डॉ. कलाम का अनुशासित जीवन औरों के लिए आदर्श
सामान्य मध्यवर्गीय परिवार से राष्ट्रपति भवन तक का रास्ता तय करते हुए डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन प
सामान्य मध्यवर्गीय परिवार से राष्ट्रपति भवन तक का रास्ता तय करते हुए डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन पूरी तरह संयमित रहा। उन्होंने हमेशा अनुशासन में रहते हुए कार्य किया और आगे बढ़ते गए। अनुशासन में वह दूसरों के लिए आदर्श पेश कर गए। बच्चों को उनके जीवन से अन्य शिक्षाओं के साथ अनुशासन की शिक्षा भी मिलती है।
आपसी प्रेम व सद्भावना का दिया संदेश
डॉ. कलाम समाज में प्रेम, शांति व सद्भावना चाहते थे। उन्होंने सभी धर्मो का सम्मान किया। ऐसा कहा जाता है कि वे कुरान और भगवद् गीता दोनों का अध्ययन करते थे। कलाम ने कई स्थानों पर उल्लेख किया है कि वे तिरुक्कुलर का भी अनुसरण करते हैं, उनके भाषणों में कम से कम एक कुरल का उल्लेख अवश्य रहता था। राजनीतिक स्तर पर कलाम की चाहत थी कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की भूमिका विस्तार हो। भारत ज्यादा से ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाये। भारत को महाशक्ति बनने की दिशा में कदम बढ़ाते देखना उनकी दिली चाहत थी।
कई पुस्तकों की रचना की
डॉ. कलाम ने कई प्रेरणास्पद पुस्तकों की भी रचना की थी। वे तकनीक को भारत के जनसाधारण तक पहुंचाने की हमेशा वकालत करते रहे। बच्चों और युवाओं के बीच डाक्टर कलाम अत्यधिक लोकप्रिय थे। वह भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान के कुलपति भी थे। उन्होंने इंडिया 2020 ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम, माई जर्नी तथा इग्नाटिड माइंड्स-अनलीशिग द पॉवर विदिन इंडिया। इन पुस्तकों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। एक विशिष्ट वैज्ञानिक होने के नाते 40 से अधिक विश्वविद्यालयों और संस्थानों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त हो चुकी है।
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पद छोड़ते ही छोड़ दी राजनीति
वर्तमान समय में ज्यादातर नेता एक बार राजनीति में आने के बाद राजनीति के ही होकर रह जाते हैं, लेकिन डॉ. कलाम ने राष्ट्रपति का कार्यालय छोड़ने के बाद राजनीति छोड़ दी और भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग, अहमदाबाद इंदौर व भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर के मानद फैलो, व एक विजिटिंग प्रोफेसर बन गए। भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, तिरुवनंतपुरम के कुलाधिपति, अन्ना विश्वविद्यालय में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर रहे। देश भर में कई अन्य शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों में सहायक बन गए। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और अन्ना विश्वविद्यालय में सूचना प्रौद्योगिकी और अंतराष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान हैदराबाद में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पढ़ाया।
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चरित्र पर बनाई फिल्म
2011 में आई हिंदी फिल्म आई एम कलाम में, एक गरीब लेकिन उज्जवल बच्चे पर कलाम के सकारात्मक प्रभाव को चित्रित किया गया। उनके सम्मान में वह बच्चा छोटू जो एक राजस्थानी लड़का है खुद का नाम बदल कलाम रख लेता है। कलाम की कुडनकुलम परमाणु संयंत्र पर अपने रुख से नागरिक समूहों द्वारा आलोचना की गई। इन्होंने ऊर्जा संयंत्र की स्थापना का समर्थन किया। इन पर स्थानीय लोगों के साथ बात नहीं करने का आरोप लगाया गया। इन्हें एक समर्थ परमाणु वैज्ञानिक होने के लिए जाना जाता है।
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