Success Story: परंपरागत खेती करने पर वाले किसान गुरनाम को सूझा ऐसा आइडिया, अब फूलों के जरिए कर रहे लाखों की कमाई
कभी-कभी मेहनत सही दिशा में न करने पर उस परिश्रम का लाभ नहीं मिलता है। यही वाक्या किसान गुरनाम सिंह सैनी के साथ हुआ। परंपरागत खेती करते हुए वो कर्ज में ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, यमुनानगर। फूलों की खेती ने उर्जनी के प्रगतिशील किसान गुरनाम सिंह सैनी की तकदीर बदल दी। तीन एकड़ में वह तीन किस्म के गेंदे, गुलदावरी और ग्लैड के फूलों की खेती कर रहे हैं। जमीन को छह हिस्सों में विभाजित किया हुआ है। आधे-आधे एकड़ में इस तरीके से फूलों की खेती करते हैं कि पूरे साल फूलों की उपलब्धता सुनिश्चित रहे। बाजार में फूलों की कीमतें अच्छी मिलने से यह लाभकारी साबित हो रही हैं। इस जमीन से 15 लाख की कमाई कर रहे हैं।
खुद की ढाई एकड़ आधा एकड़ ठेके पर ली जमीन
गुरनाम सिंह सैनी के पास घर के बगल में ही स्वयं की ढाई एकड़ जमीन है। वह आधा एकड़ ठेके पर भी लेकर रखते हैं। वह हर आधे एकड़ में क्रम से फूलों की खेती करते हैं, जिससे वर्ष भर उनके खेतों में फूलों की उपलब्धता होती रही। ग्लैड का बीज जो काफी महंगा होता है। इस खेती में ज्यादा मेहनत तो करनी पड़ती है, लेकिन कमाई भी ज्यादा ही होती है। वह सरकार द्वारा सब्सिडी पर उपलब्ध कराया जाता है। गुरनाम सिंह के अनुसार ग्लैड की एक सटीक की कीमत ₹10 से लेकर ₹100 रुपये तक होती है।
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साल 2012 में शुरू की फूलों की खेती
सैनी ने साल 2012 से छोटे स्तर पर फूलों की खेती शुरू की थी। शुरू में काफी समस्याओं से दो-चार होना पड़ा। बाद में फूलों की खेती की ऐसी रूचि बढ़ी उन्होंने परंपरागत खेती को बिल्कुल छोड़ दिया। तीन एकड़ जमीन से 15 लाख रुपये सालाना की कमाई कर रहे हैं। जिससे परिवार के साथ बेहतर जीवन का व्यापन हो रहा है। देहरादून, पावंटा साहिब यमुनानगर के खरीददार स्वयं गुरनाम सिंह के खेतों में पहुंचते हैं।
15 लोगों को देते रोजगार
गुरनाम सिंह सैनी का कहना है कि फूलों की खेती करने के लिए ज्यादा मजदूर की जरूरत पड़ती है। खेतों में हर समय 10 से 15 लोग काम करते हैं। गांव के ही लोग फूलों की छंटाई, निराई और गुड़ाई का काम करते हैं। साथ ही ऑर्डर मिलने पर वही मजदूर फूलों की माला बनाने का काम भी करते हैं। प्रत्येक मजदूर को 400 से ₹500 प्रतिदिन की आमदनी आराम से हो जाती है।
परंपरागत खेती छोड़ी तब निकले कर्ज से बाहर
गुरनाम सिंह सैनी ने बताया वह अपनी ढाई एकड़ जमीन में परंपरागत धान व गेहूं की खेती करते थे। परंपरागत फसलों को उगाने में वह हमेशा कर्ज के जाल में उलझे रहे। कृषि विभाग के अधिकारियों के कहने पर उन्होंने परंपरागत खेती छोड़ फूलों की खेती करने की ठानी। फूलों की खेती करने पर सरकार की ओर से भारी अनुदान मिलता है। इसका सही उपयोग कर किसान अपने साथ-साथ दूसरों को भी लाभ पहुंचा सकते हैं।

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