हरियाणा के इस जिले में 1 लाख आबादी बोतलबंद पर निर्भर, 100 करोड़ की परियोजना अदालत में अटकी!
हरियाणा के कुंडली गांव में बुनियादी सुविधाओं की कमी है। पेयजल की भारी किल्लत है, और भूजल दूषित हो गया है। 100 करोड़ रुपये की परियोजनाएं अटकी हुई हैं। औद्योगिक कचरे और जनसंख्या के दबाव ने स्थिति को और खराब कर दिया है। पेयजल और सीवेज लाइनें बिछाने की परियोजनाएं लंबित हैं, जिससे ग्रामीणों में निराशा है। अधिकारी समस्याओं के समाधान के लिए प्रयासरत हैं।
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पेयजल की भारी किल्लत है, और भूजल दूषित हो गया है।
जागरण संवाददाता, राई। एनएच 44 पर हरियाणा का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले कुंडली गांव के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। बुनियादी नागरिक सुविधाओं का ढांचा चरमरा गया है। ग्रामीणों को पेयजल की भारी किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। लोग महंगे बोतलबंद पानी पर निर्भर हो गए हैं। भूजल बुरी तरह दूषित हो गया है।
गांव के सामने एक और समस्या दूषित पानी की निकासी की है। गांव को पेयजल उपलब्ध कराने और दूषित पानी की निकासी के लिए 100 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की फाइलें सरकारी दफ्तरों में धूल फांक रही हैं। एक अदालती मामले ने इस परियोजना के और विलंबित होने की संभावना बढ़ा दी है।
राजधानी दिल्ली से सटा और कभी काफी हद तक आत्मनिर्भर रहा कुंडली गांव आज अपनी दुर्दशा पर विलाप कर रहा है। औद्योगिक विकास ने गांव को बदहाली की ओर धकेल दिया है। कारखानों से निकलने वाले कचरे और रासायनिक उत्सर्जन ने भूजल को इस हद तक दूषित कर दिया है कि वह अब पीने योग्य नहीं रहा।
उद्योगों के बेतरतीब विस्तार ने गांव के जनसंख्या घनत्व को बढ़ा दिया है। गांव की सूचीबद्ध आबादी चालीस हजार है, लेकिन हकीकत में यह संख्या एक लाख से अधिक हो गई है। जनसंख्या के भारी दबाव के कारण, नागरिक सुविधाएँ चरमरा गई हैं। प्रशासन बड़ी आबादी को पेयजल उपलब्ध कराने में पूरी तरह विफल रहा है। लोग बोतलबंद पानी पर निर्भर हो गए हैं।
पेयजल समस्या के समाधान के लिए, जन स्वास्थ्य विभाग ने दहिसरा गाँव के पास यमुना नदी तल से एक रेनीवेल बनाकर पाइपों के माध्यम से कुंडली तक पेयजल पहुँचाने की परियोजना विकसित की है। परियोजना की स्वीकृति प्रक्रिया पूरी होने और कार्य आदेश जारी होने के बावजूद, अभी तक काम शुरू नहीं हुआ है। हरियाणा की यह पहली हाइब्रिड परियोजना एक लंबित अदालती मामले के कारण अधर में लटकी हुई है।
गाँव से दूषित पानी की निकासी एक और बड़ी समस्या है। अधिकांश दूषित पानी दो बड़े तालाबों में जमा है। कभी दुधारू पशुओं के नहाने और पीने के लिए इस्तेमाल होने वाला यह पानी प्रशासनिक लापरवाही का शिकार हो गया है। दोनों तालाबों का स्वरूप पूरी तरह बदल गया है। इन तालाबों की ज़मीन पर भी अतिक्रमण हो गया है। अपशिष्ट जल निकासी के लिए सीवेज लाइन बिछाने की एक महत्वाकांक्षी परियोजना भी अधर में लटकी हुई है। पचास करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना की घोषणा से लोगों को लगा था कि इससे सड़कों पर दूषित जलभराव और बीमारियों के प्रसार की समस्या कम होगी। हालाँकि, कार्यादेश जारी होने के बावजूद परियोजना का काम शुरू न होना निराशा का कारण बना है।
कुंडली नगर पालिका के अंतर्गत आने वाले कुंडली गाँव के निवासी भी स्वच्छता संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं। पंद्रह वार्डों में फैले और दो लाख से ज़्यादा की आबादी वाले नगर पालिका क्षेत्र की सफ़ाई के लिए सिर्फ़ चालीस सफ़ाई कर्मचारी हैं। रिहायशी इलाकों से निकलने वाले रोज़ाना के कचरे के अलावा, आस-पास की औद्योगिक इकाइयों का कचरा भी हर जगह फेंका जाता है।
पेयजल आपूर्ति लाइनें बिछाने का काम एक अदालती मामले के कारण बाधित है। परियोजना को पूरा करने के लिए नई ज़मीन की तलाश लगभग पूरी हो चुकी है। परियोजना के जल्द ही शुरू होने की उम्मीद है।
वीरेंद्र जैन, उपखंड अधिकारी, जन स्वास्थ्य
सीवेज लाइनें बिछाने का काम चल रहा है। इस परियोजना के लिए निविदाएँ जारी हो चुकी हैं। आवंटन पूरा होते ही काम शुरू हो जाएगा। यह 57 करोड़ रुपये की परियोजना है। उपचार के बाद, पानी को ड्रेन नंबर छह में छोड़ा जाएगा।
हम चाहते हैं कि हमारा गाँव हर तरह से सुव्यवस्थित हो। सरकार को जनकल्याणकारी परियोजनाओं को पूरा करने को प्राथमिकता देनी चाहिए। पेयजल मानव जीवन की एक मूलभूत आवश्यकता है।
रोहित, ग्रामीण
नगर निगम बनने के बाद लोगों की अपेक्षाएँ बढ़ गई हैं। उन अपेक्षाओं को पूरा करने के प्रयास किए जा रहे हैं। हम लगातार बढ़ती जनसंख्या को ध्यान में रख रहे हैं। हम नागरिकों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का प्रयास कर रहे हैं।
शिमला देवी, अध्यक्ष, नगर निगम, कुंडली

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