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    भगवान विष्णु को छाया देने को बेरी का पेड़ बनीं लक्ष्मी

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    Updated: Sat, 16 Nov 2013 01:13 AM (IST)

    संवाद सहयोगी, बिलासपुर : भगवान विष्णु ने एक बार लक्ष्मी से कहा कि हे लक्ष्मी वैसे तो मैं तुम्हें एक क्षण भी अपनी सेवा से विमुख नहीं रखना चाहता हूं, परंतु इस समय पृथ्वी संकटों से घिरी है। इसलिए उसका उद्धार करने के लिए मुझे सरस्वती नदी के उद्गम स्थल के नजदीक कुछ समय एकांत में तप करना होगा। तुम निश्चिंत रहना मैं पृथ्वी की ¨चता दूर करके शीघ्र ही वापस आऊंगा।

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    ऐसा कहकर विष्णु बैकुंठ धाम से आदिबद्री क्षेत्र में पृथ्वी पर आकर तप करने लगे। उधर, लक्ष्मी को भी लगा कि विष्णु अकेले तप कर रहे हैं, मैं भी उनके तप में सहयोगी बनूं। इसी इच्छा से लक्ष्मी भी विष्णु को देखने पृथ्वी पर आ गई। लक्ष्मी देखती है कि समस्त भू-मंडल के मालिक भगवान विष्णु बैशाख-ज्येष्ठ (मई-जून) महीने की कठोर धूप में खुले आकाश के नीचे घोर तप कर रहे है। लक्ष्मी यह दृश्य देख न सकी और तुरंत विष्णु के तप करने के स्थान पर एक बदरी (बेरी) का पेड़ बन भगवान विष्णु को शीतल छाया प्रदान करने लगी।

    भगवान विष्णु तपस्या में लीन थे। शीत, ऊष्ण, सर्दी, गर्मी, धूप, छाया आदि की ओर उनका कोई ध्यान नहीं था। एक दिन वह समय भी आया, जिस दिन भगवान विष्णु का तप पूरा होना था। उसी उपलक्ष्य में देवताओं ने एक यज्ञ का आयोजन किया, परंतु अर्धागिनी के बिना यज्ञ कैसे पूरा होगा। भगवान विष्णु की चिंता को दूर करने के लिए समस्त देवताओं ने यज्ञ से एक दिव्य कन्या को प्रकट किया और भगवान विष्णु को इसे अर्धागिनी के रूप में स्वीकार करने को कहा। इतने में लक्ष्मी बदरी (बेर) के पेड़ के रूप में सहभागिनी बनी हुई थी और सब घटना देख रही थी। उसे लगा कि अब नारायण भगवान विष्णु दूसरा विवाह रचाने लगे है और मुझे त्याग देंगे। भगवान विष्णु बैकुंठ वापस नहीं जाएंगे। इस भय से लक्ष्मी बदरी (बेरी) के पेड़ के रूप को छोड़कर अपने असली रूप में प्रकट हो गई। बेरी का पेड़ गायब हो गया। उसी पेड़ की जगह लक्ष्मी भगवान विष्णु के पीछे खड़ी नजर आई। यह देख विष्णु भगवान ने मंत्रों से प्रकट हुई उस कन्या से कहा कि हे कन्या आप अत्यंत भाग्यशाली हो, मैं आपके साथ सदा ही निवास करूंगा, परंतु अब लक्ष्मी जी आ गई है।

    उन्होंने कहा कि आपके उपकार को मैं तुम्हे संपूर्ण शक्ति प्रदान करके चुकाऊंगा। आप तत्काल ही यहा से अंतरध्यान होकर सामने पर्वत शिखर में निवास करो। वहा तुम्हारी व मेरी दोनों की ही दिव्य लालवर्ण के पत्थर की प्रतिमा में मैं तुम्हारे साथ निरतर निवास करूंगा। फिर यह स्थान मेरे नाम से न होकर केवल तुम्हारे नाम से ही जाना जाएगा। कलयुग में भक्तों को वरदान देने के लिए माता मंत्रा देवी के नाम से आप सदा ही सुविख्यात होंगी।

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