'परिजन धमकी दे रहे हैं...', नाबालिग के साथ लिव इन में रह रहा युवक पहुंचा हाई कोर्ट, अदालत ने कही ये बात
एक नाबालिग लड़की के साथ लिव-इन में रह रहे एक युवक ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सुरक्षा की मांग की, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसके परिवार वाले उसे धमकी दे रहे हैं। अदालत ने पुलिस को युवक और लड़की को सुरक्षा देने का आदेश दिया। अदालत ने लिव-इन रिलेशनशिप के मुद्दे पर विचार करने की बात कही, लेकिन कोई अंतिम फैसला नहीं दिया।

परिजनों से सुरक्षा के लिए हाई कोर्ट से गुहार (फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक आदेश में नाबालिग लड़की के साथ लिव-इन संबंध में रह रहे युवक को संरक्षण देने से साफ इनकार कर दिया है।
हाई कोर्ट की एकल पीठ ने कहा कि नाबालिग के साथ किसी भी प्रकार का लिव-इन संबंध न केवल अनैतिक है बल्कि पूरी तरह अवैध है। ऐसे संबंध को संवैधानिक संरक्षण नहीं दिया जा सकता।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि ऐसे रिश्तों को संरक्षण दिया गया तो यह बाल संरक्षण से जुड़े मौजूदा कानूनों के उद्देश्य को विफल कर देगा। मामला यमुनानगर निवासी 17 साल की लड़की और 27 साल के युवक की याचिका से जुड़ा है। दोनों ने दावा किया था कि वे लिव-इन में रह रहे हैं और परिवारजन जान का खतरा पैदा कर रहे हैं।
उन्होंने पुलिस को दी शिकायत का हवाला देते हुए सुरक्षा मुहैया कराने की गुहार लगाई थी। लेकिन अदालत ने रिकॉर्ड देखने के बाद पाया कि लड़की नाबालिग है, इसलिए यह संबंध कानून की नजर में अवैध है।
सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार के वकील ने स्पष्ट किया कि नाबालिग के साथ लिव-इन संबंध न तो सामाजिक रूप से स्वीकार्य है और न ही कानूनी रूप से मान्य। यदि ऐसे रिश्तों को सुरक्षा मिलती है तो यह बाल यौन शोषण, बाल विवाह और नाबालिगों की सुरक्षा से जुड़े उद्देश्यों को नुकसान पहुंचाएगा।'
'दोनों पक्षों का बालिग होना जरूरी'
कोर्ट ने भी इस तर्क से सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि वैध लिव-इन संबंध के लिए दोनों पक्षों का बालिग होना अनिवार्य है।
अदालत ने पाक्सो एक्ट, बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 का उल्लेख करते हुए कहा कि नाबालिग के साथ किसी भी प्रकार की सहमति आधारित यौनिक गतिविधि भी कानूनन अपराध मानी जाती है और ऐसे संबंधों को किसी भी प्रकार की सुरक्षा नहीं दी जा सकती।
लड़की के हित सर्वोपरि
कोर्ट यह समिति तय करेगी कि नाबालिग की सुरक्षा, निवास और सुरक्षा के लिए क्या कदम आवश्यक हैं। कोर्ट ने पुलिस को यह भी निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को किसी भी प्रकार के शारीरिक खतरे से बचाने के लिए उचित कार्रवाई की जाए, लेकिन यह स्पष्ट किया कि यदि युवक ने कानून का कोई उल्लंघन किया है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई करने में यह आदेश बाधा नहीं बनेगा।
कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि नाबालिग लड़की के हित सर्वोपरि हैं और उसकी सुरक्षा तथा कानूनी संरक्षण सुनिश्चित करना ही न्यायालय का प्रथम कर्तव्य है।

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