तकनीक और विज्ञान की शिक्षा में दृष्टिबाधित छात्रों की राह होगी सरल, ब्रेल लिपि से आगे बढ़कर मिलेगी सहायता
आइआइटी दिल्ली के छात्र कुणाल कत्रा ने बताया कि दृष्टिबाधित होना बीमारी है अभिशाप नहीं है। हमारी नई तकनीक से प्रतिभा संपन्न दृष्टिहीन सामान्य छात्रों की तरह प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ सकेंगे। टीम को सरकार का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है।
डीपी आर्य, सोनीपत: मेडिकल और इंजीनियरिंग की शिक्षा में नेत्रहीन छात्रों को आने वाली बाधाओं को थ्रीडी पेंटिंग और थर्माफार्मिंग तकनीक से दूर कर लिया गया है। आइआइटी दिल्ली के छात्र कुणाव क्वात्रा ने टीम के साथ मिलकर यह तकनीक विकसित की है जिसे अब स्टार्टअप के माध्यम से आगे बढ़ाया जा रहा है। इस तकनीक का लाभ यह होगा कि नेत्रहीन छात्र अब विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण माने जाने वाले डायग्राम आदि को स्पर्श करके ही उसके बारे में समझ सकेंगे। इस तकनीक के आधार पर फिलहाल एनसीईआरटी के साथ मिलकर कक्षा 10 तक की पुस्तकें उपलब्ध करा दी गई हैं। जल्द ही इस तकनीक से उच्च शिक्षा की पुस्तकों को तैयार किया जाएगा। दृष्टिबाधित युवाओं की सबसे बड़ी समस्या शिक्षा की होती है।
ब्रेल लिपि से आगे बढ़कर मिलेगी सहायता
कई प्रतिभासंपन्न दृष्टिबाधित छात्र भी उच्च-शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं। ब्रेल लिपि और कई तरह के सेंसर व चश्मों वाली तकनीक से छात्र अक्षर ज्ञान तो प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन तकनीकी शिक्षा प्राप्त करना आसान नहीं था। उनको गणित के सूत्र, भूगोल के चित्र, चिकित्सा विज्ञान के डायग्राम, ग्राफिक्स और सूत्रों को समझना बेहद कठिन था। ब्रेल लिपि के आधार पर वह तकनीकी शिक्षा में पारंगत नहीं हो सकते थे। कई देशों में दृष्टिहीन छात्रों के लिए नई तकनीक की जरूरत महसूस की जा रही थी।
आइआइटी के सोनीपत कैंपस में नेत्रहीनों के लिए नई तकनीक पर आधारित पुस्तक को लेकर विमर्श करते आइआइटी के छात्र व प्रोफेसर। जागरण
स्पर्श से जुड़ी तकनीक पर आधारित
आइआइटी दिल्ली में स्थापित सेंटर आफ एक्सीलेंस इन टेक्टाइल ग्राफिक्स में डायग्राम को समझने का नया समाधान तैयार किया गया। कुणाल और उनकी टीम ने इस नई तकनीक को विकसित करकेइन्क्यूबेट किया है। इसमें ग्राफिक्स, डायग्राम और सूत्रों को पहचानने की ऐसी तकनीक तैयार की गई है, जिसको स्पर्श मात्र से समझा जा सकेगा। इसको थ्रीडी पेंटिंग प्लस थर्माफार्मिंग श्रेणी में रखा गया है।
पुस्तकें कर रहे तैयार
कुणाल क्वात्रा की टीम ने एनसीईआरटी, भारत सरकार के सर्व शिक्षा अभियान, यूएन संगठन डब्ल्यूएसएससीसी आदि के साथ मिलकर नई तकनीक पर आधारित पुस्तकेें तैयार करनी शुरू कर दी हैं। गणित, विज्ञान, मेडिकल और इंजीनियरिंग के सूत्र, छायाचित्र व मानव शरीर के अंगों की आकृतियों के डायग्राम नई तकनीक पर तैयार किए जा रहे हैं। यह तकनीक विश्वभर में स्वीकार्य पद्धति पर आधारित है। इसमें काफी समय और मेहनत लग रही है। ऐसे में चार वर्ष में 10वीं तक की 28 पुस्तकेें तैयार की गई हैं। कुणाल की तैयारी अगले चार वर्ष में मेडिकल-इंजीनियरिंग व एमएससी स्तर की पुस्तकें तैयार करने की है।
थ्री-डी पेंटिंग प्लस थर्माफार्मिंग पर आधारित पुस्तक दिखाते टीम लीडर कुणाल क्वात्रा। जागरण
यूरोप व अमेरिका तक पहुंचाने की तैयारी
आइआइटी दिल्ली के प्रोफेसर एम बाालकृष्णन का कहना है कि इस तरह से तैयार की गई टेक्टाइल पुस्तकों को हमने जर्मनी, नार्वे के साथ यूरोप के कई अन्य देशों व श्रीलंका और अमेरिका में भी हमने दिखाया है। वहां इन्हें काफी सराहा गया है। आइआइटी दिल्ली के प्रोफेसर पीवीएम राव ने बताया कि रेस्ड लाइंस फाउंडेशन प्रयास कर रहा है कि भारत के साथ इन देशों के दृष्टिबाधितों से जुड़े संस्थानों के सहयोग से यह तकनीक वहां भी पहुंचाएं।
आइआइटी दिल्ली के छात्र कुणाल कत्रा ने बताया कि दृष्टिबाधित होना बीमारी है, अभिशाप नहीं है। हमारी नई तकनीक से प्रतिभा संपन्न दृष्टिहीन सामान्य छात्रों की तरह प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ सकेंगे। टीम को सरकार का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है। यह पद्धति विश्व में नए आयाम स्थापित करने में सक्षम होगी।