Kapal Mochan Mela 2022: कपालमोचन आदिबद्री मेला 4 से, हिंदू, मुस्लिम व सिख समुदाय की आस्था का है अटूट संगम
Kapal Mochan Mela 2022 यमुनानगर के आदिबद्री में कपालमोचन मेला चार नवंबर से शुरू हो रहा है। ऐतिहासिक कपालमोचन मेला हिंदू मुस्लिम और सिख समुदाय के लिए आ ...और पढ़ें

यमुनानगर, जागरण संवाददाता। ऐतिहासिक कपालमोचन-आदिबद्री मेले का शुभारंभ चार नवंबर को विधिवत रूप से हो रहा है। यह आठ नवंबर तक चलेगा। तीर्थ स्थल हिंदू, मुस्लिम व सिख समुदाय की आस्था का संगम माना जाता है। गुरुद्वारा श्री कपालमोचन साहिब, ऋण मोचन व सूरजकुंड सरोवर में लाखों की तादाद में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं। खरीददारी कर जगाधरी के बर्तन उद्योग व अन्य कारोबारियों की आर्थिक तंगी को दूर करने का काम करते हैं। मंडल आयुक्त रेणु फुलिया मेले का शुभारंभ करेंगी।
कपालमोचन सरोवर
गऊ बच्छा मंदिर के पुजारी सुभाष शर्मा के मुताबिक श्रद्धालु सबसे पहले कपाल मोचन सरोवर में स्नान करते हैं। पुराणों में इसका सोमसर के नाम से जिक्र हैं। यहां पर भगवान श्री रामचंद्र, भगवान कृष्ण, गुरु नानक देव, गुरु गोबिंद सिंह आए थे। सरोवर के निकट गुरु गोबिंद सिंह ने माताचंडी की मूर्ति की स्थापना की थी। उसके बाद यहां के पुजाारियों को पुरोहित होने का हुक्मनामा दिया था। गुरु नानक देव जी हरिद्वार से सहारनपुर होते हुए कपालमोचन तीर्थ स्थान पर पहुंचे थे। वर्ष 1746 में, गुरु गोबिंद सिंह जी, भांगानी की लड़ाई जीतने के बाद। इस जगह पर आए और 52 दिनों तक आराम दिया। श्रद्धालु तीनों सरोवरों के साथ- साथ गुरुद्वारे वाले सरोवर में भी डुबकी लगाते हैं।
ऋणमोचन सरोवर
कपालमोचन सरोवर के बाद श्रद्धालु ऋणमोचन सरोवर में स्नान करते हैं। पुराणों में मुताबिक यहां स्नान से सभी प्रकार के ऋणों से मुक्ति मिलती है। यहीं भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों के साथ ठहर कर यज्ञ किया और पांडवों के पूर्वजों का पिंडदान करवाया। पांडव पितृ ऋण से मुक्त हुए। गुरु गोबिंद सिंह भी यहां दो बार आए और यहां 52 दिन रहकर पूजा-अर्चना की युद्ध के बाद यहां अपने अस्त्र-शस्त्र धोए थे।
सूरजकुंड सरोवर
सूरजकुंड सरोवर के साथ भी अनेक दंत कथाएं जुड़ी हुई हैं। कथाओं के मुताबिक भगवान श्रीरामचंद्र रावण का वध करने के बाद माता सीता और भाई लक्ष्मण हनुमान सहित पुष्पक विमान द्वारा कपालमोचन सरोवर में स्नान करके ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त हुए। यहां पर कुंड का निर्माण किया। जिसे सूरजकुंड के नाम से जाना जाने लगा। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस स्थान पर सिद्ध पुरुष दूधाधारी बाबा रहते थे। दूधाधारी समाज की मान्यता मुस्लिम धर्म से भी जुड़ी है।

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