों से हंसी मजाक करना उनकी आदत थी। संगीत का शौक भी उनके साथ जुड़ा हुआ था। दोस्तों के बीच मौका मिलते ही टेबल पर ताल बिठाकर गुनगुनाने लगते थे। देशभक्ति के गीत उन्हें काफी पसंद थे। फिल्मी गानों की तर्ज पर वह खुद भी देशभक्ति के गीत तैयार करते थे।
पहली बार हारे, दूसरी बार बने विधायक
1982 में उन्होंने पहली बार यहां से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। उसके बाद 1987 में जब लोकदल से भाजपा का गठबंधन हुआ तो फिर से उन्हें यहां से चुनाव लड़ने का मौका मिला। इस बार वह विधायक बने। प्रदेश सरकार में मुख्य संसदीय सचिव बनाया गया। उनके मित्र जयदेव सैनी ने बताया कि वह हमारे गांव खेड़की ब्राह्मण भी आना नहीं भूलते थे। मेरे पिता पूर्व सरपंच स्व. चंदन सिंह व भाई स्व. भविष्य सैनी के साथ उनका काफी जुड़ाव था। गांव में उनके द्वारा बनाया गए पंचायत घर में उनके नाम का पत्थर लगा है। एक बार फिर से उन्होंने रादौर विधानसभा से चुनाव लड़ा, लेकिन जीते नहीं पाए।
आरएसएस की आइटीसी साथ में की
उन्होंने बताया कि विधानसभा के चुनाव के बाद वह लोकसभा में चले गए। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से वह लगातार जुड़े रहे। आरएसएस की आइटीसी उन्होंने मेरे साथ ही 1978 में अंबाला से की थी, जबकि ओटीसी के लिए वह 1980 में दिल्ली एक साथ ही गए और शिविर में भाग लिया। इसलिए मेरे साथ वह हर बात शेयर कर लेते थे।
जयदेव सैनी ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में लालचौक पर तिरंगा फहराने का वाक्या भी उन्होंने उनके साथ शेयर किया था। वह यह बात बताते हुए कोई झिझक नहीं करते थे कि उस समय उन्हें काफी डर भी लगा था, लेकिन देशभक्ति के रंग ने उन्हें पीछे नहीं हटने दिया।
उन्होंने कहा कि पार्टी के हर बडे़ नेता से उनका संपर्क रहता था। एक बार जब वह प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने गए तो वह अपने पिता के हाथ की बनाई जूतियां भी उनके साथ लेकर गए थे। वह कहते थे कि वाजपेयी जी को जूतियां काफी पसंद आई थी। मित्रों से लगाव ऐसा था कि जब भी कोई पुराना साथी उनसे मिलने जाता था तो तुंरत पहचान लेते थे और उसे नाम से ही अपने पास बुलाते थे। अब उनकी ये ही यादें रह गई हैं।
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