23 साल से जैविक खेती कर रहे यमुनानगर के परमजीत सिंह, 200 किसानों को किया प्रेरित
हरियाणा के यमुनानगर जिले के ससोली गांव के किसान परमजीत सिंह रासायनिक मुक्त खेती के लिए प्रेरणास्रोत हैं। 23 साल पहले चार एकड़ भूमि पर खेती शुरू करने क ...और पढ़ें

200 से अधिक किसानों को रासायनिक खादों के लिए किया प्रेरित (फोटो: जागरण)
जागरण संवाददाता, यमुनानगर। रासायनिक खादों और कीटनाशकों के बढ़ते दुष्प्रभावों के बीच अब किसान धीरे-धीरे जहरमुक्त खेती की ओर कदम बढ़ाने लगे हैं।
गांव ससोली के प्रगतिशील किसान परमजीत सिंह इस बदलाव की मिसाल बनकर उभरे हैं। उन्होंने न केवल स्वयं जैविक व जहरमुक्त खेती को अपनाया।
बल्कि अपने प्रयासों से सैकड़ों किसानों को भी इस राह पर चलने के लिए प्रेरित किया है। परमजीत सिंह ने करीब चार एकड़ भूमि पर जहरमुक्त खेती कर रहे हैं।
जब इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए तो उन्होंने अपने अनुभव अन्य किसानों के साथ साझा करने शुरू किए।
उनके मार्गदर्शन और प्रेरणा से अब तक 200 से अधिक किसानों ने अपने खेतों में रासायनिक खादों का प्रयोग काफी हद तक कम कर दिया है। इनमें से 10 किसान ऐसे भी हैं जो पूरी तरह जैविक खेती को अपना चुके हैं।
परमजीत सिंह का कहना है कि यह धारणा पूरी तरह गलत है कि बिना रासायनिक खादों के अच्छी पैदावार नहीं हो सकती।
जैविक और प्राकृतिक तरीकों से न केवल बेहतर गुणवत्ता की फसल तैयार की जा सकती है, बल्कि भूमि की उर्वरता भी लंबे समय तक बनी रहती है।
वे खुद रासायनिक खादों के विकल्प के रूप में देसी और प्राकृतिक संसाधनों से खाद तैयार कर रहे हैं।
जिसका प्रयोग अब अन्य किसान भी कर रहे हैं। उन्होंने करीब 23 वर्ष पहले जैविक खेती की ओर कदम बढ़ाने वाले परमजीत सिंह ने एक एकड़ भूमि से इसकी शुरुआत की थी।
समय के साथ उन्होंने देसी किस्मों की फसलों के बीज भी स्वयं तैयार करने शुरू किए। उनका मानना है कि देसी बीज न सिर्फ मौसम के अनुकूल होते हैं, बल्कि इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक होती है। यही कारण है कि उनकी फसलों में कीटनाशकों की जरूरत न के बराबर पड़ती है।
जैविक खेती अपनाने के पीछे परमजीत सिंह की व्यक्तिगत पीड़ा भी जुड़ी है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2002 में उनकी माता अजमेरो देवी को यूरिक एसिड की शिकायत हुई थी।
जब चिकित्सकीय जांच करवाई गई तो यह सामने आया कि अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग यूरिक एसिड सहित कई गंभीर बीमारियों का कारण बन रहा है। ॉ
इसी घटना ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया और उन्होंने खेती में रसायनों के प्रयोग को छोड़ने का निर्णय लिया।
परमजीत सिंह का कहना है कि यदि सरकार वास्तव में सेफ फूड फार्मिंग यानी सुरक्षित खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देना चाहती है, तो सिर्फ सलाह या योजनाएं बनाने से काम नहीं चलेगा।
जैविक और जहरमुक्त उत्पादों की सरकारी स्तर पर खरीद की ठोस व्यवस्था करनी होगी। इससे किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिलेगा और वे बिना किसी आर्थिक डर के जैविक खेती को अपना सकेंगे।
परमजीत सिंह का कहना है कि किसान बदलाव के लिए तैयार हैं, बस उन्हें सही दिशा, प्रशिक्षण और प्रोत्साहन की जरूरत है।
आज उनके खेत एक जीवंत उदाहरण हैं कि प्राकृतिक खेती से लागत कम होती है, मिट्टी की सेहत सुधरती है और उपभोक्ताओं को सुरक्षित व पौष्टिक भोजन मिलता है।

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