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    कल से शुरू हो रहा है सावन, भस्म श्रृंगार से करें भगवान शिव की पूजा; सारी कामना होंगी पूरी

    By Jagran NewsEdited By: Monu Kumar Jha
    Updated: Thu, 10 Jul 2025 04:30 PM (IST)

    सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है जिसमें रुद्राभिषेक और जलाभिषेक का विशेष महत्व है। आचार्य मनमोहन मिश्रा के अनुसार इस महीने में शिव पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि भगवान शिव को प्रिय फूल-पत्ते उपलब्ध होते हैं। मान्यता है कि माता पार्वती ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए व्रत किया था। सावन में रुद्राभिषेक की परंपरा समुद्र मंथन से जुड़ी है।

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    सावन में शिव आराधना, रुद्राभिषेक और महत्व। फाइल फोटो

    जागरण संवाददाता, सोनीपत। शुक्रवार से श्रावण मास यानी सावन की शुरुआत हो चुकी है। यह महीना भगवान शिव की भक्ति और आराधना के लिए विशेष रूप से समर्पित होता है। इस पूरे महीने भक्त रुद्राभिषेक, बेलपत्र अर्पण, जलाभिषेक और भस्म श्रृंगार के साथ भोलेनाथ की पूजा करते हैं।

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    आचार्य मनमोहन मिश्रा के अनुसार सावन का महीना दक्षिणायन में आता है, जिसके अधिदेवता भगवान शिव हैं, इसी कारण सावन में शिव पूजा का विशेष महत्व है।

    उन्होंने बताया कि पुराणों के अनुसार सावन के महीने में वर्षा ऋतु के कारण वे सभी फूल-पत्ते उपलब्ध होते हैं, जो शिवजी को अत्यंत प्रिय हैं। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि स्वयं भगवान शिव ने सनत्कुमार को बताया था कि श्रावण मास उन्हें सबसे प्रिय है।

    इस महीने की हर तिथि व्रत योग्य और हर दिन पर्व समान होता है।मान्यता है कि माता पार्वती ने युवावस्था में सावन माह में कठिन व्रत करके शिवजी को प्रसन्न कर विवाह किया था।

    एक मान्यता यह भी है कि सावन में भोलेनाथ अपनी ससुराल आते हैं, जहां उनका जलाभिषेक कर स्वागत किया जाता है। तभी से यह परंपरा हर वर्ष निभाई जाती है।

    क्यों होता है रुद्राभिषेक

    सावन मास में समुद्र मंथन के दौरान निकले हलाहल विष को शिवजी ने अपने कंठ में धारण किया था। विष के प्रभाव को शांत करने के लिए देवताओं ने उन पर जल अर्पित किया था। तभी से सावन में रुद्राभिषेक की परंपरा शुरू हुई।

    बेलपत्र और भस्म का महत्व

    शिव के तीन नेत्रों सूर्य, चंद्र और अग्नि का प्रतीक माना जाता है बेलपत्र। स्कंद पुराण के अनुसार बेल वृक्ष में कई देवी शक्तियों का वास होता है, इसे चढ़ाने से शिव के साथ-साथ देवी शक्ति की भी पूजा होती है।भस्म श्रृंगार का भी गहरा भावार्थ है।

    जब सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह किया था, तब शोक में शिवजी ने उनकी चिता की भस्म को अपने शरीर पर लगाया था। तभी से यह श्रृंगार शिव भक्ति का प्रतीक बन गया।

    दीर्घायु व आरोग्य के लिए पूजा

    मारकण्डेय ऋषि ने श्रावण मास में कठिन तप से शिव की कृपा पाई और यमराज तक को परास्त किया। तभी से सावन को दीर्घायु, आरोग्य और अकाल मृत्यु से मुक्ति के लिए श्रेष्ठ काल माना जाता है।

    श्रावण मास न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह संयम, श्रद्धा और आत्मबल को जागृत करने वाला पर्व भी है।