10 लाख पैकेज की नौकरी छोड़कर अलख जगाने साइकिल पर निकला इंजीनियर, मिशन है बेमिसाल
इंजीनियर मांजूनाथ का जज्बा इंसानियत के प्रति नया नजरिया देती है। दोस्त की मां को न बचा पाने की पीडा़ मिली तो 10 लाख पैकेज की नौकरी छोड़ अंगदान का अलख जगाने साइकिल पर निकल पड़े।
डबवाली, [डीडी गोयल]। खुद के लिए तो सब जीते हैं, लेकिन विरले ही होते हैं जो औरों के बारे में सोचते हैं व जिनमें समाज के लिए कुछ कर गुजरने की भावना कूट-कूटकर भरी होती है। इन्हीं में से एक हैं बेंगलुरु के सॉफ्टवेयर इंजीनियर मांजुनाथ। दोस्त की मां को कोई अंगदान करने वाला नहीं मिलने की वजह से बचा नहीं पाए तो नई सोच जागी। मन इतना दुखी हुआ कि करीब दस लाख रुपसे के सालाना पैकेज की नौकरी छोड़कर अंगदान की अलख जगाने निकल पड़े। कन्याकुमारी से कश्मीर तक और वह भी साइकिल पर।
लीवर न मिलने से हो गई थी दोस्त की मां की मौत, तो किया अलख जगाने का फैसला
उनकी अलख यात्र 15 जुलाई को कन्याकुमारी से शुरू हुई थी। उन्हें करीब 4000 किलोमीटर की दूरी नापकर कश्मीर पहुंचना है। वह हर रोज करीब 150 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। इस दौरान लोगों को अंगदान के प्रति जागरूक करते हैं। वह तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान होते हुए हरियाणा पहुंचे हैं। 31 वर्षीय मांजुनाथ खुद भी एक अंगदानी हैं। वह मरणोपरांत हार्ट, किडनी, लीवर, आंख व फेफड़े दान करेंगे। इससे पहले वह करीब छह माह पूर्व रक्तदान के प्रति लोगों को प्रेरित करने के लिए साइकिल पर बेंगलुरु से कन्याकुमारी तक 750 किलोमीटर यात्रा भी कर चुके हैं।
दो माह ढूंढ़ा, लेकिन नहीं मिला अंगदानी
मांजुनाथ के अनुसार, उनके दोस्त की मां अस्पताल में भर्ती थी। उनका लीवर बुरी तरह से डैमेज हो चुका था। डॉक्टरों ने ट्रांसप्लांट की सलाह दी तो अंगदानी ढूंढ़ने लगे। करीब दो माह तक लोगों को प्रेरित करते रहे, लेकिन कोई भी लीवर देने को तैयार नहीं हुआ। इस वजह से दोस्त की मां नहीं रहीं। इससे उनका मन बहुत व्यथित हुआ और फिर उन्होंने नौकरी छोड़ अंगदान के प्रति लोगों को जागरूक करने की ठान ली। तब से मिशन बदस्तूर जारी है।
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'' भारत सरकार की नेशनल ऑर्गन एंड टीशू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (एनओटीटीओ) से मान्यता लेने के बाद ही मैंने अंगदान के प्रति जागरूकता अभियान छेड़ा है। ऑर्गेनाइजेशन मुङो मोबाइल एप से ट्रैक कर रही है। मैंने फेसबुक पर पेज स्पोर्ट फॉर कॉज बनाया है। सोशल मीडिया के साथ-साथ जन-जन तक अभियान पहुंचे, इसलिए मैं साइकिल यात्र कर रहा हूं। आसानी से अपनी बात लोगों के बीच रख रहा हूं। धीरे-धीरे लोग जुड़ते जा रहे हैं। कारवां बढ़ता जा रहा है।
- मांजुनाथ, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, बेंगलुरु।
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