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    प्रथम नवरात्र पर माता शैलपुत्री की पूजा कर मांगी सुख-समृद्धि

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 02 Apr 2022 05:15 PM (IST)

    नवरात्र शनिवार को माता शैलपुत्री के पूजन के साथ शुरू हो गए। श्रद्धालुओं ने जहां घरों में कलश की स्थापना कर माता की पूजा और व्रत शुरू किया वहीं मंदिरों में विशेष आराधना शुरू की गई। देवी मंदिरों में एक साथ कई पुजारियों द्वारा पूजन कराया जा रहा है। पंडितों ने मंत्रों का उच्चारण कर माता शैलपुत्री की पूजा कर सुख-समृद्धि की कामना की।

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    प्रथम नवरात्र पर माता शैलपुत्री की पूजा कर मांगी सुख-समृद्धि

    जागरण संवाददाता, सोनीपत: नवरात्र शनिवार को माता शैलपुत्री के पूजन के साथ शुरू हो गए। श्रद्धालुओं ने जहां घरों में कलश की स्थापना कर माता की पूजा और व्रत शुरू किया, वहीं मंदिरों में विशेष आराधना शुरू की गई। देवी मंदिरों में एक साथ कई पुजारियों द्वारा पूजन कराया जा रहा है। पंडितों ने मंत्रों का उच्चारण कर माता शैलपुत्री की पूजा कर सुख-समृद्धि की कामना की। सुनारों वाली गली स्थित चिटाने वाली माता मंदिर, कामी रोड स्थित काली माता मंदिर में नवरात्र के पहले दिन विधि-विधान के साथ कलश स्थापना की गई। माडल टाउन स्थित श्री नवदुर्गा शक्ति सिद्धपीठ मंदिर में ब्राह्मणों ने माता की आराधना और पाठ किया।

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    मां दुर्गा के पहले स्वरूप के बारे में कृष्ण पाठक ने बताया कि हिमालय की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवती ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया। मां शैलपुत्री सभी प्रकार के मनोरथ पूरे पूर्ण करती हैं। मंदिर में सुबह आठ से नौ व पाठ नौ से 12 तक होगा। शाम तीन से छह बजे तक आरती की जाएगी। दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कुष्माण्डा, पांचवें दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी और नौवें दिन सिद्धिदात्री को पूजा जाता है। आज होगी मां ब्रह्मचारिणी की पूजा: कामी रोड स्थित कामी माता मंदिर के हनुमान प्रसाद ने बताया कि नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। शास्त्रों के मुताबिक, मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज के यहां पुत्री बनकर जन्म लिया। पार्वती ने महर्षि नारद के कहने पर देवाधिदेव महादेव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी।

    हजारों वर्षों तक की कई इस कठिन तपस्या के कारण ही इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा। अपनी इस तपस्या से उन्होंने महादेव को प्रसन्न कर लिया। मान्यता है कि अगर मां की भक्ति और पूजा से दिल से की जाए तो मां ब्रह्मचारिणी अपने भक्तों से प्रसन्न होकर उन्हें धैर्य, संयम, एकाग्रता और सहनशीलता का आशीर्वाद देती हैं। भीमेश्वरी माता के मंदिर में अष्टमी पर लगेगा मेला: गोहाना में अष्टमी पर देवी नगर स्थित माता भीमेश्वरी के मंदिर में मेला लगेगा। यहां पर साल में नवरात्र के उपलक्ष्य में दो बार मेला लगता है। अष्टमी पर मंदिर में गोहाना के अलावा विभिन्न गांवों से हजारों श्रद्धालु पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं। करीब 70 साल पहले स्व. प्रभुदयाल वर्मा बेरी स्थित माता भीमेश्वरी के मंदिर से अखंड ज्योति लेकर गोहाना आए थे, जिसके बाद देवी नगर में मंदिर का निर्माण करवाया।

    मंदिर में लगातार अखंड ज्योति जलती है। मंदिर की गोहाना रेलवे स्टेशन से आधा किलोमीटर और बस स्टैंड से दो किलोमीटर दूरी है। इसके साथ शहर में चिटाने वाली माता को सप्तमी के दिन कामी रोड के मैदान में ले जाकर स्थापित किया जाता है और इस दिन यहां भी मेला लगता है। जिले से काफी संख्या में नरेला में माता शीतला के मंदिर में षष्ठी को, बेरी में माता भीमेश्वरी के मंदिर में लगने वाले मेले में और गुरुग्राम में माता शीतला के मंदिर में लगने वाले मेले में दर्शनों के लिए जाते हैं। इसके साथ काफी श्रद्धालु पंचकूला में माता मनसा देसी के मंदिर में भी दर्शनों के लिए जाते हैं।