Success Story: महिला प्रोफेसर ने शुरू की मशरूम की खेती, अब सवा करोड़ सालाना कमा रहीं
किसान दिवस पर हिसार में आयोजित राज्य स्तरीय समारोह में सोनीपत जिले के दो प्रगतिशील किसानों को सम्मानित किया जाएगा। बड़वासनी गांव की डॉ. सोनिया दहिया को मशरूम की खेती में उत्कृष्ट योगदान के लिए और रोहट के जय सिंह दहिया को फसल विविधिकरण और जल संरक्षण के लिए सम्मानित किया जाएगा। महिला प्रोफेसर सोनिया दहिया मशरूम की खेती करके सवा करोड़ रुपये सालाना कमा रही हैं।
जागरण संवाददाता, सोनीपत। किसान दिवस पर हिसार में सोमवार को राज्य स्तरीय समारोह में जिले के दो प्रगतिशील किसानों को सम्मानित किया जाएगा। बड़वासनी गांव की डॉ. सोनिया दहिया को मशरूम को खेती में उत्कृष्ट योगदान के लिए और रोहट के जय सिंह दहिया को फसल विविधिकरण व जल संरक्षण के लिए सम्मानित किया जाएगा।
सवा करोड़ से ज्यादा का है सालाना टर्नओवर
सोनिया ने कोरोना काल में खाली समय का सदुपयोग करने के लिए मशरूम की खेती शुरू की थी। अब उनका सालाना टर्नओवर सवा करोड़ से ज्यादा का है। वह सालाना सवा सौ टन बटन मशरूम का सालाना उत्पादन कर रही हैं। उन्होंने 15 से अधिक महिलाओं व युवकों को रोजगार दिया है। अब वह किसानों को जागरूक कर रही हैं।
रोहट के किसान जय सिंह दहिया फसल विविधिकरण अपनाकर कम पानी की फसलें उगाकर दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं। जय सिंह दहिया 950 किसानों के समूह के चेयरमैन हैं और वह अपने समूह के किसानों को लगातार जागरूक कर रहे हैं। पराली प्रबंधन और पशुपालन में भी जयसिंह का महत्वपूर्ण योगदान है।
प्रोफेसर पति भी करते हैं सोनिया की मदद
डॉ. सोनिया ने बताया कि वह डीक्रस्ट में अनुबंधित प्रोफेसर के पद पर हैं। कोरोना काल में जब कक्षाएं भी ऑनलाइन हो गई और सभी विद्यार्थी अपने घरों को चले गए तो उन्होंने बड़वासनी गांव में स्थित अपने फार्म में बटन मशरूम की खेती शुरू की। यह उनकी मेहनत का ही फल है कि अब हर महीने 10-12 टन मशरूम उगा रही हैं।
15 से ज्यादा महिलाओं को दिया रोजगार
सालाना वे सवा सौ टन से अधिक मशरूम उगाकर दो करोड़ रुपये से अधिक कमा रही हैं। उन्होंने 15 से अधिक स्थानीय महिलाओं को रोजगार दिया है। महिला प्रधान फार्म होने के कारण उनके पति भी उनकी मदद करते हैं। उनके पति डॉ. विजय दहिया दिल्ली में महाराजा सूरजमल कालेज में गणित के एसोसिएट्स प्रोफेसर हैं।
फसल विविधिकरण के लिए जागरूक कर रहे जय सिंह दहिया
रोहट गांव के प्रगतिशील किसान जय सिंह किसानों को फसल विविधिकरण व जल संरक्षण के लिए प्रेरित कर रहे हैं। वह रोहट गांव में सात एकड़ में हर साल फसल चक्र को बदलकर खेती कर रहे हैं।950 प्रगतिशील किसानों के किसान समूह के मुखिया हैं। वह किसानों को लगातार बाजरा, सरसों व कम पानी में होने वाली फसलों के लिए जागरूक कर रहे हैं।
जय सिंह दहिया। फोटो- जागरण
वह खुद पराली प्रबंधन करते हैं और किसानों को पराली प्रबंधन के लिए प्रेरित कर रहे हैं। वह किसानों को बताते हैं कि पराली को जलाने की बजाय मिट्टी में मिलाकर बिना रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का प्रयोग के कैसे फसल का बंपर उत्पादन ले सकते हैं।
जय सिंह दहिया पशुपालन के टिप्स भी किसानों को देते हैं, ताकि वे खेती के साथ पशुओं को पालकर अपनी आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं। जय सिंह दहिया को भी सोमवार को हिसार में सम्मानित किया जाएगा।
गन्ना बेचना छोड़ अपने उत्पाद बनाए, कमा रहे मुनाफा
उधर, गोहाना के गांव गामड़ी के युवा जोगेश मलिक दूसरे किसानों की तरह न तो गन्ना उगाते हैं और न ही उसे चीनी मिल में बेचते हैं। वे प्राकृतिक गन्ना उगाकर अपने उत्पाद तैयार करते हैं। वे जहां गन्ने का जूस बेचते हैं वहीं इसके रस से ही आइसक्रीम, इमली की चटनी और जैम तैयार करते हैं। वे मिल में गन्ना डालने वाले किसानों से प्रति एकड़ पांच से छह गुना तक मुनाफा लेते हैं।
जोगेश मलिक अपने खेत में गाय के दूध व गन्ने के जूस से तैयार आइसक्रीम दिखाते हुए। फोटो- जागरण
गन्ना तैयार कर खुद शुरू किया जूस बेचना
जोगेश ने पांच साल पहले प्राकृतिक रूप से एक एकड़ में गन्ना तैयार करके स्वयं जूस बेचना शुरू किया। गुजरात से जूस निकालने की मशीन लेकर आए। रोजाना खेत से विशेष रूप से तैयार सोलर प्लेट लगी ट्रॉली में गन्ना लेकर गोहाना आते हैं। ट्रॉली में ही फ्रिज की व्यवस्था है और लोगों को बिना बर्फ व प्राकृतिक गन्ने का जूस पिलाते हैं।
पांच-छह लोगों को दिया रोजगार
इस काम में मेहनत को अधिक करनी पड़ी मिल में गन्ना डालने की एवज में पांच गुना तक मुनाफा हुआ। मिल में एक एकड़ से 350 क्विंटल गन्ना बेचने में 70-80 हजार रुपये तक बचत होती है। जूस की बिक्री करने से इतने गन्ने में वे चार से पांच लाख कमाते हैं।
अब वे तीन एकड़ में प्राकृतिक रूप से गन्ना तैयार कर रहे हैं। वे खेत में ही गाय के दूध व गन्ने के रस आइसक्रीम, जैम व इमली की चटनी तैयार करते हैं। गन्ने से जूस निकालने के दौरान जो खोई निकलती है उसे ईंधन के रूप में प्रयोग करते हैं।
कृषि विभाग के अधिकारी अपने कार्यक्रमों में उनके गन्ने के जूस व आइसक्रीम का स्टॉल लगवाते हैं, जिससे दूसरे किसानों को प्रेरणा मिल सके। उन्होंने पांच-छह लोगों के लिए रोजगार का रास्ता भी खोला।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।