इतिहास की यादों को समेटे हुए है गांव आहुलाना का बड़ा दरवाजा
परमजीत ¨सह, गोहाना गोहाना शहर से करीब सात किलोमीटर दूर बसा है मलिक गोत्र की गठवाल
परमजीत ¨सह, गोहाना
गोहाना शहर से करीब सात किलोमीटर दूर बसा है मलिक गोत्र की गठवाला खाप का सबसे प्रमुख गांव आहुलाना। इस गांव में सन 1848 में बना था बड़ा दरवाजा और बड़ी चौपाल। गांव में उस जमाने का यह पहला पक्का भवन इतिहास की यादों को समेटे हुए है। इस दरवाजे से एतिहासिक व धार्मिक यादें भी जुड़ी हैं। वर्तमान में पंचायत डी-प्लान (जिला योजना) के तहत इस एतिहासिक दरवाजे व चौपाल का जीर्णोद्धार भी करवा रही है, ताकि आने वाली पीढि़यां भी इतिहास को याद रख सकें।
गांव के पढ़े लिखे व बुजुर्ग ग्रामीण बताते हैं कि सन 1124 में गांव आहुलाना बसा था। पहले इस गांव को हुलोणा नाम से जाना था, लेकिन बाद में इसका नाम आहुलाना पड़ा। मलिक गोत्र की गठवाला खाप के पूर्वज सदियों पहले हांसी से सबसे पहले गांव छिछड़ाना में आकर बसे थे, वहां से कैहल्पा उसके बाद बनवासा जाकर बसे, लेकिन बाद में गांव आहुलाना को अपना स्थायी ठिकाना बनाया। कई पीढि़यों से गठवाला खाप की चौधर इसी आहुलाना गांव से चली आ रही है। अपने प्रमुख को इस खाप के लोग दादा की उपाधि से विभूषित करते हैं। इस गोत्र के लोगों ने सदियों पहले कलानौर के नवाबी के विरुद्ध युद्ध जीता था। इसके बाद कई लड़ाई लड़ी। खाप के लोगों ने सन 1848 में गांव में बड़ा दरवाजा व चौपाल बनवाई। उस जमाने में गांव का यह पहला पक्का भवन बताया जाता है। इस भवन की पहली मंजिल पर बिना छत की ऊंची दीवारें थीं, जिनमें विभिन्न दिशाओं में 12 दरवाजे लगे थे। इस दरवाजे को लेकर ग्रामीण मुख्य रूप से दो तर्क देते हैं। भवन की पहली मंजिल पर उस जमाने में गोलियां चलाने के लिए छोटे-छोटे रास्ते (आलियां) छोड़े गए थे। कुछ ग्रामीण कहते हैं कि उस समय यह मजबूत दरवाजा व चौपाल इसलिए बनाया गया था कि अगर कोई दुश्मन गांव पर हमला करे तो यहां चढ़ कर जवाब दिया जा सके। कुछ ग्रामीण बताते हैं कि इस दरवाजे में अस्थल बोहर के एक नामी बाबा रहते थे। उस समय में अगर ग्रामीणों के पशुओं में बीमारी का प्रकोप हो जाता था तो सभी ग्रामीण इस दरवाजे के नीचे से अपने पशुओं को गुजारते थे और बाबा टोना करते थे और पशु ठीक हो जाते थे। खास बात यह थी कि जिस दिन बाबा पशुओं का टोना करते उस दिन गांव के किसी भी ग्रामीण के घर में खाना बनाने के लिए तवा नहीं चढ़ाया जाता था। सभी ग्रामीण पशुओं के दूध से तैयार खीर या मावा खाते थे। क्षेत्र के किसी भी गांव में पंचायती तौर पर इतना बड़ा दरवाजा नहीं है। ग्रामीण इस दरवाजे व चौपाल को गांव की सबसे बड़ी धरोहर मानते हैं। भवन जर्जर होने के चलते पंचायत इन दिनों इसका जीर्णोद्धार करवा रही है। जीर्णोद्धार के लिए सरकार से केवल पांच लाख रुपये की ग्रांट मिली है। ग्रामीण चाहते हैं कि दरवाजे व चौपाल के जीर्णोद्धार के लिए पर्याप्त ग्रांट दी जाए, ताकि इस एतिहासिक धरोहर को अच्छा लुक दिया जा सके।
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दरवाजे पर थी आकर्षक चित्रकारी
गांव आहुलाना के सेवानिवृत्त मुख्याध्यापक सत्यवान ¨सह बताते हैं कि उनके गांव के भाठ (जो जन्म व मृत्यु का रिकार्ड रखते हैं) जटवाड़ा में रहते हैं। उनके रिकार्ड के अनुसार गांव आहुलाना 30 जून, 1124 में बसा था। 1848 में गांव में बहुत बड़ा दरवाजा बना। उस समय आसपास में यह पहला पक्का भवन था, जिसे गोहाना शहर के राज मिस्त्रियों ने तैयार किया था। इस दरवाजे पर आकर्षक चित्रकारी गई थी लेकिन कुछ साल पहले सुरक्षा के मद्देनजर पहली मंजिल ढहा दी गई है। यह दरवाजा एतिहासिक है, जिसको लेकर गांवों के लोगों दो तरह की अवधारणाएं हैं। सत्यवान ने बताया कि गांव आहुलाना से ठीक दो सौ वर्ष पहले बुटाना डिस्ट्रीब्यूट्री निकली थी, जिसके बाद किसानों को फसल ¨सचाई के लिए नहरी पानी मिल सका।
परमजीत
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