जीवामृत से बढे़गी किसानों की आमदनी : देसी गाय की खरीद पर मिलेंगे 25 हजार, घोल तैयार करने के लिए ड्रम साथ में
प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए देसी गाय की खरीद पर 25 हजार रुपये तक अनुदान दिया जाएगा। साथ ही जीवामृत का घोल तैयार करने के लिए चार बड़े ड्रम किसा ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, यमुनानगर :
प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए देसी गाय की खरीद पर 25 हजार रुपये तक अनुदान दिया जाएगा। साथ ही जीवामृत का घोल तैयार करने के लिए चार बड़े ड्रम किसानों को उपलब्ध करवाए जांएगे। सरकार की इस योजना से किसानों को प्राकृतिक खेती के साथ ही स्वदेशी गाय खरीदने में मदद मिलेगी। कृषि विशेषज्ञ डाक्टर जसविद्र सिंह कहते है कि अंधाधुंध कीटनाशक व रासायनिक खादों के प्रयोग से बीमारियां व भूमि की उपजाऊ शक्ति घटती जा रही है। यह चिताजनक है। प्राकृतिक खेती को अपनाकर किसान कम खर्च कर अधिक आमदनी ले सकते हैं। जिले में 65 हजार किसान हैं। धीरे-धीरे किसानों का रूझान जैविक खेती की ओर बढ़ रहा है। एक माह पूर्व जयधर के किसान विजय को कृषि मंत्री जैविक खेती के लिए सम्मानित भी कर चुके हैं।
खानपान को बदलना ही उद्देश्य :
डीसी पार्थ गुप्ता ने बताया कि देश में हरियाणा पहला राज्य होगा, जहां प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए इस तरह की पहल की गई है। प्राकृतिक खेती का मूल उद्देश्य खान-पान को बदलना है। प्राकृतिक खेती का प्रदर्शन प्लांट लगाने वाले किसानों के लिए पोर्टल बनाया जाएगा। इस पर जमीन की पूरी जानकारी देने के साथ-साथ किसान स्वेच्छा से फसल विविधिकरण अपनाने के बारे में जानकारी देंगे। इस प्रकार विभाग के पास पूरी जानकारी होगी तो उसकी आसानी से मोनिटरिग की जा सकेगी।
नहीं होता रसायनों का प्रयोग
प्राकृतिक खेती के तहत किसी भी तरीके के कृषि रसायन व उर्वरक का प्रयोग नहीं किया जाता है, बल्कि इसकी पूरी प्रक्रिया प्राकृतिक संसाधनों पर ही निर्भर करती है। कृषि उत्पाद पूरी तरह स्वास्थ्य वर्धक व शुद्ध होते हैं। सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती को प्रदेशभर में प्रोत्साहित किया जा रहा है। सरकार ने पंजीकृत गोशालाओं को सस्ती दरों पर चारा मुहैया करवाने के लिए हरा चारा बीजाई योजना शुरू की है। इस योजना के अंतर्गत जो भी किसान गोशाला के आस-पास चारा उगाएगा उसे हरियाणा सरकार की ओर से प्रति एकड़ दस हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी जो यह आर्थिक सहायता अधिकतम एक लाख रुपये हैं।
ऐसे तैयार होता हैं जीवामृत :
डाक्टर सिंह कहते है कि किसान जीवामृत को आसानी से तैयार कर सकते हैं। इसके लिए दस किलो देसी गाय का गोमूत्र, दस किलोग्राम गोबर, दो किलो पुराने पेड़ के नीचे की मिट्टी, दो किलोग्राम गुड, दो किलोग्राम चने का आटा, दो दर्जन केले के छिलकें के टुकड़े एकत्र करने होंगे। उसके बाद इनको दो सौ लीटर के प्लास्टिक के टैंक में घोल बनाकर आठ दिन तक ढककर रखें। बीच-बीच घड़ी की सूई की तरह लकड़ी से घाल को मिला दें। ऐसा करने पर दस दिन में यह घाल तैयार हो जाएगा।
ऐसे कर सकते हैं छिड़काव :
सौ लीटर जीवामृत को पांच सौ लीटर पानी में मिलाकर अच्छी तरह से मिला लें। स्प्रै मशीन से 21 दिन के अंतराल या फूल आने से पहली अवस्था में फसलों पर छिड़ाव कर सकते हैं। किसान कम लागत में अधिक पैदावार प्राकृतिक खेती को अपनाकर ही कर सकते हैं। शुरुआत में जैविक खेती से पैदावार में कमी आती है। फिर जीवामृत के घोल व प्राकृतिक पद्धती से अच्छी पैदावार ली जा सकती है। जिससे किसान की आमदनी बढ़ेगी।

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