लाखों की लकड़ी को खा रही दीमक
संवाद सहयोगी, रादौर : कांजनू में वन विभाग के डीपो में पड़ी लाखों रुपये की खराब होने के कगार पर पहुंच
संवाद सहयोगी, रादौर : कांजनू में वन विभाग के डीपो में पड़ी लाखों रुपये की खराब होने के कगार पर पहुंच गई है। कहने को विभाग की ओर से हर माह कांजनू डीपो में मौजूद लकड़ी की ठेकेदारों से नीलामी की जाती है। बावजूद इसके कई-कई वर्षो से डीपो में पड़ी लकड़ी को किसी ठेकेदार ने नहीं खरीदा। उसके कारण वर्षो से मौके पर पड़ी लकड़ी खस्ता हालत में पहुंच गई है और अब बिकने की हालत में भी नहीं है। हालांकि विभाग की ओर से कांजनू लकड़ी के डीपो में लकड़ी की देखभाल के लिए दो चौकीदार लगाए गए है, जो मात्र लकड़ी की सुरक्षा करते है। लकड़ी खुले आसमान के नीचे पड़ी है जो वर्षो से बारिश, धूप, गर्मी, सर्दी के कारण नष्ट होती आ रही है, जिसके लिए क्षेत्र के लोगों ने वन विभाग के अधिकारियों को जिम्मेदार बताया है।
भारतीय किसान यूनियन जिला प्रधान संजू गुंदयाना ने बताया कि वन विभाग रादौर क्षेत्र में अपनी लकड़ी की कटाई करने के बाद लकड़ी को कांजनू गाव स्थित डीपो में भिजवाता है। यहां लकड़ी की नीलामी की जाती है। कांजनू डीपो में विभाग की ओर से लकड़ी के रखरखाव का कोई प्रबंध नहीं है। लकड़ी वर्षो से डीपो में पड़ी हुई है। थोड़ी बहुत लकड़ी की नीलामी करके विभाग के अधिकारी अपनी पीठ थपथपा लेते है, लेकिन डीपो में मौजूद करोड़ों रुपये की लकड़ी को नष्ट होने से बचाने के कोई उपाय नहीं किए जाते। डीपो में सफेदा, शीशम, सिरस, नसौड़ा आदि लकड़ी पड़ी हुई है। नीलामी में अच्छी लकड़ी को ठेकेदार खरीद कर ले जाते है। बकाया लकड़ी डीपो में पड़ी रहती है, जो वर्षो तक नहीं बिकती और नष्ट हो जाती है। ऐसे में सरकार को हर वर्ष करोड़ों रुपये का नुक्सान होता है। विभाग की ओर से डीपो में पहुचने वाली लकड़ी के रखरखाव को लेकर कोई बड़े कदम नहीं उठाए जाते। लकड़ी डीपो में रामभरोसे पड़ी हुई हैं। भारतीय किसान यूनियन की ओर से मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर को एक पत्र भेजकर इस बारे कार्रवाई करने की माग की है, ताकि लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों के विरुद्ध ठोस कार्रवाई की जा सके। इस बारे वन विभाग के दरोगा नरेश कुमार ने बताया कि हर महिने लकड़ी की बोली की जाती है। विभाग से रजिस्टर्ड ठेकेदार बोली में भाग ले सकता है। लकड़ी को वर्षो से विभाग खुले में ही डाल रहा है। खराब हुई लकड़ी के बारे में विभाग के अधिकारियों को समय समय पर अवगत कराया जाता रहा है, जिस बारे अधिकारी निर्णय लेते है।
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