पांच प्रकार के ऋण लेकर पैदा होता मनुष्य : पुरुषोतम
संवाद सहयोगी, मुस्तफाबाद : कृष्णा सत्संग भवन सरस्वती धाम में चल रहे शिव महापुराण कथा का समापन आरती के साथ किया गया।
आचार्य पुरुषोतम जी महाराज ने कहा कि मानव जन्म से पाच प्रकार का ऋणी होता है। देव ऋण, पितृ ऋण, गुरु ऋण, लोक ऋण और भूत ऋण। यज्ञ के द्वारा देव ऋण श्राद्ध और तर्पण के द्वारा पीत्र ऋण, विद्या दान के द्वारा गुरु ऋण, शिव अराधना से भूत ऋण से मुक्ति का साधन, सास्त्रों में बताया गया है। जब तक जीव ऋण मुक्त नहीं होता तब तक पुन: जन्म से छुटकारा नहीं मिल सकता।
आचार्य जी ने कहा कि भगवान शिव संपूर्ण भूत में व्याप्त है। इसलिए जीव मात्र की सेवा ही सच्ची शिव भक्ति है। इसलिए मन, वचन तथा कर्म से किसी को दुख न पहुंचे। इस संकल्प के साथ हम श्रद्धापूर्वक शिव नाम का सतत जाप करे। जहा श्रद्धा का अपमान होता है। उस यज्ञ का फल सुख नहीं दुख ही होता है।
उन्होंने कहा कि दक्ष यानि की अहकार ने सती अर्थात श्रद्धा का अमपान किया परिणाम बड़ा ही भयंकर निकला। इसलिए शिव महापुराण संपूर्ण मानव को यह संदेश देता है कि कभी अहंकार में आकर श्रद्धा का अपमान मत करना।
इस अवसर पर सुशील कुमार गोयल, वेद प्रकाश, जय प्रकाश, सतीश कुमार गोयल, राज रानी, आशा रनाी, प्रभा, मोनिका गोयल, अश्वनी बंसल, रत्न चंद आदि उपस्थित रहे।
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