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    स्थान व फोटो की प्रमाणिकता के लिए जियो टैगिग जरूरी

    किसी भी फोटो व स्थान की प्रमाणिक जानकारी हासिल करने में जियो टैगिग का विशेष योगदान होता है। उक्त शब्द कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय बाटनी विभाग के शोधार्थी अमन कुमार ने डीएवी ग‌र्ल्स कालेज में स्टाफ सदस्यों को संबोधित करते हुए कहे। कालेज की एफडीपी सेल व जनसंचार विभाग की ओर से स्टाफ सदस्यों को जियो टैगिग संबंधी जानकारी प्रदान करने के लिए वर्कशाप का आयोजन किया गया।

    By JagranEdited By: Updated: Wed, 01 Sep 2021 07:57 AM (IST)
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    स्थान व फोटो की प्रमाणिकता के लिए जियो टैगिग जरूरी

    जागरण संवाददाता, यमुनानगर

    किसी भी फोटो व स्थान की प्रमाणिक जानकारी हासिल करने में जियो टैगिग का विशेष योगदान होता है। उक्त शब्द कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय बाटनी विभाग के शोधार्थी अमन कुमार ने डीएवी ग‌र्ल्स कालेज में स्टाफ सदस्यों को संबोधित करते हुए कहे। कालेज की एफडीपी सेल व जनसंचार विभाग की ओर से स्टाफ सदस्यों को जियो टैगिग संबंधी जानकारी प्रदान करने के लिए वर्कशाप का आयोजन किया गया। प्रिसिपल डॉ. आभा खेतरपाल, एफडीपी सेल इंचार्ज डाक्टर. सुरिद्र कौर व जनसंचार विभाग अध्यक्ष परमेश कुमार ने संयुक्त रूप से कार्यक्रम की अध्यक्षता की।

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    अमन ने कहा कि डिजिटल क्रांति के युग में तेजी से चीजें बदल रही है। ऐसे में जियो टैगिग का महत्व दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। जियो टैगिग का अर्थ किसी भी काम की भौगोलिक स्थिति, फोटो, मैप और वीडियो के जरिए सटीक जानकारी देना है। इससे अक्षांश व देशांतर से उस जगह की लोकेशन जानी जाती है। इससे गूगल मैप देखकर जगह का आसानी से पता किया जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य चीजें भी इससे जोड़ी जा सकती हैं।

    उन्होंने बताया कि सरकारी विभागों में विकास संबंधी रिपोर्ट तैयार करने में जियो टैगिग का प्रचलन दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

    जियो टैग फोटो बहुत सी जगहों पर इस्तेमाल की जाती है। इनका मुख्य उद्देश्य अपनी लोकेशन की जानकारी देना होता है। आमतौर पर जब मोबाइल कैमरे से फोटो खिची जाती है, तो उसमें जियो टैगिग की ऑप्शन बंद होता है। कैमरे की सेटिग में जाकर इसे ऑन किया जा सकता है। फोटो लेने के बाद इसे बाद में भी जोड़ा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर उन्होंने बताया कि जब अत्याधिक मात्रा में पौधे रोपित किए जाते हैं, तो उन सभी जियो टैगिग की जाती है। कुछ महीनों के बाद उनकी प्रोग्रेस रिपोर्ट जानने के लिए फिर से पौधे की फोटो खींचकर जियो टैगिग के साथ भेजी जाती है। जिससे पता चलता है कि यह वही पौधा है, जिसकी रोपण के समय फोटो भेजी गई थी।