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पूना पैक्ट को लोगों ने धिक्कार दिवस के रूप में मनाया

टीचर कॉलोनी स्थित डॉ. भीमराव आंबेडकर भवन में रविवार को एक कार्यक्रम आयोजित कर पूना पैक्ट को धिक्कार दिवस के रूप में मनाया गया। इसमें मुख्य अतिथि गुजरात से आए डॉ. विनोद कुमार रहे।

By JagranEdited By: Published: Mon, 24 Sep 2018 12:00 AM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 12:00 AM (IST)
पूना पैक्ट को लोगों ने धिक्कार दिवस के रूप में मनाया
पूना पैक्ट को लोगों ने धिक्कार दिवस के रूप में मनाया

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : टीचर कॉलोनी स्थित डॉ. भीमराव आंबेडकर भवन में रविवार को एक कार्यक्रम आयोजित कर पूना पैक्ट को धिक्कार दिवस के रूप में मनाया गया। इसमें मुख्य अतिथि गुजरात से आए डॉ. विनोद कुमार रहे। इसके अलावा शिवानी ¨बजलपुर व धर्मवीर बराड़ा ने भी अपने विचार रखे हुए लोगों को पूना पैक्ट के बारे में जानकारी दी गई।

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डॉ. विनोद ने लोगों को बताया कि भारतीय इतिहास में 24 सितंबर बहुत बड़ा मुकाम रखता है। आज ही के दिन वर्ष 1932 में पूणे की यरवदा जेल में महात्मा गांधी व डॉ. भीमराव आंबेडकर के बीच समझौता हुआ था। जिसको बाद में पूना पैक्ट के नाम से जाना गया। अंग्रेज सरकार ने इस समझौते को सांप्रदायिक अधिनिर्णय (कॉम्युनल अवार्ड) में संशोधन के रूप में अपनी अनुमति प्रदान की थी। जिसके तहत बाबा साहेब द्वारा उठाई गई राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग को मानते हुए दलित वर्ग को दो वोटों का अधिकार मिला। एक वोट से दलित अपना प्रतिनिधि चुनेंगे तथा दूसरी वोट से सामान्य वर्ग का प्रतिनिधि चुनेंगे। दलित प्रतिनिधि को चुनने में सामान्य वर्ग का कोई दखल न रहा। उस वक्त महात्मा गांधी पूणा की यरवदा जेल में थे। कम्युनल एवार्ड की घोषणा होते ही पहले तो महात्मा गांधी ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इसे बदलवाने का प्रयास किया, परंतु जब उन्होंने देखा के यह निर्णय बदला नहीं जा रहा, तो उन्होंने मरण व्रत रखने की घोषणा कर दी। उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी व पुत्र देवदास गांधी बाबा साहेब के पास गए और उनसे प्रार्थना की कि वे गांधी के प्राण बचा ले। महात्मा गांधी की मृत्यु के लिए ताउम्र उन्हें दोषी न ठहराया जाए इसलिए मजबूरी में डॉ. आंबेडकर ने ये समझौता किया। यदि कॉम्युनल अवार्ड लागू हो जाता तो आज अनुसूचित समाज भी अन्य वर्गों के बराबर हो जाता। मौके पर गुरमीत गणेशपुर, मैनपाल, नीरपाल चौराही, पवन, धर्मवीर समेत अन्य मौजूद रहे।


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